मस्जिदों में पांच वक्त की फर्ज नमाज व तरावीह की नमाज सीमित संख्या में लोग अदा कर रहे हैं। घरों व बाजारों में रौनक है। चारों तरफ कुरआन-ए-पाक पढ़ा जा रहा है। नबी-ए-पाक व आपकी आल पर दरूदो सलाम का नजराना पेश किया जा रहा है। बच्चे, नौजवान व बूढ़े नमाज़ पढ़ रहे हैं। तिलावत कर रहे हैं। वहीं घरों में आधी आबादी इबादत, तिलावत के साथ खुद रोजा रखकर सहरी-इफ्तारी व खाना पका रही हैं। इफ्तार के समय का नजारा तो बहुत ही प्यारा है। जब एक दस्तरख्वान पर पूरा परिवार साथ बैठकर अल्लाह की हम्द बयां कर रोजा खोल रहा और कोरोना से निजात की दुआ मांग रहा है।
मो. असलम रजवी ने बताया कि रमजानुल मुबारक में की गई अल्लाह की इबादत बहुत असरदार होती है। इंसान इसमें खान-पान सहित अन्य दुनियादारी की आदतों पर काबू करता है। परहेजगारी के साथ ही फर्ज नमाज व तरावीह की नमाज़ पढ़ने से बार-बार अल्लाह का जिक्र होता रहता है जिसके जरिए इंसान की रूह पाक-साफ होती है। रोजा केवल भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं है। शरीर के अन्य अंगों का भी रोजा होता है।
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts, please let me know