आसमान की परियाँ
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आसमान  की  परियाँ  देखो
इस जहान में आईं हैं ,
अपने हाथों निखिल धरा को
स्वर्ग  बनाने  आईं हैं !

कलुषित   मानस   पुरुष   वर्ग
स्वीकार नहीं कर पाता है ,
उसी   कोख   से   जन्म  लिया
पर उसपर रहम न खाता है !

डरो  खुदा  से   धरती   वालों
ये   तो  उसकी  नेमत  -है ,
नहीं   दुआओं   से , उज्ज्वल 
कर्मों से मिली अमानत है !

आसमान  की  कोमल  रूहें
बेटी  बनकर -आती हैं ,
माँ , पत्नी , बहनें  कहलाती
घर को स्वर्ग बनाती है !

जिस आंगन की शोभा बनती
फूल वहाँ खिल जाता है ,
सरस  प्रेम  बन  मेघ  वहीं पर
नित्य  सुधा  बरसाता है !

परियां  होती   सभी   बेटियां 
घर को स्वर्ग बना देती ,
तपित  रेत  में  भी  वह चाहे
नूतन फूल खिला देती !

वक्त अभी है शेष अगर तुम
अपना  धर्म  निभाओगे ,
इन  फूलों को  बचा सके तो
नाम अमर  कर जाओगे !

प्रियंका द्विवेदी
मंझनपुर कौशाम्बी

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