उतरौला (बलरामपुर) माहे रमजान मजहब-ए- इस्लाम का पवित्र महीना है जो अगले हफ्ते 13 या14 अप्रेल से शुरू हो रहा है।
 जिसकी तैयारी को लेकर नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों के मस्जिदों की साफ-सफाई व रंग रोगन करके कुमकुमी झालरों से सजावट मुकम्मल की जा रही है।
       बेपनाह बरकत व रहमतों का महीना रमजान शरीफ के आगमन को लेकर अब सबकी निगाहें रमजान‌ के चांद की दीदार पर लगी हुई है। इस बेशुमार बाबरकत महीने का इंतजार नौजवान, बूढ़े, बच्चे बड़े बेसब्री से कर रहे हैं। आखिर क्यों न हो जब इस माह में एक के बदले अल्ल्लाह की तरफ से सत्तर नेकियों का सवाब मिल रहा हो। मौलाना बरकत अली मुशहीदी ने दुनिया भर से कोरोना जैसी भयंकर बीमारी के खात्मे की दु‌आ करते हुए कहा कि ये रमजान सभी के लिए खैर-ओ-आफियत और सलामती लेकर आये।जो लोग पिछले रमजान में कोरोना की वजह से मुकम्मल तौर पर इबादत नहीं कर पाये वे लोग इस साल अपने रब को राजी करने के लिए रोजा रखें,नमाज पढ़ें,तस्बीह व कुरान की तिलावत करें ताकि हम से हमारा रब राजी हो जाए। 
उन्होंने रोज़े की फजीलत बयान करते हुए कहा कि ए्क बार पैगम्बर मूशा अलैहिस्सलाम ने अल्ल्लाह  से पूछा कि या रब जितना मैं आपके करीब हूं आप से बात कर सकता हूं उतना कोई और करीब है अल्ल्लाह पाक ने फरमाया कि मूशा आखिरी वक्त में एक उम्मत मोहम्मद सल्ललाहो अलैहे वसल्लम की होगी और उस उम्मत को एक महीना ऐसा मिलेगा जिसमें वह खुश्क होंठो,प्यासी जुबां,सूखी हुई आंखें,भूखे पेट जब रोजा इफ्तार करने बैठेगा तब मैं उनके बहुत करीब होऊंगा।
मूशा तुम्हारे और हमारे दरम्यान 70पर्दों का फासला है लेकिन रोज़ा इफ्तार के वक्त उस उम्मत और मेरे दरम्यान एक पर्दे का फासला भी नहीं होगा।
असगर अली
उतरौला

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