NCR News:कल तक जिस पिता के हाथों में अपनी नन्ही अंगुलियां फंसाकर ढाई वर्षीय पार्थ चलना सीख रहा था, आज उसी पिता को नन्हें हाथों से मुखाग्नि दी। उसे नही पता था कि यह क्या हो रहा है, बस रिश्तेदार उससे जो करा रहे थे, वो करता जा रहा था। पिता के पास खड़े होकर वह उन्हें पुकार रहा था, लेकिन उसे नही पता था कि उसके पापा अब कभी उसे अपने गले नहीं लगा सकेंगे। पापा, पापा कहते हुए पार्थ ने मुखग्नि दी तो श्मशान में शहीद अंतिम विदाई देने आए लोगों की आंखें नम हो उठीं। छतारी के मोहल्ला जनकपुरी से दोपहर करीब एक बजे शहीद दरोगा प्रशांत यादव की उनके आवास से अंतिम यात्रा प्रारंभ हुई। जिसे उनके परिजनों और आगरा से साथ आए साथियों ने कंधा दिया। इस दौरान एक रिश्तेदार की गोदी में उनका मासूम पुत्र पार्थ भी साथ चल रहा था। अंतिम यात्रा उनके आवास से मुख्य बाजार में होते हुए गांव के बाहर स्थित श्मशान घाट तक पहुंची। सैकड़ों लोगों का काफिला साथ रहा। अंतिम यात्रा के दौरान लोगों का हुजूम सड़कों पर उतर आया। लोग अपने हीरो को नम आंखों से विदाई देने के लिए घरों की छतों पर जुटे हुए थे। जगह जगह पुष्प बरसाए जा रहे थे। गांव की सड़कें शहीद पर बरसाए फूलों से पट गईं। श्मशान में शव पहुंचते ही पार्थ को भी रिश्तेदार वहां लेकर पहुंचे। जहां वह अपने पिता को बार बार पुकार रहा था। शव को चिता पर रखा गया। इसके बाद मासूम पार्थ को एक रिश्तेदार ने गोद में लेकर उसके पिता का अंतिम क्रियाकर्म शुरू कराया। पार्थ ने पिता को मुखाग्नि दी तो सबकी आंखें नम हो गईं।
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