उतरौला (बलरामपुर)'सपने उन्हीं के सच होते हैं, जिनके सपनों में जान होती है,पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है, उक्त पंक्तियां चरितार्थ होती है क्षेत्र के सोनहट नन्दौरी गांव के निजामुद्दीन पर।
      जो दस वर्ष की अल्प आयु में ही क्रेशर में फंसकर एक हाथ गंवाने के बाद भी हिम्मत नहीं हारे। अपने मेहनत और हुनर के दम पर मोटर मैकेनिक मिस्त्री बनकर एक कुशल कारीगर के रूप में पहचान बनाया।जो कार्य दो हाथ वालों को करने में दिक्कत होती है वह कार्य एक हाथ से बखूबी करते हैं। यही नहीं घरेलू कार्य समेत खेती बारी के सभी कार्य में निपुण हैं इसके लिए एक हाथ की जगह दांत और पैर का भी सहारा लेते हैं जो कार्य किसी कारीगर के समझ में नहीं आता तो लोग निजामुद्दीन को बुलाते हैं। उसकी लगन और मेहनत से जो हुनर सीखा वही उनके परिवार का रोजी रोटी का साधन बना हुआ है। किसान अकरम के तीनों पुत्रों में सबसे छोटे बेटे निजामुद्दीन जब दस वर्ष के थे तभी उनका दाहिना हाथ क्रेशर में फंसकर अलग हो गया था परिजन लेकर अस्पताल पहुंचे जहां जान तो बच गई लेकिन एक हाथ उन्हें गंवाना पड़ा।कहा गया है'हुनर ही सफलता की कुंजी है' निजामुद्दीन एक हाथ गंवाने के बाद भी कक्षा पांच तक पढ़ाई किया और हुनर सीखने की ललक लेकर मुंबई  चले गए जहां पर मैकेनिक का काम सीखने में जोर दिया कुछ दिनों बाद वह मैकेनिकल कार्य में निपुण होकर  वर्तमान समय में उतरौला डुमरियागंज मार्ग पर एक गैरेज में काम कर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं। भाइयों के बीच बटवारा हो जाने के बाद  परिवार की सारी जिम्मेदारी निजामुद्दीन के ऊपर आ गई और इस समय बच्चों सहित परिवार का खर्च वह अपने हुनर के दम पर चला रहे हैं।वह बताते हैं कि द्विवयांगता राह का रोड़ा नहीं है जब इंसान हिम्मत हार जाता है तब वह कमजोर हो जाता है'हिम्मते मर्दे,मदते खुदा'किसीभी कार्य में आपकी रूचि और मेहनत ही लक्ष्य तक पहुंचाती है। 

असगर अली 
उतरौला 

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