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शहरों की शक्ल-सूरत बिगाड़ने वालों के साथ खड़े होने वाले नेताओं को आप क्या कहेंगे ?मै तो उन्हें सड़क बिगाड़ू नेता ही कहूंगा. ग्वालियर हाल ही में 'ईज आफ लिविंग ' के मामले में 34 वे नंबर पर आया है लेकिन हमारे नेताओं का माथा न शर्म से झुका और न उनकी नाक ही कटी ,क्योंकि उनके लिए नाक का सवाल अब शहर की खराब छवि नहीं बल्कि शहर को बदसूरत बनाने वाले हाथठेले वाले हैं .
सत्तारूढ़ भाजपा के वरिष्ठ नेता जो विधायक,मंत्री और संसद तक रह लिए हाथ ठेले वालों को हाकर्स जॉन में ले जाने के खिलाफ धरना देकर बैठ गए. हाथठेले वालों के साथ खड़ा होना आपके समाजवादी स्वभाव के अनुकूल है लेकिन जो बिरादरी शहर की यातायात व्यवस्था के साथ ही शहर की शक्ल-सूरत बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार हैं उनके साथ खड़ा होना सनक के अलावा और कुछ नहीं हैं. ऐसे सनकी नेताओं की कमी किसी दल में नहीं हैं. वे भाजपा में भी हैं और कांग्रेस में भी.छोटे दलों की तो बात ही क्या करना ?
पूर्व संसद,पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक ही नहीं मेरे पूर्व मित्र अनूप मिश्रा का हाथ ठेले वालों के समर्थन में धरने अपर बैठना हैरान करने वाला है. मिश्रा जी पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी के भांजे हैं ,चार दशक से सक्रिय राजनीति का चेहरा हैं . ,नीचे से ऊपर तक उनकी ही पार्टी सत्ता में है ऐसे में यदि कोई समस्या है भी तो अपने स्तर पर बात कीजिये,धरना देने की क्या जरूरत?फिर सवाल ये है कि क्या हाकर्स जोन आपकी सरकार ने नहीं बनवाये थे? क्या इस फैसले में आप शामिल नहीं थे?और यदि ये सब आपकी सरकार का ही प्रयास है तो उसमें आप बाधा क्यों डाल रहे हैं ? क्या हर मामले में नेतागीरी बहुत जरूरी है ?
शहर के विकास में बाधा के मुद्दे पर मै हर समय कहता रहा हूँ कि ग्वालियर जैसे उन्नीसवीं सदी के प्रगतिशील शहर को गांव बनाये रखने में इन नेताओं की सबसे बड़ी भूमिका है. इन्हें अपने वोटबैंक की चिंता रहती है. नेताओं के वोटबैंक ने यदि कोई भी अपराध किया है तो वो क्षम्य है ,क्यों ?क्या शहर को हमेशा गांव ही बनाये रखने की कसम खा ली है इन नेताओं ने. ये बात अकेले ग्वालियर शहर की नहीं है,दुसरे शहरों की भी है ,और कोई भी दल इस समस्या से आजाद नहीं होना चाहता .शहर में हाथ ठेले वाले हों या आवारा जानवर आजादी से घूमें तो ठीक है लेकिन यदि उन्हें खदेड़ा जाये तो ये अमानवीय लगने लगता है .
हाथ ठेले वाले रोजगार करें इसमने कोई बुराई नहीं हैं लेकिन वे सड़कें और फुटपाथ घेरकर खड़े हो जाएँ ये तो स्वीकार नहीं किया जा सकता .यदि आपने होकर जॉन बनाये हैं तो हाथ ठेले वालों की वहां खड़ा होना ही चाहिए.ग्वालियर वालों को शायद याद हो या न हो लेकिन मुझे याद है की दशकों पहले महाराज बाड़ा को इन्हीं ठेले वालों से मुक्ति दिलाने के लिए मप्र हाऊसिंग बोर्ड ने नजरबाग मार्केट बनाया था. नजरबाग मार्केट आज भी अपनी जगह है लेकिन इनके मालिक बने हाथ ठेले वाले आज भी ठेले ही चला रहे हैं. वे अपनी दुकानें बेच-बाचकर फिर सड़कों पर आ गए .जाहिर है ये हाथ ठेले वाले सुधरने वाले नहीं हैं ,इनका बस चले तो ये हाथ ठेला लेकर आपके घर में घुसकर कारोबार करें .
अद्भुत विसंगति है की एक तरफ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ग्वालियर के विकास के लिए पंचवर्षीय योजना बनाने के लिए बैठकें कर रहे हैं और दूसरी तरफ उनकी ही पार्टी के उनसे भी वरिष्ठ नेता धरने पर बैठे हैं .अब या तो अध्यक्ष जी गलत हैं या फिर नेता जी .पहले ये तय करना होगा की शहर का हितैषी कौन है ?मेरा कहना है की शहर के होते में और समेकित विकास के लिए हर तरह की नेतागीरी बंद होना चाहिए .अपना वजूद बनाये रखने के लिए आप कोई दूसरा विकल्प चुनिए,शहर को बर्बाद करने में सहायक मत बनिए .
बीते पचास साल में ग्वालियर में महाराज बाड़ा का विकल्प तैयार नहीं हुआ.सिटी सेंटर और न्यू सिटी सेंटर इस तरीके से विकसित किये गए की वे महाराज बाड़ा का विकल्प बन ही नहीं पाए. दुर्भाग्य है कि ग्वालियर शहर अनियोजित तरिके से विकसित होता जा रहा है इसी से विसंगतियां उभर रहीं हैं .महाराज बाड़ा आखिर कब तक बढ़ती हुई आबादी का बोझ ढोएगा.मुझे हंसी आती है की जो नेता हाथ ठेले वालों के समर्थन में धरना देते हैं वे ग्वालियर से ऐतिहासिक छापाखाना बंद करने के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलते,उन्हें शहर की सबसे पुरानी और विरासत हो चुकी रेल लाइन बंद करने का कोई दुःख नहीं होता ,क्योंकि ये विषय वोट से जुड़े नहीं हैं .
अभी समय है की नेतागण नेतागीरी से बाज आएं और अपने शहर के विकास में बाधाएं खड़ी न करें.क्योंकि नेतागीरी से वाहवाही तो मिल सकती है लेकिन शहर को समस्याओं से निजात नहीं .शहर के अखबारों को भी ऐसी नेतागिरी को प्रोत्साहित करने के बजाय हतोत्साहित करना चाहिए ,कोई ये काम करे या न करे लेकिन मै तो अपनी ड्यूटी कर रहा हूँ और ऐसी हर नेतागिरी के खिलाफ हूँ जो शहर के विकास में बाधक है.इस तरह के रसूख खो रहे नेता केवल ग्वालियर की समस्या नहीं हैं,ऐसे नेता हरेक शहर में होते हैं.इनकी शिनाख्त की जाना चाहिए .राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वे विकास कार्य में बाधक लोगों के सामने घुटने न टेके ,अन्यथा विकास का रथ एक बार ठिठका तो ठिठका ही रह जाएगा .
बीते सोलह साल से राज्य में भाजपा की ही सरकार है ,एक -डेढ़ साल की कांग्रेस सरकार का कार्यकाल छोड़ दिया जाये तो शहर की तमाम समस्याओं के लिए भाजपा ही जिम्मेदार है .खुद मिश्रा जी इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकते .उन्हें प्रायश्चित करने के लिए धरना देने के बजाय मुख्यमंत्री आवास पर अनशन करना चाहिए ,सब अपने आप ठीक हो जाएगा .आखिर बीमार हाथी भी सवा लाख का होता है.
@ राकेश अचल
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