गिरजा शंकर गुप्ता
अंबेडकरनगर 4 मार्च 2021 में ग्राम पंचायत चुनाव की आरक्षण लिस्ट जारी होते ही सुगबुगाहट और बढ़ गई है। मौजूदा प्रधान और इस बार अपनी किस्मत आजमा रहे प्रत्याशियों की गांवों में हलचल तेज हो गयी है। ग्राम पंचायत चुनावों से पहले क्या है गाँव का हाल, चुनावों को लेकर क्या कह रहे हैं ग्रामीण, पढ़िए रिपोर्ट ...*
अंबेडकरनगर जनपद में साल 2021 में होने वाले ग्राम पंचायत के चुनावों को लेकर सरगर्मियां तेज हैं। कोरोना के चलते देर से होने वाले पंचायत चुनाव प्रधान, बीडीसी, पंच और जिला पंचायत के चुनाव की तारीखों का भी ऐलान किया गया है लेकिन दावेदारों ने अभी से ताकत लगा रखी है। कस्बों के चौराहों पर होर्डिंग नजर आती हैं तो गांव के नुक्कड़ों और चौपालों में बैठकें सजने लगी है। दावेदार मतदाताओं के सुख-दु:ख में भागीदार होकर उनकी सेवा में जुटे हैं।
दूसरी बार प्रधानी का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे एक नौजवान दावेदार ने नाम न छापने की शर्त कहा- "प्रधानी का चुनाव सांसदी (लोकसभा) से ज्यादा मु्श्किल है। अब हमारे ही परिवार से 3 लोग दावेदार हैं और 1500 वोटर पर अब तक मोटा मोटी 10 जने
(उम्मीदवार) सामने आ चुके हैं। एक-एक वोट का हिसाब रखना और उसको बात-बात समझानी है। पिछले एक साल से हमारा पूरा समय इसी में जा रहा है।" वो समय के बारे में तो बताते हैं, लेकिन कितना खर्च हुआ इस पर कुछ नहीं बोलते, बस इतना कहते हैं, "बस गांव वालों की सेवा में लगे हैं।"
चुनाव में उतरने को तैयार दावेदार न सिर्फ वोटरों को खुश करने कोशिश में है बल्कि वो मौजूदा प्रधानों के कमियां भी गिना रहे हैं।
पंचायत चुनाव को लेकर बैठकों का दौर भी चल रहा है। ब्लॉक और तहसीलों की हर चाय की गुमटी और मिठाई की दुकानों पर चुनाव के ही चर्चे सुनने को मिलते हैं।
"आजकल प्रधान जी की मोटरसाइकिल की टंकी बिल्कुल फुल रहती है। प्रधान जी किसी को न नहीं कहते हैं, अस्पताल से लेकर ब्लॉक (ब्लॉक मुख्यालय) तक जिसको जहां जाना होता है प्रधान जी तैयार हैं।" दुकान पर बैठे और लोग उनकी हां में हां मिलते हैं तो प्रधान पद के उम्मीदवार भी तपाक से कहते हैं, "जब जनता हमें प्रधान बनाएगी तो जनता की सेवा के लिए जो कुछ होई, हम करेंगे।" कई होर्डिंग से राजनीतिक पार्टी के नेताओं के भी फोटो नजर आते हैं, लेकिन असल चुनाव लड़ाई गांव के अंदर लड़ी जा रही है।
खुले शब्दों में कोई कुछ नहीं बोलता है लेकिन दबे शब्दों में कई लोग बताते हैं कि कैसे प्रधानी के दावेदारों की गाड़ियां इन दिनों टैक्सी नजर आती हैं तो शराब और मुर्गों की पार्टियां भी चलती हैं। चार साल तक सीधे मुंह बात न करने वाले प्रधान लोगों के घर-घर जाकर दिक्कतें पूछ रहे हैं।
अभी यह मानिए कि हमारे ग्राम पंचायत में मौजूदा प्रधान और जो भी पांच-छह लोग पंचायत चुनाव लड़ना चाह रहे हैं, वह जब भी सामने पड़ जाते हैं तो बिना हालचाल लिए आगे नहीं बढ़ते। कई लोग पूछ चुके हैं कोई समस्या हो तो बताना। मैं आसपास भी देख रहा हूं, मुंडन से लेकर दसवां-तेरहवीं तक दावेदार सबके सुख-दु:ख में शामिल हो रहे हैं। और यहां भी गाहे-बगाहे चुनाव की चर्चा चल ही पड़ती है।"
ग्राम पंचायत रामपुर सकरवारी के रहने वाले रजनीश (28 वर्ष) बताते हैं, "जो भी प्रत्याशी प्रधानी का चुनाव लड़ने के बारे में सोच रहे हैं, वह अपने-अपने लोगों के वोटर लिस्ट में शामिल करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं, लोगों से मिलना-जुलना भी बढ़ा दिया है। सब जोड़-तोड़ तो शुरू हो चुका है।"
महेंद्र पाल कहते हैं, "गाँव में अभी कुछ दिनों पहले ही कई जिला पंचायत सदस्य के प्रत्याशी अपने अपने पोस्टर लगा चुके हैं। मगर देखो भइया चुनाव आते ही पान-पुड़िया चलने लगी है। यह सब खिलाना-पिलाना शुरू कर दिया हैं लोग, खर्चा पानी करना शुरू कर दिए हैं। मगर देखो वोट केवल विकास पर ही नहीं मिलता है।"
पंचायत चुनावों में वोट को लेकर जाति समीकरण भी बड़ा मुद्दा रहा है। कई बार जातीय विवाद के मामले भी गांवों में तनाव का रूप अख्तियार करते हैं। ऐसे में ग्राम पंचायत के चुनावों की तैयारी के बीच इस बार यूपी पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ऐसे घटनाओं से बचने के लिए इंटेलिजेंस और एलआईयू को गांवों में अवैध संबंधों को लेकर भी जानकारी एकत्र करने के आदेश दिए हैं।
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