NCR News:मौसमी दशाएं अनुकूल होने के बावजूद दिल्ली की आबोहवा खराब रही। साल के ज्यादातर दिनों में राजधानी की हवा मानक से खराब रहती है। इसमें वाहनों से होने वाले प्रदूषण का हिस्सा सबसे ज्यादा है। करीब 40 फीसदी प्रदूषण वाहनों से होता है। इस आंकड़े को अगर निजी और सार्वजनिक वाहनों के पैमाने पर कसा जाए तो अनुपात 20 और 80 का ठहरता है। विशेषज्ञों की इस बात में दम है कि बगैर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को मजबूत किए दिल्ली को प्रदूषण की चपेट से निकाल पाना संभव नहीं है।शहर में सार्वजनिक और निजी वाहनों की संख्या का अनुपात निश्चित है। आदर्श स्थिति में 80 फीसदी सार्वजनिक और 20 प्रतिशत निजी वाहनों का इस्तेमाल होना चाहिए। इसके लिए सबसे जरूरी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को मजबूत करने है, जबकि दिल्ली में अभी भी यह आंकड़ा 50-50 फीसदी का है। लोगों को जागरूक कर निजी वाहनों का इस्तेमाल करने से रोकें। वहीं, लक्जरी व बड़े वाहनों पर ज्यादा टैक्स लगना चाहिए। अगर परिवार के साथ वीकेंड या किसी समारोह में जाना है तो बड़े वाहनों का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन दफ्तर या अकेला सफर करते वक्त निजी वाहनों के बजाय सार्वजनिक वाहन या छोटे वाहनों को बढ़ावा देना पड़ेगा।दिल्ली के प्रदूषण पर हुए एक अध्ययन से जुड़े टेरी के डॉ. अनुज गोयल का कहना है कि मोटर से चलने वाले वाहनों का ट्रैफिक अगर बगैर मोटर से चलने वाले वाहनों पर शिफ्ट किया जा सका तो प्रदूषण स्तर में तेजी से गिरावट आती है। उनक अध्ययन बताता है कि दिल्ली में अगर 25 फीसदी लोग कार आदि से साइकिल, रिक्शा से चलना शुरू कर देते हैं तो पीएम2.5 में 4-5 फीसदी की कमी आती है। वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर इस बदलाव से वाहनों से होने वाले प्रदूषण में से करीब 12.50 फीसदी कम होगा।
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