सियासत के शब्दकोश में 'खेला'
*******************************
भाषा एक ऐसी अमूर्त चीज है जो समय के साथ अपने शब्दकोश को  परमार्जित करती रहती है.दुनिया की हर भाषा में हर  वक्त कुछ शब्द लुप्त होते रहते हैं  तो कुछ नए शब्द जुड़ते रहते हैं .भाषा के शब्दकोश की ये घट-बढ़त बड़ी रोचक है और इसका कोई एक सर्वमान्य सिद्धांत नहीं है. शब्दकोश की इस घटत -बढ़त की यात्रा में हमराह बनना भी बहुत  रोचक है .आज मै आपके साथ इसी शुष्क लेकिन दिलचस्प विषय पर बातचीत कर रहा हूँ.
बंगाल के साथ पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव ने इस बार सियासत के शब्द कोष में दो नए शब्द जोड़े हैं. एक है ' खेला' और दूसरा है  'कोबरा ' इन दोनों शब्दों को भाषा ने अचानक आत्मसात कर लिया है. भाषा विज्ञानी इस बारे  में अभी सोचना शुरू किये हैं या नहीं लेकिन मै देख रहा हूँ  कि ये दोनों शब्द बंगाल से बाहर निकलकर पूरे देश में छा गए  है. उत्तराखंड में मुख्यमंत्री को अचानक अपदस्थ किया गया तो खेला का इस्तेमाल प्रिंट  और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने जमकर किया .किसी ने इसके लिए मीडिया  से कहा तो नहीं था .
हिंदी भाषी क्षेत्रों से बंगाल में विधानसभा चुनाव लड़ने गए अलग-अलग दलों के नेताओं ने बंगाली के इस सुपरचित शब्द 'खेला ' को कब पचा लिया ,कोई नहीं जानता. बंगाल के नेताओं के लिए तो खेला अपना शब्द है लेकिन बंगाल के बाहर ये शब्द अब मुहावरा बन गया है .मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी के श्रीमुख से निकला 'खेला ' शब्द आम आदमी से लेकर देश के प्रधानमंत्री की जुबान से भी फूल बनकर झर रहा है .
दरअसल शब्द हरसिंगार के फूल की तरह सुकोमल होते हैं इसलिए मैंने शब्दों के निसर्ग के लिए झरने का इस्तेमाल किया है .आप जानते हैं कि शब्द किसी टकसाल में सिक्कों की तरह नहीं ढाले जाते.शब्दों को समाज रचता है और कब,कैसे रचता है ये कहना कठिन काम है .शब्दों की रचना जितनी जटिल और अमूर्त है उतना ही आसान उनका लुप्त होना भी है .ये प्रक्रिया समय सापेक्ष मानी जाती है .इस पर अगर ध्यान न दिया जाये तो शब्द रचना से आप अनजान ही बने रहते हैं.
बंगाल चुनावों का शुक्रिया अदा किया जाना चाहिए कि इस चुनाव ने हिंदी को दो नए शब्द दिए..खेल के बाद दूसरा सबसे ज्यादा चर्चित शब्द है .कोबरा. कोबरा को पूरा देश अपने मारक गुण के कारण जानता है ,लेकिन सरी-सर्प वर्ग से बाबस्ता इस नाम को सियासत के शब्दकोश में शामिल कराने का श्रेय फिल्म अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती को है. मिथुन ने अपने लिए कोबरा शब्द का इस्तेमाल भाजपा में शामिल होने के बाद किया था .आज कोबरा सांप से ज्यादा सियासतदानों के लिए इस्तेमाल किये जाना वाला शब्द बन चुका है .
आपको याद न हो शायद ,लेकिन जरा पीछे जाइये तो देखिये कि मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव के समय एक नया शब्द चर्चा में आया था 'टाइगर' .पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने लिए टाइगर शब्द का इस्तेमाल किया था. ये शब्द आज भी प्रचलन में है .मध्यप्रदेश में ही सियासत में 'मामा' जैसा प्रिय शब्द अब सियासी मुहावरा बन चुका  है. जबकि मामा, ममत्व के बाद का सबसे अधिक आदर्श शब्द था .आप मान लीजिये की सियासत  जिस शब्द को अपना लेती है उसका उद्धार करके ही छोड़ती है .अब लम्बे समय तक खेला,कोबरा और मामा हिंदी साहित्य के नहीं हिंदी सियासत के शब्द कोष के शब्द बने रहेंगे .
आपको शब्दों के इस भूचाल को लेकर हमेशा सतर्क रहना चाहिए. ये केवल भाषा विज्ञानियों का दायित्व नहीं हैं कि वे आपको बताएं की आपकी भाषा में कौन सा नया शब्द शामिल हो गया है या कौन सा शब्द गायब हो गया है ?शब्दों के साथ रिश्ता कायम रखना आसान काम नहीं है. आप शब्द को जब तक अपनत्व नहीं देते वो आपका नहीं होता,यही कारण है कि अनेक अवसरों पर हमारे पास शब्द होते हैं किन्तु आवश्यकता पड़ने   पर वे निकलकर बाहर नहीं आते .शब्दों का ये सफर सियासत के सफर जैसा मसालेदार भले न हो लेकिन मुझे लगता है कि समाज को अपनी पैनी नजर रखना चाहिए ,क्योंकि शब्द ही भाषा की गरिमा का पैमाना हैं .
भाषा विज्ञानी जानते हैं कि शब्द की संरचना कितना कठिन  काम है.मनुष्य अपनी प्रतिकृति तो नौ माह में पैदा कर सकता है किन्तु एक शब्द पैदा नहीं कर सकता ,क्योंकि शब्द  समाज का सामूहिक उद्यम है ,शब्द भाषा को चमत्कारिक बनाता है,उसे अलंकृत भी करता है .व्यक्तित्व को निखरता  है .शब्द की अपनी महिमा है. शब्द कहाँ से आता है और कहाँ चला जाता है ये सदा से एक रहस्य रहा है .ये रहस्य जीवन और मृत्यु के रहस्य की तरह ही अत्यंत  गूढ़ है .
 दुनिया में शब्दों को लेकर क्या अवधारणा है ये जानने से अधिक ये जानना अधिक महत्वपूर्ण है कि हमारे देश में और संस्कृति में शब्दों को लेकर क्या माना जाता है. मुझे याद है कि मेरे हिंदी के शिक्षक  अक्सर कहा करते थे की भारतीय संस्कृति में शब्द को ब्रह्म कहा गया है।हमारे यहां शब्दों की उतपत्ति शब्द तत्सम ,तद्भव,देशज और विदेशज मानी जाती है .मै पहले ही कह चुका  हूँ  कि  मै भाषाविज्ञानी नहीं हूँ किन्तु शब्दों से मेरा अनुराग है यही अनुराग मुझे अभिव्यक्ति के लिए नयी शक्ति देता है .
पिछले दिनों यूट्यूब पर एक पाकिस्तानी लड़की का वीडियो वायरल हुआ ,उस लड़की ने पार्टी के लिए पावली या पावरी  शब्द इस्तेमाल किया.एकदम देशज शब्द होते हुए भी ये शब्द विल्पुत होते-होते अचानक समाज ने ग्राह्य कर लिया.अब ये शब्द देश की सीमाओं को फांदकर सुदूर इस्तेमाल किया जा रहा है .हम एक नया शब्द हासिल करते हैं तो दस शब्द खो भी  देतेहैं .शब्दों के मिलने से फायदा होता है तो खोने से नुक्सान भी कम नहीं होता.एक शब्द है 'छींका' ये शब्द घरों में फ्रिज आने के बाद हमेशा-हमेशा के लिए बर्फ में जमा दिया गया. अब आप सोचिये कि इस एक शब्द के साथ हमारी कहावत भी खतरे में पड़ गयी.अब जब छींका है ही नहीं तो बिल्ली के भाग्य से टूटेगा कैसे ?
शब्दों को लेकर आज मै जो लिख रहा हूँ ये एक उबाल है.आज दरअसल कोई ऐसा विषय मेरे सामने नहीं था जिस पर मै सुरुचि से अधिकारपूर्वक लिख पाटा,इसलिए मैंने आज शब्दों का दामन थाम लिया .आपको रुचिकर न भी लगा हो तो भी अपने आसपास आते-जाते  शब्दों को पहचानिये,उनका ख्याल रखिये क्योंकि ये शब्द कभी न कभी आपके काम जरूर आएंगे
.@ राकेश अचल

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने