चौरसिया से भाईजान तक कांग्रेस 
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कांग्रेस बुरी तरह से गफलत में है. कांग्रेस को नहीं पता कि  वो किसके साथ रहे या किसका विरोध करे.? मध्यप्रदेश में महात्मा गांधी की हत्या के आरोपी नाथूराम गोडसे की प्रतिमा को माल्यार्पण करने वाले पूर्व पार्षद बाबूलाल चौरसिया को कांग्रेस में शामिल करने का मामला हो या बंगाल में आईएसएफ से चुनाव गठबंधन करने का मामला ,कांग्रेस के असमंजस को उजागर कर रहे हैं .
मैंने जिन दो मामलों का जिक्र किया उनका कांग्रेस में अलग-अलग स्तर पर विरोध हो रहा है. मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने चौरसिया को कांग्रेस में प्रवेश दिया है और बंगाल के अजीत रंजन चौधरी ने आईएसएफ से चुनावी गठबंधन  किया है .दोनों ही जगह कांग्रेस के ही कार्यकर्ता इन फैसलों का विरोध  कर रहे हैं लेकिन कांग्रेस हाईकमान इस मामले में मौन  है .इससे लगता है कि  कांग्रेस का संभ्रम   कम होने के बजाय दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है .कांग्रेस की वरिष्ठ पीढ़ी के नेता आनंद शर्मा को बंगाल में आईएसएफ से चुनावी गठबंधन पर आपत्ति है तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव को बाबूलाल चौरसिया के कांग्रेस में लिए जाने से शिकायत है.आईएसएफ के पीरजादा अब्बास उर्फ़ भाईजान कांग्रेस के साथ खड़े कांग्रेस के ही नेताओं को नहीं सुहा रहे 
 पिछले सात साल में कांग्रेस ने रपटना शुरू किया तो ऐसी रपटी कि सम्हलना ही भूल गयी .देश को एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है और कांग्रेस इस कमी को पूरा करने की स्थिति में बची नहीं है .कांग्रेस के अलावा कोई भी दूसरा राजनीतिक दल आज की तारीख में सत्तारूढ़ भाजपा को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है .देश में बीते सौ दिन से चल रहा शांतिपूर्ण किसान आंदोलन लगातार जन असंतोष के संकेत दे रहा है किन्तु कांग्रेस कुछ समझने की स्थिति में जैसे है नहीं .किसान आंदोलन आज की स्थिति  में सर्वदलीय है ,लेकिन इसे एक मजबूत नेतृत्व की जरूरत है .
आने वाले महीनो  में बंगाल,असम,तमिलनाडु,केरल और पुडुचेरी में विधानसभा के चुनाव हैं लेकिन कांग्रेस इन चुनावों के लिए भी आक्रामक रूप से तैयार नहीं दिखाई दे रही. ऐसे में कांग्रेस का टूटना,बिखंडित होना ही ज्यादा संभावित नजर आता है .राजीव गांधी के साथ की पीढ़ी अब राहुल आंधी के साथ कदमताल करने को राजी नहीं है और राहुल गांधी इस पुरानी पीढ़ी के सामने लगातार आदरभाव दिख-दिखाकर हार चुके हैं .मुझे अक्सर लगता है कि कांग्रेस अपने ही भ्रम के बोझ से टूटती ,छीजती जा रही है .कांग्रेस के अनेक हिस्से होचुके हैं और अलग हुए नेताओं को  जहाँ-तहाँ शरण भी मिल रही है.
पिछले कुछ वर्षों में सबसे जयादा दलबदल करने वाली भाजपा में दूसरे दलों के नेताओं,कार्यकर्ताओं को साथ लेने को लेकर कोई उलझन नहीं है. भाजपा में कल तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी गरियाने वाला ससम्मान लिया जा सकता है ,लेकिन कांग्रेस में हर नए फैसले पर  विवाद है .आज आनंद शर्मा जिस आएएसएफ से तालमेल का विरोध कर रहे हैं उन्हें ही शायद पता नहीं है कि कांग्रेस ने कितनी बार और कहाँ-कहाँ आएएसएफ जैसे संगठनों से चुनावी करार किये हैं .शर्मा जी वरिष्ठ नेता हैं केंद्र   में मंत्री रहे हैं इसलिए उन्हें कांग्रेस का अतीत बताना मुझे जंचता नहीं हैं .
आने वाले दिनों में कांग्रेस में उछलकूद और तेज होगी.जो मन से हार चुके हैं वे कांग्रस के नेता अगले आम चुनावों से पहले ही कांग्रेस से किनारा कर या तो अपने घर बैठ जायेंगे या फिर भाजपा की गोदी में बैठकर अपने भविष्य को नए सिरे से गढ़ने का प्रयास करेंगे .ये स्वाभाविक भी है,और इस पर हैरानी  नहीं दिखाई देना चाहिए .मै देख रहा हूँ कि सत्तारूढ़ भाजपा कांग्रेस   को तनखीन बनाने के लिए हर तरीका अपनाने पर आमादा है लेकिन उसकी प्रतिद्वंदी कांग्रेस के पास भाजपा को जबाब देने के लिए कोई योग्य कार्यक्रम नहीं है .
दक्षिण के राज्यों में कांग्रेस की डूबती नाव को बचाने के लिए राहुल गाँधी और उनकी बहन प्रियंका बाड्रा खून - पसीना बहा रहे हैं लेकिन सबका सब भाजपा की आक्रमकता  के सामने नगण्य है.दक्षिण और बंगाल में भाजपा के पास हालांकि खोने के लिए कुछ ज्यादा नहीं है लेकिन भाजपा पूरे उत्साह के साथ चुनाव मैदान में है .साम,साम,दंड और भेद का इस्तेमाल करने वाली भाजपा को इसका हासिल मिलेगा ही .मिलना भी चाहिए क्योंकि जब देश को डूबने से बचाने के मामले में विपक्ष एक है ही नहीं तो कोई क्या कर सकता है .
कांग्रेस के सामने दोहरी चुनौतियाँ हैं.एक तरफ कांग्रेस को अपने खोये हुए किले जीतना है वहीं दूसरी तरफ विपक्ष को एक करने का दायित्व है .कांग्रेस फिलहाल दोनों ही मोर्चों पर फिसड्डी साबित हो रही है .मुझे कांग्रेस में अब गंभीर और असरदार नेताओं की कमी साफ़ खलने लगी है .अब राष्ट्रीय स्तर पर अपना वजूद रखने वाला कोई नेता है ही नहीं .यही संक्रमणकाल कांग्रेस को नए अवसर दे सकता है ,पर कांग्रेस के सामने जनता जीत की थाली सजाकर रखने वाली नहीं है .कांग्रेस को खुद हाथ बढ़ाना होगा .पुराने साथियों को संगठित करने के साथ ही नए साथी भी तलाश करने होंगे .
आज का विपक्ष भयाक्रांत विपक्ष है. विपक्ष के पीछे सरकार ने अपनी तमाम एजेंसियों को लगा रखा है .सत्तारूढ़ भाजपा का हरेक दल के नेता की पूछ   पर पैर रखकर खड़ी है.बसपा,सपा,जेडीयू जैसे दल इस समय मूषक बने हुए हैं ,आप कह सकते हैं कि अधिकांश क्षेत्रीय दलों के नेताओं को जैसे सांप सूंघ   गया है .क्षेत्रीय नेता अचेतावस्था में है. जिनके होश अभी पूरी तरह से खोये नहीं हैं वे अपने-अपने खोलों में जा छिपे हैं .पिछले दो दशकों में भाजपा को छोड़ कोई दूसरा दल राष्ट्रीय दल के रूप में जनता के बीच उपस्थित नहीं हो पाया है .आखिर जनता जाये तो जाये कहाँ ?
देश में कोरोना और किसान आंदोलन के बाद मंहगाई  सबसे बड़ा मुद्दा है. महंगाई की आग ने आम आदमी की रसोई से लेकर ट्रेक्टर और कारों तक में आग लगा रखी है लेकिन मजाल है कि सड़क से संसद तक कहीं ऐसा कोईआंदोलन खड़ा हुआ हो जिससे कि केंद्र की सत्ता की शीतनिन्द्रा टूटे .विपक्ष की अनुपस्थिति ऐसे संकट के समय में बहुत अखरती है.अखरती ही नहीं बल्कि चुभती है .विपक्ष की अनुपस्थिति और जनता के मौन ने देश की सत्ता को निरंकुश ही नहीं बल्कि पहले से ज्यादा बर्बर बना दिया है .सत्ता जनादेश को ही नहीं जन-गण,मन को अपने पांवों टेल रोंदती हुई अपना विजय का अश्वमेघ रथ दौड़ाये चली जा रही है. अब राजनीति में कोई ऐसा लव-कुश नहीं दिखाई देता जो इस रथ को रोके ,उससे लाडे और जनता को निराशा के जहरीले गर्त से बाहर निकाले .
@ राकेश अचल

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