उतरौला (बलरामपुर) आर्यसमाज के 88वें वार्षिकोत्सव के पहले दिन वैदिक सम्मेलन में विद्वानों-विदुषी ने वेदों के सिद्धांतों को अपनाने पर जोर दिया। दिल्ली से आए कुलदीप भाष्कर ने कहा कि विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद है। वेद जीवन यापन करने, चिकित्सा की विधाएं, रण कौशल का संदेश देते हैं। 
वेदों के अनुरूप आचरण करने वाला व्यक्ति जीवन में कभी भी असफल नहीं हो सकता। पानीपत की नीलम शास्त्री ने वैदिक आचरण को परिवार व समाज में एक समान रूप से प्रयोग करने का उपदेश देते हुए कहा कि वेद में लिखे गए श्लोक परमात्मा की वाणी हैं। ईश्वर से साक्षात्कार करने के लिए वैदिक जीवन को अपने भीतर जगाने की जरूरत है। लखनऊ के दिनेश कुमार शर्मा ने कहा कि प्राचीनकाल में भारत को विश्व गुरु, सोने की चिड़िया इसी लिए कहा जाता था क्योंकि उस समय के लोग वेदानुकूल आचरण कर शतायु होते थे। वेदों में हर समस्या का समाधान है। बहराइच के भजनोपदेशक ठाकुर प्रसाद आर्य ने भजनों के माध्यम से परमात्मा की पूजा, दुखी मानवता की सेवा व सामाजिक दायित्वों के निर्वहन का संदेश दिया। आचार्य विमल ने कहा कि बाहरी आक्रांताओं ने हमारे नालंदा तक्षशिला जैसे विश्व प्रसिद्ध पठन-पाठन वाले केंद्रों को हानि पहुंचाकर पाश्चात्य संस्कृति को पैदा कर दिया जिससे हमारी पीढ़ी अपनी संस्कृति से दूर हो रही है। हमें पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण छोड़कर प्राचीन भारतीय संस्कृति को अपनाने की जरूरत है। 
दिलीप आर्य, सुरेंद्र प्रताप, श्रवण कुमार, रामदेव आर्य, सचिन कुमार, सुधांशु, सतीश चंद्र का विशेष सहयोग रहा।
असगर अली 
उतरौला 

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