बीएचयू के सामाजिक विज्ञान संकाय में बनारस के पारंपरिक लक्खा मेलों की पढ़ाई होगी। रथयात्रा मेला, तुलसी घाट की नाग-नथइया, चेतगंज की नक्कटैया, नाटी इमली का भरत मिलाप, रामेश्वर का लोटा-भंटा मेला और देवदीपावली के इतिहास और वर्तमन पर अध्ययन किया जाएगा। इसके लिए संकाय के इतिहास विभाग में काशी अध्ययन पाठ्यक्रम शुरू होगा। इसके अलावा आर्काइवल स्टडीज एंड मैनेजमेंट और डायस्पोरा स्टडीज के पाठ्क्रम भी शुरू होंगे।
इन सभी पाठ्यक्रमों का स्वरूप निर्धारण करने के लिए बनाए गए विशेषज्ञों के पैनल ने हरी झंडी दे दी है। कुलपति द्वारा गठित पैनल में पद्मश्री डॉ. राजेश्वर आचार्य, कल्चरल क्रिटिक पं. अमिताभ भट्टाचार्य और पद्मश्री मालिनी अवस्थी भी पैनल में शामिल हैं। इन सभी के सुझाव पर काशी स्टडी में बनारस को व्यापक संदर्भों में पढ़ाया जाएगा। तुलसी, कबीर, बुद्ध, विवेकानंद, जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ, अशोक महान से लेकर मध्य और आधुनिक भारत के प्रमुख व्यक्तित्वों की काशी यात्रा और उसके प्रभाव को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा। आर्काइवल स्टडीज में स्नातकोत्तर कोर्स के तहत करीब 45 सीटें बीएचयू में नए सत्र से आ सकती है। इस कोर्स में यूजी और पीजी के डुअल डिग्री कोर्स भी चलाए जाएंगे। संकाय के डीन प्रो. कौशल किशोर मिश्र की अध्यक्षता में बनाई गई पाठ्यक्रम निर्माण समिति में प्रो. केशव मिश्रा, प्रो. तबीर कालम, प्रो. रंजना शील और डॉ. ध्रुव कुमार सिंह भी शामिल हैं।
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