उतरौला (बलरामपुर) उतरौला कस्बे़ के मुख्य मार्ग से सटा हुआ उत्तर दिशा में हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक श्री दुःखखहरण नाथ मंदिर जो लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है! उसका निर्माण उतरौला के राजा नेवाज अली खां ने करवाया था! 
उन्होंने मंदिर के ठीक आगे एक पक्के पोखरे का भी निर्माण कराया! हिंदू धर्मावलंबियों के अनुसार भगवान शंकर को महादानी का दर्जा दिया गया है! वही मां पार्वती का पूजन करके महिलाएं भी अपनी मनोकामना पूर्ण होने की कामना करती है! महाशिवरात्रि के अवसर पर जलाभिषेक करने वाले हजारों श्रद्धालुओं द्वारा भगवान शंकर के शिवलिंग पर भांग, धतूरा, फल, दूध, व गंगा जल अर्पित किए जाते हैं ! वहीं महिलाएं व्रत रखकर अपने परिवार के सुख शांति की कामना करती है! इस मंदिर पर पूर्व काल से ही कजरी तीज, शिवरात्रि व सावन महीने में बड़े धूमधाम से मेला लगता है और हजारों लोग फूल, माला, धतूर, भांग चढ़ा कर अपने आराध्य देव भोलेनाथ को दूध से नहलाते हैं! इस मंदिर के बारे में मौजूदा महंत पुरुषोत्तम गिरि बताते हैं कि राजा नेवाज अली खां के शासनकाल में जयकरन गिरि नामक संत यहां पर आश्रम बनाकर रहते थे! उस समय यह स्थान जंगल के रूप में झाड़ झंकार से भरा है था मां तुझे गिरी महंत जयकरण गिल द्वारा आश्रम पर आने वाले लोगों को वह धार्मिक व आध्यात्मिक किससे सुनाया करते थे जिसको सुनकर राजा ने वाजली खान स्वयं महात्मा से मिलने आए और उनकी सीधी से प्रभावित होकर उनकी इच्छा पर्व पीले की टीले की खुदाई कराई कई दिनों की खुदाई के बाद टीले के नीचे पत्थर के घेरे में उत्तर की ओर झुका हुआ एक शिवलिंग मिला साथ ही मां पार्वती मुर्तिया मिली राजा नेवाज अली खां ने शिवलिंग को सीधा करवाने का अथक प्रयास किया लेकिन वह सीधा नहीं हो सका तत्पश्चात उन्होंने हाथी की व्यवस्था कर उसमें जंजीर बनवा कर खींच वाया परंतु शिवलिंग अपनी जगह से नहीं हिला इस आश्चर्य को देखकर राजा नेवाज अली का खिलखिला कर हंसते रहे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उनकी चेतना लुप्त सी हो गई हो काफी देर बाद जब राजा संतुलित हुई है तो उन्होंने पुजारी महात्मा संत जय गिरी करण गिरी के सामने शिवलिंग को नमन किया और उसी रात महात्मा ने स्वप्न देखा की शिवलिंग को यथावत रहने दिया जाए महात्मा ने दूसरे दिन राजा को स्वप्न की बात बताई फिर शिवलिंग को यथावत छोड़ कर शिवाला व कुंड का निर्माण राजा द्वारा कराया गया जो अब तक हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक बना हुआ है बाबा जय करण गिरी के प्राण त्यागने के बाद उनकी समाधि मंदिर के अंदर आज भी मौजूद है आज महंत की चौथी पीढ़ी के पुत्र महंत पुरुषोत्तम गिरी के बाद उनके जेष्ठ पुत्र महंत मयंक गिरी पूजा अर्चना करते हैं आज भी दुःखखहरण नाथ मंदिर अपने प्राचीन वैभव को संजोये हुए है हालांकि आज भी दान करने वालों की कमी नही है। मंदिर के सामने स्थित कुण्ड के बीच  पूर्व के उतरौला निवासी सरदार हमेन्द सिंह की मनोकामना पूर्ण होने पर उन्होंने विशाल शिव मंदिर की स्थापना करवाया।
असगर अली 
उतरौला 

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