जौनपुर। शहर के रामघाट पर बुधवार को लोग एक नई शुरुआत के गवाह बने। सामाजिक रुढ़ियों को तोड़कर बेटी ने बेटे का फर्ज निभाया और दिवंगत पिता को मुखाग्नि दी। इस कठिन वक्त में उसका हौसला बढ़ाने के लिए कोई भी अपना पास नहीं था। फिर भी वह कर्तव्य पथ से डिगी नहीं। आंखों से बहती आंसूओं की धार के बीच उसने पिता की चिता को अग्नि दी तो हर कोई फफक पड़ा। 

बगीचा उमरखान मोहल्ला (उर्दू बाजार) निवासी शिव कुमार साहू (35) हलवाई का काम करते थे। यही उनकी आजीविका का जरिया था। लंबे समय से बीमारी के कारण वह बिस्तर पर थे। मंगलवार की देर रात उन्होंने दम तोड़ दिया। पत्नी काफी पहले ही छोड़कर चली गई थी। पिता कामता साहू भी बीमार हैं और मुंबई में बेटियों के पास थे। घर पर शिवकुमार के अलावा मंदबुद्धि मां व बेटी मीरा (13) ही थीं। शिवकुमार की मौत के बाद से दोनों का रो-रोकर बुरा हाल था। उनके पास न तो अंतिम संस्कार के लिए पैसे थे और न ही कुछ सोचने-समझने की हिम्मत। पास-पड़ोस और मोहल्ले के लोगों ने पहल की तो कुछ पैसा एकत्रित कर अंतिम संस्कार के लिए सामान जुटाए। समस्या यह थी कि शिवकुमार की चिता को मुखाग्नि कौन दे। कोई बेटा नहीं था और पिता भी मुंबई में बीमार हाल में थे। उन्हें आने में दो से तीन दिन का समय लगता। तब तक शव को सुरक्षित रखना चुनौतीपूर्ण था। लोग जब तक कोई निर्णय ले पाते कि 13 वर्षीय बेटी मीरा आगे आई और खुद पिता का दाह संस्कार करने की बात कही। उसके इस फैसले से एकबारगी तो मोहल्ले के लोग सकते में आ गए, मगर फिर बेटी के हौसले को सराहते हुए शव श्मशान घाट ले गए। रामघाट पर सजी चिता को बेटी ने मुखाग्नि दी तो लोगों की आंखों में आंसू थे। हर कोई बेटी के साहस की सराहना कर रहा था। मोहल्ले के विशाल वर्मा, पवन मोदनवाल, गुड्डूू सेठ आदि ने बताया कि मीरा के कदम वाकई सराहनीय है। ऐसी बेटियां समाज के लिए नजीर हैं।
ब्यूरो चीफ अमित कुमार श्रीवास्तव जौनपुर

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