मिर्जापुर। यूपी सरकार की ओर से आलू के दाम बढ़ाने के प्रस्ताव से किसानों में उम्मीदें बढ़ गई हैं। किसानों का मानना है कि आलू की खेती में जितनी लागत व परिश्रम हो रहा है, उसकी अपेक्षा कोई फायदा नहीं मिल रहा। सीजन के दौरान छह सौ रुपये प्रति क्विंटल की दर से व्यापारियों की ओर से आलू खरीदे जा रहे हैं।
नरायनपुर व सीखड़ विकास खंड आलू की खेती के लिए मशहूर हैं। सीखड़, जमुहार, रैपुरिया के अलावा अन्य क्षेत्रों में इन दिनों आलू की खोदाई कार्य तेजी से चल रहा है। गौर करें तो इस वर्ष जिले में पांच सौ हेक्टेयर क्षेत्रफल में आलू की खेती की गई है। जिससे 1200 मिट्रिक टन पैदावार होने की उम्मीद जताई जा रही है। नरायनपुर विकास खंड के रैपुरिया निवासी किसान मुन्नालाल सिंह की मानें तो जितनी लागत आ रही है। उतना फायदा नहीं मिल रहा है। कहा कि एक विघा आलू की खेती के लिए बीज, डाई, यूरिया, कीटनाशक दवाईयां और जोताई-बोआई को मिलाकर एक विघा की लागत लगभग 40 हजार रुपये हो रहे हैं। यदि 80 क्विंटल आलू पैदा हुआ तो आज के रेट के मुताबिक किसानों की आमदनी को भलीभांति आंका जा सकता है। सीखड़ विकास खंड के गोड़इया गांव निवासी किसान नरेंद्र मिश्रा का कहना है कि सीजन से पहले आलू का रेट कुछ रहता है। सीजन आते ही आलू का रेट कुछ हो जाता है। कहा खेत से आलू ठेले पर पहुंचते ही महंगा हो जाता है। उन्होंने कहा कि सरकारी तौर पर यदि आलू का कम से कम 1500 रुपये प्रति क्विंटल हो तो शायद किसानों को कुछ लाभ हो।
नरायनपुर व सीखड़ विकास खंड आलू की खेती के लिए मशहूर हैं। सीखड़, जमुहार, रैपुरिया के अलावा अन्य क्षेत्रों में इन दिनों आलू की खोदाई कार्य तेजी से चल रहा है। गौर करें तो इस वर्ष जिले में पांच सौ हेक्टेयर क्षेत्रफल में आलू की खेती की गई है। जिससे 1200 मिट्रिक टन पैदावार होने की उम्मीद जताई जा रही है। नरायनपुर विकास खंड के रैपुरिया निवासी किसान मुन्नालाल सिंह की मानें तो जितनी लागत आ रही है। उतना फायदा नहीं मिल रहा है। कहा कि एक विघा आलू की खेती के लिए बीज, डाई, यूरिया, कीटनाशक दवाईयां और जोताई-बोआई को मिलाकर एक विघा की लागत लगभग 40 हजार रुपये हो रहे हैं। यदि 80 क्विंटल आलू पैदा हुआ तो आज के रेट के मुताबिक किसानों की आमदनी को भलीभांति आंका जा सकता है। सीखड़ विकास खंड के गोड़इया गांव निवासी किसान नरेंद्र मिश्रा का कहना है कि सीजन से पहले आलू का रेट कुछ रहता है। सीजन आते ही आलू का रेट कुछ हो जाता है। कहा खेत से आलू ठेले पर पहुंचते ही महंगा हो जाता है। उन्होंने कहा कि सरकारी तौर पर यदि आलू का कम से कम 1500 रुपये प्रति क्विंटल हो तो शायद किसानों को कुछ लाभ हो।
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts, please let me know