लोक कला संग्रहालय के प्रांगण में शहीद दिवस के अवसर पर दीप प्रज्जवलन
एवं पुष्पांजलि आयोजित की गयी
                                               लखनऊ, दिनांकः 23 मार्च, 2021
लोक कला संग्रहालय, लखनऊ की शैक्षिक कार्यक्रम शहीद दिवस के अन्तर्गत आज दिनांक 23 मार्च, 2021 को संग्रहालय प्रांगण में ‘‘दीप प्रज्जवलन एवं पुष्पांजलि‘‘ का आयोजन पूर्वान्ह 11ः00 बजे किया गया। आजादी के मतवाले शहीद भगत सिंह की जयंती आज कृतज्ञ राष्ट्र कर रहा है, उन्हें याद पूरा देश क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह की जयंती मना रहा है। देश में क्रांति लाने के मजबूत इरादों से अंग्रेजों के शासन को झकझोर कर रख देने वाले क्रांतिकारी नौजवान को आज कृतज्ञ राष्ट्र याद कर रहा है। राष्ट्र में उनकी जयंती पर सभी देशवासी उन्हें याद कर अपनी श्रंद्धाजलि दी है। लोक कला संग्रहालय, लखनऊ के अधिकारी, कर्मचारियों ने भी अपनी श्रंद्धाजलि दी है।
      शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को जिले लायलपुर बंगा में हुआ था। हर भारतीय की तरह भगत सिंह का परिवार भी आजादी का पैरोकार था, उनके चाचा अजीत सिंह और श्वान सिंह आजादी के मतवाले थे। करतार सिंह सराभा के नेतृत्व में गदर पार्टी के सदस्य थें। भगत सिंह ने 14 वर्ष की उम्र में ही सरकारी स्कूलों की पुस्तकें और कपड़े जला दिए। जिसके बाद अंग्रेजों द्वारा भगत सिंह के पोस्टर गाॅवों में छपने लगे।
      13 अप्रैल 1919 को जालियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह पर अमिट छाप छोड़ा इसके बाद इन्होने अपनी पढाई छोड़ दी और 1920 में महात्मा गाॅधी के अहिंसा आंदोलन में शामिल हो गए। इस आंदोलन में गाॅधी जी विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर रहे थें। लेकिन जब 1921 में चैरी-चैरा कांड के बाद गाॅधी जी ने हिंसा में शामिल सत्याग्रहियों का साथ नही दिया। इसके बाद अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व में बने गदर दल में शामिल हो गए। 09 अगस्त 1925 को सरकारी खजाने को लूटने की घटना में भी उन्होंने अपनी भूमिका निभाई। यह घटना इतिहास में काकोरी कांड नाम से मशहूर है। इसमें उनके साथ रामप्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आजाद जैसे कई क्रांतिकारी शामिल थें भगत सिंह ने राजगुरू के साथ मिलकर 17 दिसम्बर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहें अंग्रेज अधिकारी जे0पी0 सांडर्स की हत्या कर दी थी। इस हत्या को अंजाम देने में चन्द्रशेखर आजाद ने उनकी मदद की।
      अंग्रेजों की सरकार को नींद से जगाने के लिए उन्होंने 08 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेंबली के सभागार में बम और पर्चे फेकें थे। इस घटना में भगत सिंह के साथ क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त भी शामिल थे। लौहार षडयंत्र केस में भगत सिंह, सुखदेव, और राजगुरू को फांसी की सजा सुनाई गयी और बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया। भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 के शाम 7 बजे सुखदेव और राजगुरू के साथ फांसी पर लटका दिया गया। तीनों ने हॅसते-हॅसते देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।

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