असहमति पर  सुप्रीम कोर्ट का फैसला 
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फारुख को नहीं ,देश को राहत  
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हमारे देश की न्याय व्यवस्था जब-जब विश्वास के संकट के भंवर में फंसती है तब-तब एक न एक फैसला ऐसा आ ही जाता है जो पूरी न्याय व्यवस्था को अविश्वास के भंवर  से बाहर निकाल लेता है .पूर्व केंद्रीय मंत्री और जम्मू-कश्मीर के वयोवृद्ध नेता डॉ फारुख अब्दुल्ला के खिलाफ एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने असहमति को देशद्रोह मानने से इंकार कर न केवल डॉ फारुख अब्दुल्ला को राहत दी है बल्कि देश के उन करोड़ों भारतीयों को राहत दी है जो मौजूदा सरकार के फैसलों से असहमत हैं  और सड़कों पर अपनी असहमति जता रहे हैं .
इस समय एक कड़वी हकीकत ये है कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पिछले सात सालों से लगातार जन असंतोष का सामना करती आ रही है. सरकार की तमाम सफलताएं इस असंतोष के कारण धूमिल पड़ गयीं क्योंकि केंद्र सरकार ने जन असंतोष यानि असहमति को देशद्रोह मानना शुरू कर दिया और जहाँ भी असहमति के स्वर उभरे उन्हें क़ानून के बल पर कुचलने की कोशिश की .देश के असंख्य असहमत लोगों में से डॉ फारुख अब्दुल्ला भी एक हैं .उन्होंने जम्मू-कश्मीर से धारा 370  हटाने के खिलाफ एक ब्यान दिया था जिसे याचिकाकर्ता ने देशद्रोह कहा था. 
 एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार की राय से अलग और विरुद्ध राय रखने वाले विचारों की अभिव्यक्ति को देशद्रोही नहीं कहा जा सकता. कश्मीर में धारा-370 खत्म होने के बाद फारूक के अनुच्छेद 370 को लेकर कुछ बयान दिए थे, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी. याचिका में फारूक अब्दुल्ला के बयान को देखते हुए उन पर देशद्रोह का मामला दर्ज किए जाने की मांग की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद ना सिर्फ फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाने वाली याचिका को खारिज कर दिया बल्कि याचिकाकर्ता रजत शर्मा पर 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है. इस याचिका में आरोप लगाया गया कि फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर अनुच्छेद-370 की बहाली के लिए चीन से मदद लेने की बात कही थी. जब कोर्ट ने आरोप साबित करने को कहा तो वह साबित नहीं कर सके. फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है.ध्यान रहे की ये रजत शर्मा इंडिया टीवी वाले रजत शर्मा नहीं हैं लेकिन इनकी और उनकी और सरकार की धरना असहमति को लेकर लगभग एक जैसी है .
असहमति को लेकर ये फैसला तो अब आया है लेकिन माननीय सुप्रीम कोर्ट के अनेक जज और वकील हमेशा से असहमति के अधिकार के पक्ष में बोलते  आ रहे हैं लेकिन सरकार असहमति के अधिकार को लोकतांत्रिक अधिकार मानने के बजाय इसे देशद्रोह  मानने पर आमादा है .सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस दीपक गुप्ता ने  कहा कि असहमति का अधिकार लोकतंत्र के लिए आवश्यक है और कार्यकारिणी, न्यायपालिका, नौकरशाही तथा सशस्त्र बलों की आलोचना को ‘राष्ट्र-विरोधी’ नहीं कहा जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित  ‘लोकतंत्र और असहमति’ पर एक व्याख्यान देते हुए जस्टिस गुप्ता ने कहा कि जब असहमति की बात आती है तब किसी को पाक साफ नहीं ठहराया जा सकता है.उन्होंने कहा कि असहमति का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त ‘सबसे बड़ा’ और ‘सबसे महत्वपूर्ण अधिकार’ है और इसमें आलोचना का अधिकार भी शामिल है. उन्होंने कहा, ‘असहमति के बिना कोई लोकतंत्र नहीं हो सकता.’.पिछले सात साल में सरकार से असहमत लोग लगातार जेलों में ठूंसे जा रहे हैं. उन्हें शहरी नक्सली बताया जाता है, और न जाने किस-किस गिरोह का सदस्य बताकर उनकी आलोचना  की जाती है .दुर्भाग्य ये है कि ये तमाम लोग देश की सबसे बड़ी अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा सकते .
देश का दुर्भाग्य देखिये कि असहमति   को देशद्रोह बताने का ये अभियान भूतलक्षी प्रभाव से चलाया जा रहा है. प्रधानमंत्री से लेकर उनकी पार्टी का वार्ड स्तर का नेता तक देश के पहले प्रधानमंत्री से लेकर आज के कांग्रेस के नेताओं को देशद्रोही कहने में संकोच नहीं करते .बड़े मुंह से छोटी बातें की जा रहीं है,छोटे से मुंह से बड़ी बातें तो अब कोई करता ही नहीं है .असहमति का जिस तरिके से मान-मार्डन पिछले सात साल में हुआ है वैसा देश में केवल एक बार आपातकाल के दौरान हुआ था किन्तु गनीमत थी कि तब की तानाशाही ने असहमत लोगों को देशद्रोही नहीं माना था .
भारत बहुत बड़ा देश है,यहां जब तक सचमुच में देशद्रोह के मामले उजगर होते हैं लेकिन इन मामलों में न राजनीतिक लोग शामिल होते हैं और न बुद्धिजीवी.जो होते हैं ,वे पकडे जाते हैं और उनके साथ कोई खड़ा भी नहीं होता.लेकिन आज तो आप किसान के साथ खड़े हो जाइये तो देशद्रोही मान लिए जायेंगे,मजदूर के साथ खड़े हो जाइये तो भी देशद्रोही कहे जायेंगे और तो और आप मंहगाई के खिलाफ आवाज बुलंद कीजिये तो भी आपको देशद्रोही मान लिया जाएगा .बुंदेलखंड में एक कहावत है कि 'श्वान को सपने में भी सामने खड़ा व्यक्ति हाथ में ईंट लिए दिखाई देता है'.यही हाल हमारी सरकार की है.हर असहमत आदमी सरकार को देशद्रोही लगता है .
एक मजबूत सरकार यदि अपने आपको इतना असुरक्षित समझती है तो लुकमान हकीम भी इसका इलाज नहीं कर सकते .इसका इलाज जनता ही कर सकती है और जनता के पास ये मौक़ा केवल चुनावों के समय आता है ,लेकिन चुनाव भी अब ऐसा मायाजाल बन गए हैं कि फैसले की घड़ी के समय सब कुछ तर्क मेहता के उलटा चश्मा जैसा हो जाता है .अब सत्तारूढ़ पार्टी और सर्कार विधानसभा का चुनाव हो या नगर निगम का चुनाव आम चुनाव की तरह लड़ने लगी है. जनादेश के सामने धनादेश की ऐसी चकाचौंध कर दी जा रही है कि असहमति के स्वर भी  भ्रम में पड़ जाते हैं .
देश की सबसे बड़ी अदालत के ताजा फैसले का स्वागत करते हुए हमारी तो यही कामना है कि सरकारें असहमति के कारण देशद्रोही मानकर गिरफ्तार किये तमाम लोगों को फौरन रहकर तमाम मुकदमे वापस   लेकर देश में एक ऐसा वातावरण बनाये कि लोग असहमत हो सकें,सवाल कर सकें .मै फिर एक बार दोहराता हूँ कि हम यानि भारतीय एक प्रश्नाकुल समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं. हमारा साहित्य,संस्कृति और सभ्यता इसी प्रश्नाकुलता के कारण इतनी समृद्ध है कि हम विश्व गुरु होने का दावा कर पाते हैं .
@ राकेश अचल

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