पीछा करते सपनों की दुनिया
आज कुछ भी विवादास्पद नहीं लिखना चाहता .आज उन सपनों के बारे में लिख रहा हूँ जो आप,हम ,सब देखते हैं .सपनों की अपनी भाषा होती है.बहुत कम सपने होते हैं जो याद रह जाते हैं. जब हम बच्चे थे तब दादी अम्मा कहती थी की सुबह के समय यानि भोर के पहले के सपने सच्चे होते हैं .
सपनों के बारे में सबके अपने तजुर्बे हैं .मेरे भी हैं. सच कहूँ तो मै सपनों से ईर्ष्या करता हूँ. सपने बिना पासपोर्ट,वीजा के ,बिना सुरक्षा जांच के दुनियां में जहाँ जी चाहे वहाँ पहुँच जाते हैं .सपने गिरगिट की तरह रंग और नागरिकता नहीं बदलते. अगर आप भारतीय हैं तो आपके सपनों की भाषा भारतीय ही होगी.आप चीनी भाषा के सपने न देख सकते हैं और न वे चीन की तरह अरुणाचल को अपना समझकर वहां अपना कोई गांव बसा सकते हैं .
मुझे हैरानी होती है कि जब सपने बिन पग और कानों के दुनिया में अपनी पसंद की आँखों का चयन कर उनमें आना शुरू कर देते हैं. मै आजकल भारत में नहीं हूँ लेकिन मेरे सपनों में भारत की ही बातें सुनाई और दिखाई देते हैं .कल ही मेरे सपने में मेरे दिवंगत पिता खड़े थे अपने उस घर में जिसे छोड़े हुए हमें तीन दशक से ज्यादा हो चुके हैं .सपनों में टूटते ग्लेशियर,दिल्ली की देहलीज पर पड़े किसान,बंगाल में भाषण देते पंत प्रधान साफ़-साफ़ दिखाई देते हैं .
मुझे हैरानी होती है जब मुझे अमरीका में रहते हुए भी अमरीका के सपने नहीं आते.आएं भी कैसे सपनों ने अमरीका सपने में भी नहीं देखा होगा.मैंने कौन से अमरीका का सपना देखा था ?यहां भी भारतीय सपनों का आना इस बात का प्रमाण है कि अपन खालिस भारतीय हैं.भले ही अपना नाम किसी सीएए की पंजी में हो या न हो .सपने तो देश के किसान भी देख रहे हैं कि उनके लिए बनाये गए क़ानून आज हटे,कि कल ,लेकिन वे हट ही नहीं रहे .सपने देखने वालों को समझना चाहिए कि सपने हकीकत कम अफ़साना ज्यादा होते हैं .
सपनों की भाषा कभी -कभी एकदम सपाट और कभी-कभी बेहद उलझन भरी होती है. कभी तो सपने एकदम बेमेल आ जाते हैं .जैसे उमाश्री का सपना मध्य्प्रदेश को मद्यविहीन राज्य बनाने का है .मध्यप्रदेश में क्या देश में शराब बंदी का सपना तो महामना मोहनदास कर्म चाँद गाँधी ने भी देखा था,लेकिन उनका सपना भी सपना ही रह गया .आज देश में दवा की दूकाने,राशन की दुकाने,अस्पताल,स्कूल,पीने का पानी ,पोषण आहार केंद्र भले ही कम हों किन्तु दारू की दुकाने कदम-कदम पर हैं .अब ये सपना किसका सपना है,मै नहीं जानता .
कायदे से आदमी जहां हो,उसे वहां के सपने आना चाहिए,लेकिन सपने कायदे मानते कहाँ हैं ,वे भी हमारी लोकप्रिय सरकार जैसे हैं .उनके अपने कायदे हैं,अपने कानून हैं .जैसे कोई सरकार के हाँथ नहीं बाँध सकता ठीक उसी तरह कोई सपनों को दिशा-निर्देश नहीं दे सकता .सपने में मन के लड्डू फूटते हैं.सपने में आप मन की बातें कर सकते हैं,सुन सकते हैं .सपने आजाद पंछी की तरह होते हैं. वे अपनी पसंद की आँखों में अपने हिसाबसे आते-जाते हैं .
किसान को खेत-खलिहान और एमएसपी के सपने आते हैं .भूखी को सपने में फूली-फूली रोटियां दिखाई देतीं हैं.बेरोजगार को नौकरी और कुवांरे को छोकरी दिखाई देती है. राजा को सपने में बढ़ता हुआ साम्राज्य दिखाई देता है ,चोर को सिपाही और सिपाही को चोर दिखाई देता है .सपने मूल रूप से वे कहानियां और छवियां हैं जो हमारे दिमाग में तब आती है जब हम सोते हैं। सपने ज्वलंत हो सकते हैं। वे आपको खुश, दुखी या भयभीत महसूस करा सकते हैं। और वे भ्रमित या पूरी तरह से तर्कसंगत भी लग सकते हैं।सोने के दौरान कभी भी सपने आ सकते हैं। लेकिन सबसे ज्वलंत सपने गहरे, आरईएम (रैपिड आई मूवेमेंट) वाली नींद के दौरान देखे जाते हैं, जब मस्तिष्क सबसे सक्रिय होता है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि हम प्रति रात कम से कम चार से छह बार सपने देखते हैं।
शोधकर्ताओं को यह सुनिश्चित नहीं है कि क्यों सपनों को आसानी से भुला दिया जाता है। और हम सपने क्यों भूल जाते है शायद हम अपने सपनों को भूलने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं क्योंकि अगर हम अपने सभी सपनों को याद करते हैं, तो हम असली यादों से सपने को अलग करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं।इसके अलावा, सपनों को याद रखना मुश्किल हो सकता है क्योंकि आरईएम नींद के दौरान हमारा शरीर यादों को बनाने के लिए जिम्मेदार हमारे दिमाग के सिस्टम को बंद कर सकता है। हम केवल उन सपनों को याद रख सकते हैं जो हमें जागने से ठीक पहले होते हैं, जब कुछ मस्तिष्क गतिविधियों को वापस चालू कर दिया जाता है।
सपनों को लेकर मै अक्सर कहता हूँ कि सपने देखो और जागने में उनमने रंग भी भरो लेकिन जो सपने दुःस्वप्न हों उन्हें तत्काल भुला दो वरना वे ताउम्र आपको परेशां करते रहेंगे,जैसे अच्छे दिन आने का सपना ,हर घर को पंद्रह लाख रूपये मिलने का सपना .जैसे कांग्रेस का फिर से सत्ता में लौटने का सपना या जैसे गंगा का फिर से निर्मल होने का सपना .अच्छे सपने देखना अच्छी बात है लेकिन इतनी अच्छी भी नहीं कि फिर आप दूसरे सपने ही न देखें .
जैसे सपनों की रानी का सपना हमेशा सपना ही रहता है,रानी कभी सचमुच में आती ही नहीं है .जैसे लड़कपन के सपने सुहाने होते हैं लेकिन बाद में वे सुहाने नहीं रह जाते .यही हाल सपनों के राजा का होता है,उसकी जगह कोई और दाढ़ी बढ़कर आ जाता है जो कभी रविंद्र नाथ टाइगर सा दिखाई देता है तो कभी सुभाषचंद्र बोस जैसा तो कभी मोटी चाय वाले की तरह .यानि सपने न टिकाऊ होते हैं और न बिकाऊ ,वे ग्लेशियर की तरह कभी भी पिघल सकते है और टूट कर तबाही भी मचा सकते हैं .इसलिए हे भद्र जनों सपने देखो,जमकर देखो लेकिन सोते हुए देखो.जागते हुए सपना देखना राष्ट्रद्रोह है जैसे किसानों का आंदोलन .बहरहाल मेरे सपने में अभी तक न बराक ओबामा आये हैं और न डोनाल्ड ट्रैम्प,जो बाइडन के आने का तो सवाल ही नहीं उठता.कमला जिज्जी सपने में कब और कैसे आएंगी ,मै बता नहीं सकता,क्योंकि अमरीका में सब कुछ अपने यहां से भिन्न है .अमरीका में रहकर भी मुझे ग्वालियर के सपने आते हैं और मै इन्हें रोकता-टोकता भी नहीं हूँ .
@ राकेश अचल
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