नाम बदलने की संघी चाल 
*************************
कहावत है कि-' नाम में क्या रख्खा है ? 'लेकिन दुनिया में बहुत से लोग मानते हैं कि नाम में ही सब कुछ है ,यानि नाम नहीं तो कुछ भी नहीं .इसीलिए नाम कमाने के लिए लोग न जाने क्या-क्या कर गुजरते हैं .कोई कत्लेआम करता है तो कोई अपना सारा गुस्सा  बेजान इमारतों को खंड-खंड कर ठंडा कर लेता है .कलियुग में इसे संघ चाल कहते हैं .संघ चाल भेद चाल से थोड़ा हटकर होती है और इसे समझने के लिए आपको संघ चरितम का ज्ञान होना आवश्यक है .
भगवान राम का चरित जनमानस के बनाने वाले गोस्वामी तुलसीदास कहते थे कि कलियुग में केवल राम का नाम ही जीवन का सबसे  बड़ा आधार होगा .उनका आकलन सही था,राम का नाम जीवन के साथ -साथ राजनीति का भी आधार बन गया और भुनाया भी खूब गया .अब संघ पूरे देश में जहाँ-जहां उनकी भाजपा की सरकारें हैं नाम बदलने की मुहीम में लगा हुआ है .नाम बदलने का काम वे शक्तियां करतीं हैं जो अपना खुद का नाम नहीं कमा पातीं .संघ का तुर्रा कहिये या तर्क कि गुलामी के जितने भी चिन्ह या अवशेष हैं उन्हें मिटा दिया जाना ही श्रेयस्कर है .
पिछले कुछ वषों में अनेक शहरों के नाम बदले गए. बहन मायावती ने संघ से प्रेरित होकर उत्तर प्रदेश के अनेक शहरों  के नाम बदल दिए थे.बचीखुची कसर योगी आदित्यनाथ महाराज ने कर दी .उन्होंने किसी शहर को उसका सनातन नाम दे दिया तो किसी को पंडित दीनदयाल बना दिया .नाम बदलने से न तो शहरों के चरित्र बदले न चाल,चेहरा बदलने का तो सवाल ही नहीं उठता .अल्लाहाबाद से इलाहबाद हुआ शहर फिर से कागजों में प्रयाग हो गया लेकिन वहां जो कल होता था सो आज हो रहा है .मुगलों की सराय को यूपी सर्कार ने दीनदयाल नगर बना दिया लेकिन इस शहर की हालत किसी सराय से भी बदतर है .
नाम  बदलने का सिलसिला मंथर गति से आगे बढ़ रहा है. कहते हैं न कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है ,सो अब यूपी के बाद हमारे एमपी में भी होशंगशाह  द्वारा आबाद किये गए होशंगाबाद का नाम बदलकर नर्मदापुरम करने का सरकारी संकल्प कर लिया गया है .हिमाचल वाले भी आगे पीछे डलहौजी का नाम बदलकर श्यामाप्रसाद की पहाड़ी रख दें तो कोई हैरानी नहीं होना चाहिए .
हमारे यहां तो नामकरण एक संस्कार है और इसका पूरा विधि-विधान है लेकिन संघप्रिय या संघदक्ष सरकारें नामकरण को शायद संस्कार नहीं मानतीं इसलिए वे जब चाहे तब किसी भी शहर का नाम बदल देतीं हैं. मेरे ख्याल से देश में शहरों के नाम बदलने का भी एक विधान होना चाहिए .एक पैमाना होना चाहिए .भारत में मुगलों और अंग्रेजों के जमाने में बनाये गए शहरों,गांवों,गलियों और मुहल्लों के नाम अब संघदक्ष  सरकारों की आँखों में किरकिरी बनकर खटकने लगे हैं .इस नए नेत्ररोग का इलाज बहुत जरूरी है .
मै जब युवा था तब अपने एक कवि मित्र के आग्रह पर संघ की शाखा में ध्वजप्रणाम करने गया था ,लेकिन मेरी हैसियत एक पर्यटक जैसी थी शायद इसलिए मै पत्रकार का पत्रकार रह गया,मीडिया प्रमुख या राजयसभा का सदस्य नहीं बन पाया .लेकिन ये मेरा नसीब हो सकता है किसी शहर की बदनसीबी नहीं .मै उन शहरों को बदनसीब मानता हूँ जिनके नाम मनमाने ढंग से बदले जा रहे हैं. अरे मियाँ ! नए शहर बसाइये,उनके नए और मनपसंद नाम रखिये ,सो किसी में तथा नहीं है .हमारे हश्र ग्वालियर में एक नया ग्वालियर बनाने का सपना तीस साल से सिसक रहा है .
सरकारों के लिए किसी भी शहर या गांव का नाम बदलना बहुत आसान काम है. इसके लिए न बजट प्रावधान करना पड़ता है और न कोई जनमत संग्रह करना पड़ता है ,बस  राजपत्र में एक अधिसूचना प्रकाशित करना पड़ती है .यानि हल्दी लगी न फिटकरी और रंग चोखा आ ही जाता है कुछ देर के लिए .संघ यदि गुलामी के तमाम चिन्हों,और स्मारकों से निजात पाना चाहता है तो उसे एक कार्ययोजना के तहत ये काम करना चाहिए. संघ के सौभाग्य से अभी देश में भाजपा की सरकार है .संह चाहे तो सरकार को कह सकता है कि देश के तमाम शहरों के नाम बदलने के लिए एक न्यायिक आयोग बनाया जाये जो पूरे देश में मुगलों और अंग्रेजों के समय में बसाये गए शहरों के नाम बदलने की एक प्रक्रिया तय करे,नामों की फेहरिस्त बना दे ,साथ ही ये तर्क भी दे कि ये नाम क्यों बदले जाना चाहिए और इससे देश को क्या लाभ होने वाला है .
आपको यद् दिला दूँ कि इस समय सरकारी पार्टी के पास देश के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश सर रंजन गोगोई जी भी हैं वे इस काम के लिए बनाये जा सकने वाले आयोग के प्रथम अध्यक्ष हो सकते हैं .सरकार 2023  तक इस आयोग से उसकी रिपोर्ट मांगा ले और अगले आम चुनाव से पहले जिन शहरों या गांवों के नाम बदले जाना हैं उन्हें बदल डाले,पता नहीं 2024  के बाद ऐसा करने का सुनहरा मौक़ा फिर मिले या न मिले .हमारे देश में अनेक राज्यों में गांवों के नाम सचमुच अशोभनीय हैं ,उनका उच्चारण करने में भी लज्जा आती है ऐसे गांवों का नाम बदलने का काम भी गुलामी के प्रतीक रहे शहरों का नाम बदलने के सतह किया जा सकता है .
मेरा पूरा यकीन है कि देश में जब तक माननीय मोदी जी हैड चौकीदार हैं तब तक सब कुछ मुमकिन ही.क्या किसी ने कंही सोचा था कि भारत जैसा विश्वगुरुता वाले देश में पेट्रोल सौ रूपये लीटर बेचा जाएगा ?लेकिन आज सौ रूपये प्रति लीटर की दर से पेट्रोल बिक आरहा है क्योंकि मिडी जी हैं तो सब कुछ मुमकिन है.डॉ मनमोहन सिंह थे तब ये नामुमकिन था .नामुमकिन को मुमकिन करना मोदी जी के बाएं हाथ का काम है .वे जब जम्मू-कश्मीर से धारा 307  हटा सकते हैं,तीन तलाक बंद करा सकते हैं,रामजन्म भूमि मंदिर का विवाद  दुनिया के सामने वे क्या देश के सौ-पचास शहरों का नाम नहीं बदल  सकते !बदल सकते हैं .शहरों का नाम बदलना या महंगाई को नंगा  नचाना कोई आसान काम नहीं है .
होशंगाबाद का नाम बदलकर  नर्मदापुरम रखने से माँ नर्मदा  तो खुश होने से रहीं,क्योंकि उनके किनारे बसने वाले सभी लोग तो एक जैसे  हैं ,नर्मदा की पाकीजगी को न होशंगशाह मिटा सका और न नर्मदा पर  जगह-जगह बाँध बनवाने वाले आधुनिक होशंगशाह .नर्मदा कल भी नर्मदा थी और आज भी है और सदियों तक रहेगी .नाम को तरसेंगे नामों से खिलवाड़ करने वाले .मै तो चाहता  कि होशंगाबाद का नाम बदलने से पहले वहाँ स्थित होशंगशाह की मस्जिद और उसके मजार को नेस्तनाबूद  किया जाए,आगरा,अलीगढ़ ,औबेदुल्लागंज ,फतेहपुर सीकरी ,हैदराबाद जैसे नाम भी जितनी जल्दी हो सके बदल दिए  जाएँ और ताजमहल जैसी इमारतें अडानी,अम्बानी को बेच दी जाएँ.इनके संरक्षण पर होने वाला प्रदेश सरकारों का कितना पैसा बचेगा आने वाले दिनों में .
@ राकेश अचल

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने