चलो प्रिय उस गगन  के  पार..

जहां ना हो  झूठी मुस्कान 
ह्रदय का  हो सच्चा श्रृंगार
रिश्तोँ की  फिर नजर उतार 
दिल की दुनिया में करे आराम
चलो.........

वहां मैं भूल जाऊं ग़म अपने
साकार  करू मन के  सपने
जहां कह सकू सारे एहसास
बयां करू दिल  के जज्बात
चलो...

जहां हकीकत और  ख्वाब 
मिलते हो दोनों  एक  साथ    दुआ जब   कभी मांगे तो 
जुड़े दोनों हथेलियां  साथ

देने    जीवन  को नया  अर्थ 
चले कही   मिलकर   संसर्ग
जहां छुपाया है दिल में  मैंने
ढूंढ  सको खुद को  तुम  वहाँ
 चलो....

अपनी चाहत की  गहराई  में
महका सको  तुम अक्स मेरा
अपनी ही परछाई में खोए जो  आकर पास देखो तो   ज़रा
चलो...

जहां ख्वाहिशों की बदली में
बरस जायूँ   बूंदों  की  तरह
मिट्टी  में   बिखरु  मै   ऐसे
 गुल में  खुशबू   की   तरह
चलो..
प्रियंका द्विवेदी 
मंझनपुर कौशाम्बी

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