शहरों में पशुओं की आवारगी का संकट 
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वैलेंटाइन दे के दिन मै भारत में आवारा पशुओं की समस्या पर लिख रहा हूँ .इसके पीछे असल कारण ये है कि मैंने कभी प्रेम किया ही नहीं .मुझे जब प्रेम करना चाहिए था तब मै दूसरी उलझनों में था और जब मै प्यार का मतलब समझा तब तक वेलेंटाइन दे मनाने की उम्र बिट चुकी थी .अब मै सबसे प्यार करता हूँ लेकिन आवारा पशुओं से मै आम भारतीय की तरह बहुत अधिक परेशान हूँ .
आंकड़े बताते हैं कि भारत में दुधारू पशुओं की तादाद 53  करोड़ से अधिक है और इसमें से एक बड़ी आबादी अनुपयोगी होने के बाद या तो वधशालाओं में काट दी जाती है या फिर सड़कों पर आवारगी के लिए छोड़ दी जाती है .भारत दुधारू पशुओं के मामले में शायद अमेरिका के बाद दुसरे स्थान पर है.कम से कम दुकगढ़ उत्पादन के मामले में तो है है लेकिन आवारा पशु अमेरिका में नजर नहीं आते जबकि भारत का शायद ही कोई ऐसा शहर हो जहाँ आवारा पशुओं के दर्शन न होते हों,यहाँ तक कि भारत के चार अब्दे महानगरों में आवारा पशु आपको नजर आ जायेंगे .दिल्ली,मुंबई,बैंगलौर और चेन्नई में गाय-भैंस न भी दिखें तो कुत्ते तो सड़कों पर नजर आ ही जायेंगे .
पशुओं की आवारगी गंदगी के साथ ही सबसे बड़ी समस्या यातायात के लिए है. आवारा पशुओं के मल्ल्युद्ध जानलेवा साबित हो रहे हैं.हर साल इसी वजह से कोई न कोई वृद्ध या बच्चा अपनी जान गंवा बैठता है .लेकिन आजतक स्थानीय प्रशासन इस समस्या का कोई स्थाई समाधान नहीं निकाल पाया .प्रेमी जोड़ों के पीछे लाठियां लेकर शिकारियों की तरह घूमने वाले बजरंगी भी इन आवारा पशुओं का कुछ नहीं बिगाड़ पाए .देश की हिंदुत्व प्रधान सरकारों ने लव-जिहाद के खिलाफ तो अध्यादेश जारी कर नए क़ानून बना लिए किन्तु पशुओं की आवारगी के खिलाफ न किसी के पास कोई क़ानून है और न इस आवारगी को  रोकने का कोई स्थाई तरीका .
भारत में आवारा पशुओं की समस्या किसी एक शहर या गांव की नहीं है. उत्तर प्रदेश में तो आवारा पशुओं से किसानों की फसलों को होने वाले नुक्सान का मामला लोकसभा तक में गूंजा लेकिन नतीजा वो ही ढाक के तीन पत्ते वाला है .मुझे याद आता है कि पिछले दिनों लुधियाना-बठिंडा मुख्य मार्ग पर एक ब्रिजा कार आवारा पशुओं से टकरा कर हादसा ग्रस्त हो गई थी। हादसे में दो सगे भाई प्रदीप सिंह, हरदीप सिंह और उनके एक दोस्त इंदरजीत सिंह की मौत हो गई थी। वहीं, आवारा पशुओं की समस्या का समाधान न करने पर लोग सरकार से काफी खफा हैं।उनका कहना है कि सरकार हमसे ' काऊ सैस ' तो लेती है लेकिन आवारा पशुओं की संभाल करने को कुछ भी नहीं करती। हर गली चौराहे सड़कों खेतों में घूम रहे हैं। आवारा पशु हर वर्ग के लिए बड़ी मुश्किल है। आवारा पशुओं से टकराने से बहुत सी कीमती जानें जा चुकी हैं।
मध्य्प्रदेश में एक मख्यमंत्री हुए थे बाबू लाल गौर,उन्होंने अपने कार्यकाल में इस समस्या से निबटने के लिए शहरों के बाहर ग्वाला गांव बसने कि पहल की थी ,लेकिन इस योजना पर कभी अमल नहीं हुआ.ग्वाला गांव के लिए चिन्हित जमीन और भू -माफिया निगल गया .भाजपा की प्रदेश सरकार ने प्रदेश में गौशालों को खोलने के लिए एक अभियान भी चलाया लेकिन ये अभियान भी समस्या का स्थाई निदान नहीं दे सका .सवाल ये है कि जब सरकारें इस समस्या का हल नहीं खोज पा रहीं हैं तो आम आदमी कहाँ जाये ? 
पशु समाज के दुश्मन नहीं मित्र हैं लेकिन उनकी आवारगी एक बड़ी समस्या है. शहरों की सड़कों पर गायों,भैंसों के झुण्ड देखकर ये अनुमान लगना कठिन हो जाता है कि हम शहर में हैं या गांव में ? पशुओं की आवारगी के अनेक कारण हैं किन्तु न तो इनका विअज्ञानिक अध्ययन कर समस्या का निदान खोजा जा रहा है और न अभी तक सम्यक रूप से पशुओं की आवारगी को एक बड़ी समस्या मना गया है. दुर्भाग्य ये है कि इस समस्या से निबटने के लिए किसी सरकार के बजट में कोई प्रावधान नहीं है .
आपको हैरानी होगी कि अमेरिका के शहरों में आवारा पशुओं की तो छोड़िये पालतू पशुओं के दर्शन तक दुर्लभ होते हैं. मेरी पत्नी तो जब भी अमेरिका जाती है गौ ग्रास निकलकर चिड़ियों को खिला देती है ,क्योंकि यहाँ न घरों में गाय-भैंस,बकरी पाले जाते हैं और न वे सड़कों पर दिखाई देते हैं. पशुओं के लिए शहरों से दूर गावों की सीमा में भी आधुनिक पशु शालाएं और चारागाह हैं .हमारे यहां भी ये सब हो सकता है किन्तु नकली आस्था ऐसा होने नहीं देती .हम अपनी आँखों के सामने धारोष्ण दूध खरीदने के आदी हैं .कई जगह तो दूध विक्रेता अपनी भैंस साथ ले जाकर दूध निकालते हैं .
गायों को मान मानने वाले देश में अकेली गएँ ही नहीं समूचा गौवंश ,घोड़े,गधे,कुत्ते,बिल्लियां ,सूअर ,मुर्गे-मुर्गियां,बकरियां यहां तक कि ऊँट भी आवारगी करते मिल जायेंगे .इन्हें मार भगाओ तो अधर्म होता है और न मारो तो जान पर बन आती है .सवाल ये है कि इक्कीसवीं सदी में विश्व गुरु बनने का दावा करने वाले महान भारत में आवारा पशु कब तक राष्ट्रीय शर्म का कारण नहीं माने जायेंगे .माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में देश ने खुले में शौच से मुक्ति का अभियान चलाया और उसमें एक सीमा तक कामयाबी भी हासिल की,ऐसे में क्या आवारा पशुओं की समस्या के निदान के लिए कोई निर्णायक राष्ट्रीय अभियान नहीं चलाया जा सकता ?
आने वाले दिनों में आवारा पशुओं की समस्या राष्ट्रीय समस्या बनेगी,इसे राजनितिक दलों को अपने चुनावी घोषणा पत्रों में शामिल करना पडेगा,यदि ऐसा न किया गया तो विकास और प्रगति के लिए किये जा रहे हमारे तमाम दाव थोथे साबित होंगे .अब समय आ गया है कि भारत सर्कार के साथ ही राज्य सरकारें भी इस समस्या के निदान के लिए आवारा  पशुओं   के प्रबंधन और नियमन पर ध्यान दे,सख्त क़ानून बनाये ,अन्यथा जन-जीवन एक कठिन समस्या बन कर रह जाएगा .पशुओं को ावार छोड़ने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई के साथ ही अनाथ पशुओं के स्वामित्व की जिम्मेदारी सरकार खुद निभाए तो शायद कोई समाधान निकले .
@ राकेश अचल

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