मोदी नाम केवलम
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अहमदाबाद के मोटेरा क्रिकेट स्टेडियम का नाम माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नाम पर रखे जाने से जिनको उदरशूल हो रहा है वे लोग फिलहाल पुदीनहरा की गोलियां ले सकते हैं .मै तो इस फैसले से बाग-बाग हूँ .मेरे ख्याल से ये इक्कीसवीं सदी का पहला बड़ा और समझदारी का फैसला है .मोदी जी ने बीते सात साल में देश की जितनी सेवा की है उसके मद्देनजर एक मोटेरा स्टेडियम तो क्या मै पूरा देश मोदी जी के नाम पर करने के लिए तैयार हो सकता हूँ .
मोदी जे के नाम 800  करोड़ का स्टेडियम बनाये जाने से भला लोग क्यों दुखी हैं ?क्या मोदी जी इस स्टेडियम में खुद क्रिकेट खेलने जायेंगे  या स्टेडियम को सर पर रखकर अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडन को गिफ्ट कर देंगे ? स्टेडियम जहाँ है ,वहीं रहेगा.जब सरदार बल्ल्भ भाई पटेल को इस फैसले पर आपत्ति नहीं है तो आप कौन होते हैं उज्र करने वाले ? सरदार पटेल आजादी के पहले वाले पटेल थे .मोदी जी आजादी के बाद के पटेल हैं. दोनों का लोहा  गुजराती है .इसलिए स्टेडियम का नाम सरदार वल्ल्भ भाई पटेल के नाम से जाना जाये या मोदी जी के नाम से क्या फर्क पड़ता है बताइये ! 
सच मानिये मै इस फैसले के लिए अपने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जी का दिल से आभारी हूँ. वे देश के दूसरे और भाजपा के पहले देवकांत बरुआ हैं. देवकांत बरुआ ने एक ज़माने में ' इंदिरा इज इण्डिया ' का जयघोष किया था,आज उसी की प्रतिध्वनि मोटेरा क्रिकेट स्टेडियम के नामकरण में सुनाई दे रही है .अब इस दलील में कोई दम नहीं है कि जीते जी किसी के नाम से कोई नामकरण नहीं हो सकता .अरे ! क्यों नहीं हो सकता. हमारे ग्वालियर-चंबल अंचल में तो लोग जीते जी अपने मंदिर और समाधियां तक बना लेते हैं .औलाद का क्या भरोसा ? आज पूछ रही है,कल को न पूछे !
हमें याद है कि देश में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के अपने शहर ग्वलियर में उनके एक भक्त ने अटल जी का एक छोटा सा मंदिर बनाने के लिए कितने पापड़ बेले थे.बेचारे ने अटल जी की मूर्ति तक बनवा ली थी,लेकिन विरोधियों तो छोड़िये तल जी के परिजनों ने ही ये मंदिर नहीं बनने दिया .सोचते होंगे कि मंदिर बनाने का क्रेडिट कोई बाहर वाला कैसे ले सकता है ? आज अटल जी नहीं और उनका मंदिर भी नहीं है. घर वालों तक ने मंदिर बनाने की बात भुला दी .मोदी जी ने ये रिस्क नहीं ली. अमित शाह जी ने उनके जीते जी ही मोटेरा स्टडियम के आठ मोदी जी का नाम छपा कर दिया .
इस मामले में बड़े दिल वाले अकेले राष्ट्रपति महोदय ही नहीं खुद मोदी जी भी हैं.उन्होंने इस फैसले पर अपनी मूक सहमति  दे दी ,वरना यदि  वे मना कर देते तो क्या अमित शाह जी मोदी जी के नाम के इतिहास का पहला स्वर्णिम  पन्ना लिख पाते ? क्या दूसरे देवकांत बरुआ बन पाते ? शायद नहीं.मोदी ने तो अपनी जीवनी स्कूली पाठ्यक्रमों में पढ़ाये जाने के हमारे पारस पहलवान के सुझाव को भी आपत्तिजनक माना था .पारस पहलवान एक जमने में हमारे  मध्यप्रदेश में मंत्री हुआ करते थे .अब नहीं हैं लेकिन उनकी मोदी भक्ति में रत्ती भर भी फर्क नहीं आया .
मोदी जी के नाम से स्टेडियम का विरोध करने वाले नादान हैं. हमारे शहर में तो जब भी नामकरण करने या प्रतिमाएं लगाने की बात चलती है ,पूरा शहर एक राय से सिंधिया परिवार के सदस्यों का नाम लेता है. अटल जी भी हमारे शहर के हैं लेकिन हमारे यहां उनके नाम का एक बड़ा प्रबंधन संस्स्थान जरूर है लेकिन कोई प्रतिमा नहीं लगाईं गयी है .एक जमाना था जब केवल खानदानी नेताओं के नाम से ही संसथान खुलते थे या उनकी प्रतिमाएं लगाईं जाती थीं .बड़ी मुश्किल से एक नया ज़माना आया है जिसमें एक साधारण से चाय बेचने वाले परिवार से देश के बने नेता के नाम से कोई इमारत तामीर की गयी है .
मुमकिन है कि लोग मुझसे इत्तफाक न रखते हों लेकिन ये हकीकत है कि मै मरने के बाद श्रृद्धांजलि अर्पित करने,सड़कों,संस्थानों के नाम रखने या मरणोपरांत सम्मान देने के खिलाफ हूँ. मै चाहता हूँ कि  जो करना है आदमी के जीते जी उसकी आँखों के सामने किया जाये .मरणोपरांत किये जाने वाले  कामो का मजा न मरने वाला ले पाता है और न उसको निजी तौर पर कोई लाभ होता है .इसलिए अमित शाह  के इस सूझबूझ भरे  फैसले के लिए अहमदाबाद वालों को उनका नागरिक अभिनंदन करना चहिये.करना चहिये कि नहीं ?
मोटेरा के बहाने आज कम से कम एक उपेक्षित विषय पर बहस तो शुरू हुई. वरना सब मन मसोस कर रह जाते .मै तो अपने साथियों से अक्सर  कहता हूँ कि भाई लोगो मुझसे पैसे ले जाओ लेकिन कम से कम मेरे जीते जी प्रेस क्लब आफ ग्वालियर में मेरा एक बुत तो लगवा दो. वरना मेरे से पहले कितने कलमदास धराधाम से चले गए ,किसी एक का बुत लगा शहर में .फिर कलमदासों के बारे में तो बहुत कम लोग और दल सोचते हैं.सारी सोच नेताओं के बुतों पर आकर ठहर जाती है .मरने के बाद शहर,प्रदेश और देश तो छोड़िये घर वाले तक नाम नहीं लेते .वे नसीब वाले लोग हैं जिनके पास अमितशाह जैसे मित्र हैं .जलने वाले ' हम दो,हमारे दो ' का नारा लगते हैं तो लगते रहे, .'हम दो,हमारे दो ' का नारा तो राष्ट्रीय नारा है और कौन इसे भाजपा ने गधा है.ये नारा तो कांग्रेस के जमाने का है .भाजप तो केवल इस पर अमल कर रही है . 
इस देश में किस्मत के धनी कुछ ही लोग हैं जिनकी कि पूछ-परख मरणोपरांत हो रही है.महात्मा गाँधी और दीनदयाल जी के अलावा कोई और हो तो नाम बताइये आप ?नेहरू और  राजीव गांधी तो अपवाद हैं ,मै तो कहता हूँ कि अब जैसे ही मौक़ा हाथ लगे बहन मायावती की ही रह ही दूसरे सूबों के नेताओं को भी अपने-अपने बुत बनवा कर चौराहों पर खड़े करा देना चाहिए .यूं भी हमारा देश अब बुतों का देश है. यहां बुतपरस्ती से ही सियासत चल रही है और देश भी .मैंने एक बार अपने शहर में रेलवे के एक निर्माणाधीन छात्रावास का नाम साह्त्यकार महादेवी वर्मा के नाम पर कहने के लिए तब के रेल मंत्री सिंधिया जी से आग्रह किया था.लेकिन वे बोले कि ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है पंडित जी .
.अब देखिये न रामजी के मंदिर बनाने के लिए बेचारे स्वयं सेवक घर-घर घूम रहे हैं चंदा जुटाने के लिए .मंदिर की किस्मत तो मोटेरा स्टेडियम से भी गयी बीती है .मै तो कहता हूँ कि केंद्र सरकार को इस चंदा उगाही पर फौरन रोक लगाकर एक अध्यादेश जारी कर मंदिर निर्मण के लिए हजार,दो हजार करोड़ रूपये की राशि  का इंतजाम कर दें चाहिए .आखिर मंदिर भी तो हमारी राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक ही जैसे कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी .देश को आभार मानना चाहिए शाह जी का जो उन्होंने मोटेरा के नामकरण का फैसला गुपचुप कर लिया और किसी को भनक तक नहीं लगी ,अन्यथा सरकार फैसला लेने में कितने तेज है आप सब जानते ही हैं. देश के किसान तीन महीने से फैसले का इन्तजार कर रहे हैं लेकिन फैसला नहीं हो पा रहा .मै एक बार कहता हूँ कि ये देश इंदिरा इज इण्डिया नहीं मोदी इज इण्डिया है.यानि मोदी नाम केवलम .
@ राकेश अचल

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