जेपी रथी,बिरथ अब ममता
बंगाल के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के रथ चल पड़े हैं. भाजपा अध्यक्ष श्री जेपी नड्ढा इस बार रथी हैं और राज्य की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी को बिरथ करने की कसम खाकर घर से निकले हैं .होने वाले विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी बिरथ होंगी या नहीं ये राज्य की जनता के ऊपर निर्भर है लेकिन रथों पर निर्भर भाजपा का एक ही सपना है की किसी भी तरह इस बार ममता बनर्जी बिरथ हो जाएँ .
भाजपा के पास रथयात्राओं का विपुल अनुभव है. इन्हीं रथों पर सवार होकर भाजपा ने लोकसभा में 2 सीटों के साथ प्रवेश किया था और आज उसके पास 302 सीटें हैं,रथयात्राओं के जरिये सत्ता तक पहुँचने में अनेक अवसरों पर भाजपा के रथ भी टूटे,फूटे,घोड़े बिदके लेकिन भाजपा ने हर नहीं मानी .बंगाल में भी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी भाई साहब अपने रथ लेकर उतर चुके हैं .अत्याधुनिक कारों के जमाने में पारम्परिक रथ यात्राओं के प्रति अनुराग रखने वाली भाजपा बिरथ होने से अब इतनी भयभीत है की राज्यों की सत्ता हासिल करने के लिए किसी भी हद से गुजर सकती है .
भाजपा की रथयात्रा कोरोकने वाले बिहार के लालू प्रसाद यादव अब जेल में हैं, उनके बेटे तेजस्वी यादव ने बिहार में भाजपा का रथ रोकने की नाकाम कोशिश की थी .वे भाजपा के रथ में जुटे घोड़ों से लटक भी गए थे लेकिन जेडीयू ने रथ को बचा लिया .भाजपा का रथ जहाँ-जहां फंसा वहां-वहां उसे कोई न कोई विभीषण मिल ही गया .मध्यप्रदेश इसका जीवंत उदाहरण है. भाजपा ने बंगाल में बिभीषनों की खोज कर उन्हें अपनी सेना में शामिल कर लिया है ,और मुमकिन है की भाजपा का ये फार्मूला काम आ जाये .
पिछले कुछ झटकों के बाद भाजपा हर विधानसभा चुनाव आम चुनावों की तरह लड़ने लगी है. चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री से लेकर आम कार्यकर्ता मेहनत करता है,अभिनय करता है,स्वांग करता है. दाढ़ी,मूंछ और पूंछ बढ़ाकर मतदाताओं को लुभाने का प्रयास करता है. बंगाल के पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा का स्वांग और अभिनय कारगर साबित नहीं हो पाया था.इसमें जो कमियां रह गयीं थीं उन्हें अब शायद दूर कर लिया गया है .राज्य के राज्य पाल से लेकर जिलाध्यक्ष तक प्राणपण से अपनी ड्यूटी में लगे हैं .भाजपा बंगाल विधानसभा चुनाव में इस कदर व्यस्त है की उसे देश में दो महीने से अधिक समय से चल रहे किसान सत्याग्रह की भी फ़िक्र नहीं है.
भाजपा की फ़िक्र वास्तविक है. भाजपा विधानसभा चुनावों में दिल्ली से हाथ धो चुकी है. मध्यप्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ उसके हाथ से निकल चुके हैं.मध्य्प्रदेश जैसे तैसे 18 माह की मेहनत के बाद भाजपा ने दोबारा हासिल कर लिया लेकिन इसमें भाजपा के रथों की नहीं बल्कि कांग्रेस के तत्कालीन महारतीयों की भूमिका रही .राजस्थान में भाजपा का दांव खाली गया ,वहां भाजपा के बिभीषन एन मौके पर भाग गए .कर्नाटक में भाजपा का रथ कीचड़ में धंस गया था,वहां भी मध्यप्रदेश की तरह प्रयोग किये गए .अब बंगाल में भाजपा कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती .
बंगाल में बंगाली अस्मिता का प्रतीक बानी ममता बनर्जी का बंगाली जादू काटने के लिए भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ममता बनर्जी पर हमला करते हुए कहा कि -'पीएम किसान योजना ममता ने अपने अभियान, ईगो की वजह से लागू नहीं होने दिया. अब यहां जय श्री राम के नारे लगते हैं तो ममता को इतना गुस्सा क्यों आता है ? 'जेपी नड्डा पश्चिम बंगाल के मालदा में रथ यात्रा निकाल रहे हैं. जेपी नड्डा की रथ यात्रा में लोगों का हुजूम उमड़ता दिखाई दे रहा है. रथ यात्रा के दौरान नड्डा ने ममता बनर्जी पर बड़ा हमला करते हुए कहा, बंगाल में टोलाबाजी, तुष्टिकरण, भ्रष्टाचार और तानाशाही के दिन पूरे हो चुके हैं. बंगाल की जनता फिर एक बार सोनार बांग्ला बनाने के लिए तत्पर है.
आपको याद होगा की भाजपा राज्य विधानसभा चुनाव में विकास की बातें करने के बजाय ' जय श्रीराम ' की बात ज्यादा कर रही है. नेताजी की जन्मजयंती पर भी भाजपा के उत्साही कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री जी की मौजूदगी में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चिढ़ाने के लिए ' जय श्रीराम' का नारा बुलंद किया था .ममता ने भी इस समारोह में न बोलकर हालांकि भाजपा की तुरुप की हवा निकाल दी थी लेकिन भाजपा ने अपनी तुरुप अब भी नहीं बदली है .भाजपा राज्य में राम नाम को ही अपनी तुरुप बनाये हुए है .कहते भी हैं की राम का नाम सबको वैतरणी पार कराता है .
बंगाल में विधानसभा चुनाव जीतने के लिए रथारूढ़ भाजपा केंचुआ [केंद्रीय चुनाव आयोग] पर दस चरणों में चुनाव करने का दवाब बनाये हुए है. भाजपा का प्रतिनिधिमंडल इस सिलसिले में केंचुआ से मिल भी चुका है .केंचुआ ने हालाँकि अभी बंगाल में विधानसभा चुनाव का कैलेंडर जारी नहीं किया है लेकिन संभावना है की केंचुआ भाजपा को निराश नहीं करेगा .
राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अतीत में झांके बिना आपको बंगाल चुनाव का रस पूरी तरह नहीं मिलेगा,इसलिए आपको बता दूँ कि दो दशकों तक कांग्रेस के सदस्य रहने के बाद, ममता बनर्जी ने 1997 में कांग्रेस छोड़ दी थी ,तत्कालीन पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष एसएन मित्रा के साथ विचारों के अंतर के कारण, बनर्जी ने अपनी खुद की पार्टी बनाई जो अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस कांग्रेस के रूप में जानी जाती है
जनवरी 1998 में तृणमूल कांग्रेस की संस्थापक ममता बनर्जी बहुत ही जीवंत, मेहनती और ऊर्जावान नेता के रूप में अपनी मेहनत के दम पर बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी के किले को बहुत सफलतापूर्वक और रणनीतिक रूप से विकृत और ध्वस्त कर दिया। एक लौह महिला हैं और अपने भड़काऊ राजनीति से लेकर पश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्री बनने के सफ़र में उन्होंने अपने राज्य का राजनैतिक इतिहास फिर से लिखकर अपनी क्षमता और निर्णयशक्ति साबित कर दी है। अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए सार्वजनिक रैलियो को संबोधित करना और धरना करना ये ममता की ताकत थी। सिंगूर और नंदीग्राम में जबरन ज़मीन हथियाने पर उन्होंने विरोध किया था जिससे पश्चिम बंगाल की जनता में वे काफी लोकप्रिय बन गई। सफ़ेद, साधारण सूती साड़ी और सूती झोला उन्हें अन्य नेताओं से अलग करता है। अपने उत्साहपूर्ण भाषणों से वे लोगो को प्रोत्साहित करती हैं जिसके वजह से पश्चिम बंगाल की जनता में वे काफी लोकप्रिय हैं। अपने प्रभावशाली भाषण में टैगोर और अन्य कविओं के उचित उद्धरण सुनाकर उन्होंने सामान्य जन मानस को अपनी तरफ आकर्षित किया।
ममता बनर्जी ने 2011 और 2016 में अपने दम पर मुख्यमंत्री का पद हासिल किया ,अब तीसरी बार सत्ता में बने रहने के लिए वे संघर्षरत हैं .एक दशक तक बंगाल की जनता की आँखों का तारा बनी रहीं ममता अपनी धवल साड़ी की तरह दूध की धुली भी नहीं हैं.उनके शासन में अनेक घोटाले प्रकाश में आये. सारदा घोटाला समेत चार बड़े घोटालों के दाग भी उनके दामन पर हैं. मुस्लिम तुष्टिकरण ,दुर्गा पूजा की मूर्तियों के विसर्जन और इमामबाड़ा विवाद भी उनके साथ बाबस्ता है .भाजपा इन सबको ध्यान में रखकर ही ममता की सत्ता का राम नाम सत्य करना चाहती है और राम के रथ उसके लिए इस काम में बहुत काम के नजर आ रहे हैं .
@ राकेश अचल
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