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आसान नहीं है प्रमिला होना
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प्रमिला के अनेक अर्थ हैं.प्रमिला अर्जुन की पत्नियों में से एक थी,लेकिन उसको किसी ने देखा नहीं.प्रमिला का एक अर्थ दुर्बलता और थकावट भी होता है लेकिन मै जिस प्रमिला को जानता था उसका अर्थ सक्षम, रचनात्मक, गंभीर, अस्थिर, आधुनिक था. प्रमिला भाजपा की एक समर्पित नेत्री थी और हमारे बीच एक भाई-बहन का रिश्ता था .आज यही रिश्ता अनंत में विलीन हो गया. भाई देव श्रीमाली की वबसाईट से जब पता चला की प्रमिला बाजपेयी नहीं रही तो दिल बैठ गया .
प्रमिला जी को मै पता नहीं कब से जानता था.ऐसा लगता था कि वे हमेशा से परिचित रहीं हैं. मुझे जितना समय ग्वालियर में पत्रकारिता करते हुया था उससे थोड़ा कम उन्हें राजनीति में एक समाजसेविका के रूप में कार्य करते हुआ होगा .छोटे कद की बड़ी प्रमिला सौजन्यता की प्रतिमूर्ति थीं. संघ के संस्कारों में पली-बढ़ी प्रमिला के पतिदेव भी संघ दीक्षित समर्पित कार्यकर्ता थे .दोनों ने जीवन में कभी खुलकर कभी अपने संरक्षकों से कुछ माँगा हो ऐसा मुझे याद नहीं आता .
बात बहुत पुरानी है,शायद 2004 की हो या इससे भी पहले की. प्रमिला जी पार्षद पद के लिए हमारे वार्ड से प्रत्याशी थीं .महिलाओं के लिए आरक्षित वार्ड में प्रमिला जैसा कोई मजबूत प्रत्याशी भाजपा के पास कोई दूसरा था भी नहीं.उनके शुभचिंतक और समर्थक भाजपा के बाहर भी थे .संयोग से मेरी श्रीमती जी ने मुझसे एक दिन मजाक में ही कहा -'क्या मै चुनाव नहीं लड़ सकती ? '
' क्यों नहीं,लड़ सकती ,पांच सौ रूपये ही तो खर्च करना है ,लड़ लो ' मैंने भी लापरवाही से उत्तर दे दिया. बात कब गंभीर हो गयी पता ही न चला.मेरी श्रीमती जी सचमुच चुनाव लड़ने के लिए अड़ गयीं. मैंने भी उनका मन रखने के लिए उनका नामांकन पत्र भरवा दिया .उस समय ग्वालियर के कलेक्टर राकेश श्रीवास्तव थे .उन्होंने मुझसे पूछा ,- 'क्या भाभी जी सचमुच चुनाव लड़ रहीं हैं ?'
हाँ भी हाँ ' मैंने खीज कर कहा
.श्रीमती जी को चुनाव लड़ने से रोकने का मुझे कोई नैतिक अधिकार नहीं था क्योंकि मै खुद मनोरंजन के लिए विधानसभा और महापौर पद का चुनाव लड़ कर हार चुका था .मित्रों ने भी शायद मेरी श्रीमती जी के चुनाव को गंभीरता से लिया,सो चुपचाप चंदा दे गए .अब क्या था श्रीमती जी अपनी बहनों और कुनवे की भीड़ के साथ जनसम्पर्क करने निकल पड़ीं .पर्चे-पोस्टर मैंने छपवाकर दे दिए .अपने भी भक्त हुआ करते थे उन दिनों सबने देखते ही देखते पूरे वार्ड में श्रीमती जी के पोस्टर -पर्चे बिछा दिए .
एक शाम बहन प्रमिला जी घर पर प्रकट हो गयी. आते ही सवाल किया -क्या भाभी जी सचमुच चुनाव लड़ रहीं हैं ?'
'अरे न मजाक के लिए खड़ी हुईं हैं',मैंने श्रीमती जी की और देखकर कहा .प्रमिला जी सोफे पर बैठते हुई मुस्कराई .बोलीं -'न.न.यदि भाभी जी सचमुच लड़ रहीं हैं तो मै अपना नाम वापस ले लेती हूँ.हम आपस में थोड़े ही लड़ेंगे 'प्रमिला जी ने गंभीरता से कहा .
मै बड़े धर्म संकट में था. मैंने कहा -'आप तो निश्चिन्त रहिये,चुनाव आपको ही जीतना है ,मै आपके साथ हूँ न ".लेकिन प्रमिला जी बेफिक्र नहीं हुईं .वे चाय पीकर लौट गयीं. कुछ दिन बाद वे जब दोबारा जनसम्पर्क करते हुए मेरे घर पहुंची तो उन्होंने देखा कि मेरे बरामदे में कार्यकर्ताओं की पंगत चल रही है. भीड़ देख उनका माथा ठनका .उन्होंने श्रीमती जी से पानी माँगा,पीया और फिर बोली-देखो भाभी जी अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है,आप यदि सचमुच गंभीरता से चुनाव लड़ रहीं हैं तो मै हट जाती हूँ वरना आपके खड़े रहने भर से मै हार जाऊंगी " प्रमिला जी ने अपनी आशंका जताई .
प्रमिला जी पूरे जोर-शोर से चुनाव लड़ीं .उनके खिलाफ मुख्य प्रतिद्वंदी महलगांव के एक पूर्व विधायक की पुत्रवधु थी .टक्कर कांटे की होना थी. हमारी श्रीमती जी हमारे कारण एक दिन महलगांव में पूर्व विधायक के घर तक जाकर वोट मांग आयीं .पूर्व विधायक हमारे मित्र थे सो आवभगत करने के बाद बोले -बेटा तुमने मेरी आन खत्म करा दी,वरना हमारे मुहल्ले में कोई दूसरा प्रत्याशी वोट मांगने की हिम्मत नहीं कर सकता था '
बात आयी-गयी हो गयी.श्रीमती जी का जनसम्पर्क भी चलता रहा और घर पर पंगतें भी उड़ती रहीं ,लेकिन मुझे पता था कि चुनाव तो प्रमिला जी या पूर्व विधायक की पुत्रवधु को ही जीतना है. नतीजे आये तो प्रमिला जी हार गयीं और केवल उतने वोटों से हारीं जितने हमारी श्रीमती जी को मजाक-मजाक में मिले थे .मुझे काटो तो खून नहीं.मै प्रमिला जी के हारने से आहत था ,लेकिन वे जब सामने पड़ीं तो अपनी चिर परिचित मुस्कान बिखेरते हुए बोली-
देखो मैंने क्या कहा था आपसे ?' मै खामोश रहा. इस प्रसंग के बाद प्रमिला जी के मन में मेरे लिए कटुता आ जाना चाहिए थी लेकिन नहीं आई उलटे उनका स्नेह और प्रगाढ़ हुआ .हम एक-दूसरे के पारिवारिक कार्यक्रमों में भी आते-जाते.जहां मिलते पूरी आत्मीयता प्रमिला जी उड़ेल देतीं .भाजपा ने उन्हें राज्य महिला आयोग का सदस्य बनाकर सम्मानित किया .आयोग के सदस्य के रूप में उनकी सक्रियता रेखांकित करने लायक रही .वे भाजपा में अनेक जिम्मेदार पदों पर रहीं. वे मित भाषी थीं लेकिन इनकी हर विषय पर अच्छी पकड़ थी .सक्रियता में वे कभी पीछे नहीं रहीं लेकिन पद पाने के लिए उन्होंने न कभी किसी के हाथ जोड़े और न खिन कोई समझौता किया .
अभी अमेरिका आने से कुछ दिन पहले ही एक शादी समारोह में वे अपनी बहुरिया स्नेहा के साथ मिलीं थीं.उन्होंने उस समय मेरे घर आने का वादा भी किया था. उनकी पुत्रवधु मेरी बड़ी बेटी दीप्ति की मित्र भी है .लेकिन वे अपनी व्यस्तता के चलते मेरे अमेरिका के लिए रवाना होने तक अपना वादा नहीं निभा सकीं .अब वे अपना वादा पूरा करने कभी नहीं लौटेंगीं.उनकी अनंत यात्रा आकस्मिक हुई है. उन्होंने अपनी जीवनसाथी के निधन के बाद भी अपने परिवार को बिखरने नहीं दिया था.बच्चों की पूरी जबाबदेही हिम्मत के साथ निभाई थी .मुमकिन था कि इस बार वे पार्टी की और से महापौर पद की प्रत्याशी भी होतीं ,लेकिन प्रभु ने उनकी जीवन यात्रा को आगे के लिए अवसर ही नहीं दिए .
आज की घ्रणित राजनीति में प्रमिला बाजपेयी की तरह निष्कलंक रहकर अपना मुकाम बनाये रखना महिला कार्यकर्ताओं के लिए आसान नहीं है. आज ' मी टू ' का जमाना है .ऐसे में प्रमिला जी की हर उस मौके पर याद आएगी जब कहीं राजनीति में नारी गरिमा का जिक्र होगा .मै आदरणीय प्रमिला जी के प्रति विनयवत हूँ और अपनी विनम्र श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूँ.मुझे ये कमी हमेशा खलेगी .उनका पहले चुनाव में हारना भी मेरे अपराध बोध की एक वजह होगी .
@ राकेश अचल
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