देश में आजादी के बाद के सबसे लम्बे किसान सत्याग्रह पर मैंने राज्य सभा में हुई बहस को पूरे ध्यान से सुना और इस नतीजे पर पहुंचा की देश की संसद अपनी संवेदनशीलता खो चुकी है. कृषि मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने जिस तरह से कीआसन आंदोलन को लेकर लूली-लंगड़ी कांग्रेस पर खून की खेती करने का आरोप लगाया उसे सुनकर हंसी भी आयी और रोना भी ,क्योंकि तोमर के आरोप से जाहिर हो गया की वे कृषि मंत्री होते हुए भी ये नहीं जानते की खेती खून से नहीं बल्कि खून-पसीने और पानी से होती है .खून की खेती की तकनीक किसके पास है ये दुनिया को पता है .
सवाल ये है की देश में बनाये गए किसानों से जुड़े तीन क़ानून क्या कौन की खेती करने के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने वाली कांग्रेस ने बनाये हैं ?सवाल ये भी है की क्या किसानों के आंदोलन का नेतृत्व कांग्रेस कर रही है ?अगर ये दोनों बातें गलत हैं तो फिर ये कहने में किसी को कोई संकोच नहीं होना चाहिए कीविवादास्पद क़ानून खेती का खून करने के काम आने वाले हैं,किसानों का इनसे कोई भला होने वाला नहीं है. कृषि मंत्री हैरान है की एक दर्जन से अधिक बैठकों में एक बार भी कोई ये नहीं बता सका की कानूनों में काला क्या है ?अरे भाई जब पूरे क़ानून ही काले हैं तो अलग से क्या बताया जाये ?
संसद में कृषि कानूनों पर बहस के बाद सरकार के जबाब से साफ़ हो गया की किसान क़ानून वापस होने वाले नहीं हैं ,यानि अब किसान चाहे अपनी जान दे दें लेकिन सरकार पीछे हटने वाली नहीं है. सरकार की हाथ से साफ जाहिर है की सरकार क़ानून बनाकर कहीं और वचनबद्ध है .सरकार देश के किसानों का विरोध तो झेल सकती ही लेकिन उन शक्तियों का सामना नहीं कर सकती जिनके इशारे पर उपरोक्त क़ानून बनाये गए हैं ,दुनिया के किसी लोकतान्त्रिक देश में इतनी कमजोर सरकार शायद ही कहीं और हो .
सरकार की दो टूक के बाद अब किसानों को या तो अपने-अपने घर लौट जाना चाहिए या फिर दिल्ली की देहलीज पर ही सत्याग्रह करते हुए अपने प्राण दे देना चाहिए .किसानों को समझना होगा की सत्ता की शक्ति असीमित होती है ,उसे झुकना या अपनी बात मनवाना उतना आसान नहीं है जितना की किसानों और उनके नेताओं ने समझ रखा है .अब तक किसान संगठन राजनीतिक दलों के नेतृत्व के बिना सत्याग्रह कर रहे थे ,लेकिन अब आगे भी वे ऐसा कर पाएंगे इसमें मुझे संदेह है .किसानों के धैर्य,अनुशासन और एकता ने दुनिया को अपना मुरीद बना लिया है,भले ही भारत सरकार के लिए ये सत्याग्रह एक साजिश हो .अब सवाल ये है की ट्रेक्टर रैली और देशव्यापी चक्काजाम के बाद किसान सरकार पर दबाब बनाने के लिए अब और क्या कर सकते हैं ?
संसद में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के खून की खेती वाले आरोप के बाद राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है. कांग्रेस के दिग्गज दिग्विजय सिंह ने सत्तारूढ़ भाजपा को गोधरा काण्ड याद दिला दिया है .अब खोज-खोज कर बताया जाएगा की किस दल ने कब-कब और कहाँ -कहाँ खून की खेती की ,लेकिन इससे सत्याग्रही किसानों का कोई भला होने वाला नहीं है .किसानों का भला कानूनों के वापस लेने के बाद ही होगा .
किसानों के मुद्दे पर अब सचमुच सियासत शुरू हो गयी है .नए कृषि कानूनों को लेकर विपक्ष लगातार केंद्र की मोदी सरकार पर हमलावर है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कृषि कानूनों पर 'खेती का खून तीन काले कानून' नास से एक बुकलेट जारी की है।कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इनूनों को लेकर मोदी सरकार को घेरा। राहुल गांधी ने कहा कि तीनों कृषि कानून खेती को बर्बाद कर देंगे, मैं इनका विरोध करता रहूंगा। मैं जेपी नड्डा के सन कावालों का जवाब नहीं दूंगा, सिर्फ किसानों और देश के सवालों का जवाब दूंगा।
खून की खेती वाले बयान पर कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने कहा,'जो गोधरा में हुआ, वो पानी की खेती थी या खून की खेती थी. भारतीय जनता पार्टी हमेशा से नफरत और हिंसा की राजनीति करती आई है. कांग्रेस पार्टी सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलती आई है.आने वाले दिनों में ऐसे और अनेक बयान आएंगे ,क्योंकि इसकी जगह खुद भाजपा ने बनाकर दी है. कृषि मंत्री के इस अभद्र बयान को राज्य सभा की कार्रवाई से हटाया जाना इस बात का प्रमाण है कि भाजपा भी नहीं चाहती कि तोमर की गलती की वजह से एक बार फ़ी से गोधरा काण्ड जैसे मामले सुर्ख़ियों में आएं .पार्टी को अपने रक्तरंजित अतीत से डर लगना स्वाभाविक है .
किसानों के आंदोलन के चलते सरकार जन विरोधी बजट पर जनाक्रोश का समन करने से बच गयी.मंहगाई,बेरोजगारी और देश की सम्पदा को खुर्दबुर्द करने के मुद्दे पर भी उसे पतली गली से निकलने का अवसर मिल गया .आने वाले दिनों में सरकार सत्याग्रही किसानों के लिए अंग्रेजी जनरलों की तरह व्यवहार करे तो किसी को हैरानी नहीं होना चाहिए .किसानों के सत्याग्रह के रास्तें में कीलें बिछाने वाली सरकार कल को क्या कुछ नहीं कर गुजरेगी कहा नहीं जा सकता .आने वाला हर दिन किसानों के लिए संकट की सूचनाएँ लेकर आ सकता है.मै और आप एक सच्चे भारतीय होने के नाते सिर्फ कामना कर सकते हैं कि आने वाले कल में देश में खून की खेती न हो बल्कि खून-पसीने और पानी से खेती करने वाले किसानों को न्याय मिले ताकि वे ससम्मान अपने खेतों-खलिहानों में वापस लौट सकें .
@ राकेश अचल
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