चित्रकूट ब्यूरो गोस्वामी तुलसीदास राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय की चित्रकूट में " आधुनिक जीवनशैली एवं जैव विविधता का अस्तित्व " विषयक दो राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन मुख्य अतिथि कैलाश प्रकाश प्रभागीय वनाधिकारी , प्राचार्य डॉ राजेश कुमार पाल के द्वारा गुरूवार को किया गया । इस मौके पर प्रोफेसर देवकुमार , डॉ एसके चतुर्वेदी , डॉ एस कुरील आदि मौजूद रहे । मुख्य अतिथि कैलाश प्रसाद ने बताया कि पृथ्वी पर जीवन की विविधता है । विविधता वह आधार है जिसका उपयोग अपनी बुद्धि और विकास के लिए हर सभ्यता ने किया है । जिन्होने प्रकृति की इस देन का उपयोग बुद्धिमत्ता से और निर्वहनीय ढंग से किया , वे सभ्यताएँ जीवित रहीं । जबकि उसका अति उपयोग या दुरुपयोग करने वाली सभ्यताएँ नष्ट हो गयीं । पृथ्वी पर जीवन की विविधता इतनी अधिक है कि अगर हम उसका निर्वहनीय उपयोग करें तो अनेक पीढियों तक जैव विविधता से नये - नये उत्पादों का विकास करते रहेगे । यह तभी होगा जब हम जैव - विविधता का उपयोग एक कीमती ससाधन के रूप में करें और प्रजातियों के विनाश को रोके । मुख्य वक्ता डॉ देवकुमार ने बताया कि जैविक विविधता अथवा जैव विविधता प्रकृति का वह अंग है जिसमें किसी प्रजाति के अलग - अलग सदस्यों में जीन की विविधता शामिल हैं , स्थानीय , क्षेत्रीय तथा वैश्विक स्तर पर पौधों और प्राणियों की तमाम तयो की विविधता और सवृद्धि शामिल है और एक सुनिश्चित क्षेत्र मे पारिस्थितिकीय तन्त्रों के स्थलीय प्रकार शामिल हैं । जैव विविधता का संबंध जैव गण्डल में प्रकृति की विविधता की गात्रा से है । इसी प्रकार डॉ एस के चतुर्वेदी ने जैव विविधता को वैश्वीकरण एवं उद्योगीकरण के कारण हो रहे क्षरण को प्राकृतिक आपदाओं से जोड़ते हुए गहरी चिन्ता व्यक्त की तथा डॉ एस कुरील ने अपने संबोधन में नगरीकरण , औद्योगीकरण के कारण हो रहे वनों के विनाश पर चर्चा करते हुए बताया कि इससे जीवो के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे है । अनेक प्रजातिया विलुप्ति की कगार पर हैं । अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्राचार्य डॉ राजेश कुमार पाल ने बताया कि हमारे पूरे देश में जैव - विविधता का विनाश किस दर से हो रहा है . यह अस्पष्ट है । यह दर हो सकती है बहुत अधिक हो , क्योंकि हमारे निर्जन क्षेत्र तेजी से सिकुड़ रहे हैं । अधिकाश प्राकृतिक पारिस्थितिकीय तन्त्रों का अति उपयोग हो रहा है । संसाधनों के इस अनिर्वहनीय उपयोग के कारण जो भूखण्ड कभी उत्पादक वन और घास के मैदान थे अब रेगिस्तान बन चुके हैं और बजर सारी दुनिया में फैल चुका है । हमारी सरक्षित क्षेत्रों की सीमा पर मनुष्य की लगातार बढ़ती जनसंख्या वनों के पारिस्थितिकीय तन्त्रों का विनाश कर रही है और रोजाना खुलेआम होने वाले अतिक्रमण धीरे - धीरे वन क्षेत्रो को कम करते चले जा रहे है । उदघाटन सत्र के बाद भोजनावकाश के उपरान्त प्रथम तकनीकी सत्र का प्रारम्भ हुआ । जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में डॉ पी सिंह तथा विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ धीरेन्द्र सिंह , डॉ धर्मेन्द्र सिह , डॉ हेमन्त सिह बघेल , डॉ सुनील मिश्र ने अपने - अपने विचार जैव विविधता के क्षरण में बढ़ती मानवीय विकासात्मक गतिविधियों , उपभोक्तावादी एवं भौतिकतावादी जीवनशैली को उत्तरदायी कारक बताया । संचालन डॉ वशगोपाल के द्वारा किया गया । आये हुए अतिथियों आभार संगोष्ठी के सहसयोजक डॉ अमित कुमार सिंह के द्वारा व्यक्त किया गया । इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ रामनरेश यादव , डॉ धमेन्द्र सिह , डॉ सीमा कुमारी , डॉ मुकेश कुमार , डॉ अतुल कुमार कुशवाहा , डॉ राकेश कुमार शर्मा , डॉ नीरज गुप्ता , बलवन्त सिंह राजोदिया एव महाविद्यालय के समस्त कर्मचारी एवं बड़ी संख्या में अन्य विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों से आये प्रोफसर , शोध छात्र एव महाविद्यालय के छात्र / छात्राएँ आदि

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