पुनर्धनत्वीकरण के खतरे
राज्य में पुरानी बसाहटों के स्थान पर नए निर्माण की एक अभिनव योजना पुनर्धनत्वीकरण के नाम से धीरे-धीरे आकार ले रही है लेकिन इसके परिणामों के बारे में सोचने की जरूरत नहीं समझी जा रही है,इस नयी योजना से वेशकीमती जमीन की चौगुनी कीमत और इस्तेमाल तो हो सकता है किन्तु इसके जो दुष्परिणाम सामने आएंगे वे फायदे के मुकाबले कहीं ज्यादा नुक्सान देह साबित होंगे .
राजधानी भोपाल समेत प्रदेश के हर बड़े शहर के लिए पुनर्घनत्वीकरण की योजनाएं बनाई गई हैं,इनमें से केवल भोपाल में इस योजना ने आकार लिया है .जिस स्थानों पर पुराने शासकीय आवास थे उन्हें तोड़कर उन्हीं के स्थान पर बहुमंजिला इमारतें खड़ी की जा रही हैं .इस योजना से जमीन का चार से छह गुना इस्तेमाल भी बढ़ा है और शासन को आमदनी भी हुई है किन्तु इस प्रयोग से जो दबाब आसपास के इलाके पर पड़ा है उसके बारे में किसी ने नहीं सोचा .
ग्वालियर में भी थाटीपुर के शासकीय आवासों को इस योजना में शामिल किया गया है .बीते एक दशक से ये योजना कागजों में दौड़ लगा रही है किन्तु साकार नहीं हो पा रही.अब नए सिरे से योजना की शर्तों को ठेकेदारों के अनुरूप कर अम्ल में लाने का प्रयास किया जा रहा है. आज की तारीख में थाटीपुर इलाका पर्यावरण के नजरिये से काफी समृद्ध है ,लेकिन यहां अभी भी मौजूदा रहवासियों के लिए सड़क,सीवेज और बागीचों की समुचित सुविधा नहीं है .थाटीपुर इलाके में ही हाउसिंग बोर्ड की एक आवासीय परियोजना समस्याओं से घिरी हुई है .
पुनर्घनत्वीकरण योजना से मौजूदा भूमि पर जनसंख्या का दबाब चौगुना बढ़ जाएगा इसकारण मौजूदा सड़क पर भविष्य में जाम लगने के साथ ही पर्यावरणीय समस्याएं भी पैदा होंगी .सीवर और पेयजल की समस्या सबसे बड़ी होगी ,सवाल ये है की क्या योजना में भविष्य की इन जरूरतों के लिए स्थाई स्रोत तलाश लिए गए हैं ?शहर में कनकरीत के जंगल खड़े करना आसान है लेकिन शहर की हरियाली को बचाये रखना बेहद कठिन है.
दुर्भाग्य से शहर का विकास नियोजित तरीके से न होने के कारण अधिकाँश बाजारों और आवासीय बस्तियों में हरियाली का कोई स्थान नहीं है. महाराज बाड़ा पर हरियाली के नाम पर एक बरगद है,सराफा बाजार में एक पीपल शेष है,लोहिया बाजार में भी एक-दो पेड़ ही बचे हैं.नया बाजार में एक भी पेड़ नहीं है उप नगर ग्वालियर में भी कमोवेश यही हाल है .सवाल ये है की क्या हम हरियाली के दुश्मन बन चुके हैं और इसके बिना रहने के लिए तैयार हैं ?बाजारों की जमीन भले ही सोने के भाव बिकती हो लेकिन पेड़ों के लिए तो कुछ स्थान छोड़ा ही जाना चाहिए ,जो पेड़ थे उन्हें बेरहमी से काटे जाने की इजाजत आखिर कौन देता है ?
पुनर्घनत्वीकर आवश्यक वहां है जहां सचमुच इसकी आवश्यकता है.मिस्साल के तौर पर थाटीपुर इलाके में ही सिंचाई विभाग के दो विश्राम गृह खंडहर हो गए हैं.उनके स्थान पर मौजूदा हरियाली को छेड़े बिना नए निर्माण की स्वीकृति दी जा सकती है ,आप थाटीपुर या पड़ाव क्षेत्र पर आबादी का और बोझ नहीं दाल सकते.पड़ाव इलाके में तो जो शासकीय बस्ती और अन्य संस्थान हैं उनमें अभी भी पर्याप्त हरिआली है ,यदि इसे समाप्त किया जाता है तो इसकी पूर्ती कभी नहीं की जा सकेगी .सौ और पचास साल पुराने पेड़ों के स्थान पर भले ही आप हजार नए पौधे लगा लें लेकिन वे पुराने पेड़ों की जगह नहीं ले सकते और न ले पाते हैं .
पुनर्घनत्वीकरण की योजनाओं में मौजूदा ढांचों के स्थान पर नए ढांचे बनाने के साथ मौजूदा हरियाली से छेड़छाड़ की इजाजत नहीं दी जाना चाहिए ,भोपाल में ये गलती हो चुकी है. न्यू मार्किट के पास एक विशाल कंक्रीट का जंगल खड़ा हो गया है लेकिन वर्षों पुराणी हरियाली गायब हो गयी है .ग्वालियर में भी थाटीपुर की पुनर्घनत्वीकरण योजना में ये खतरे छिपे हुए हैं .
आज ग्वालियर की जरूरत उसे घना बनाने के बजाय दूर तक विकसित करने की है. ग्वालियर प्रदेश के दुसरे शहरों के मुकाबले बहुत धीमी गति से विकसित हो आरहा है.ग्वालियर का विकास एकांगी है ,ग्वालियर विकास प्राधिकरण ने इस दिशा में कोई महती काम नहीं किया .सादा तो इस मुहीम में पूरी तरह नाकाम ही रहा और मध्यप्रदेश हाऊसिंग बोर्ड तो आज भी दीनदयाल नगर में उलझा है.बोर्ड की नयी आवासीय योजनाओं में भी ऐसा कोई आकर्षण नहीं है जिससे लोग वहां जाकर रहें .
ग्वालियर का सम्यक विकास न हो पाने से न यहां सिटी बसे सेवा संचालित हो पा रही है और न निजी टैक्सी सेवाएं ,शहर के एक सिरे से दुसरे सिरे तक पहुँचने में ज्यादा समय ही नहीं लगता ,जबकि भोपाल,इंदौर और जबलपुर मीलों इलाके में फ़ैल चुका है .योजनाकारों की अदूरदर्शिता अभी तक ग्वालियर को एक विकसित गांव की परिधि से बाहर नहीं ले जा सकी है . नई सरकार और नए जन-प्रतिनिधियों को इस दिशा में गंभीरता से ध्यान देना चाहिए और कोशिश करना चाहिए की अब कोई भी नया विकास हरियाली रहित न हो .
@ राकेश अचल
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