अम्बेडकर नगर। जलालपुर तहसील क्षेत्र के सुरहुरपुर गांव में मझुई नदी के किनारे स्थित राजभर वंश के किले व उसमें स्थित शाहनूर बाबा की मजार को लेकर उठे विवाद के बीच ऐतिहासिक व पुरातात्विक साक्ष्य विवादों को सुलझाने में बेहद मददगार साबित हो सकते हैं। इस विवाद को देखते हुए उपजिला मजिस्ट्रेट जलालपुर ने सम्बन्धित स्थल पर जनसामान्य का प्रवेश यह कहकर प्रतिबन्धित कर दिया है कि इस स्थल की जांच पुरातत्व विभाग व मजिस्ट्रेट द्वारा की जा रही है।
अवध गजेटियर के भाग एक पृष्ठ संख्या 321 से 324 तक सुरहुरपुर में महाराजा सुरेन्द्र उर्फ सोहन डाल का शासन था। सोहन डाल ने यहां पर भारशिव नागेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कराया था। इस मंदिर के निर्माण के पूर्व मझुई नदी के दक्षिण पूर्व दिशा में उनकी कुल देवी मरी माई का मंदिर स्थापित है। यह मंदिर आज भी विद्यमान है। इसके अलावां तत्कालीन सजावल गढ़ व वर्तमान में सिझौली में भी इसी वंश के राजा सुझावल रावत का शासन था। इसके साथ ही जिले में अन्य स्थानों पर भी राजभर वंश के राजाओं का शासन होने का उल्लेख मिलता है। इसके उपरान्त मुगलों के द्वारा किये गये आक्रमण में राजभर वंश के राजाओं को मारा गया तथा उनके किलों को ध्वस्त किया गया। पुरातत्व विभाग इस तथ्य को प्रमाणित करता है कि इन किलों में लगाई गई ईटें ग्यारहवीं शताब्दी के पहले भारशिव काल की हैं।
मुगल शासकों ने इन किलों में लाखौरी ईटों का प्रयोग कराया था लेकिन जब इन ईंटो को निकाला जाता है तो उनके नीचे भार शिव काल की ईटें जो 11 गुणे 13 इंच की हैं, मिलती हैं। इसके अलावां गुरूकुल में बौद्ध कालीन ईटें जो साढ़े आठ गुणे सात इंच की हैं, पाई गई हैं। यहां की खुदाई में मिले मृदभांड़ में ग्यारहवीं शताब्दी तक के काले पत्थर पाये गये हैं। लाखौरी ईटों का प्रयोग केवल मुगल काल में ही किया जाता रहा है जबकि भारशिव काल की ईटें बारहवीं शताब्दी तक की मानी जाती हैं। ऐसे में यह स्पष्ट होता है कि यहां पर पहले राजभर वंश के राजाओं का किला था। सुहेलदेव का जन्म सुरहुरपुर के इसी किले में हुआ था । यहां इनका ननिहाल बताया जाता है। 1324 एडी में तुगलक वंशीय राजा गयासुद्दीन ने इस किले को तोड़वा दिया था तथा वहां पर सरवरीपीर की दरगाह स्थापित करा दी थी। सुरहुरपुर का यह किला ढाई एकड़ में बना हुआ था। इन ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह स्पष्ट होता है कि जिस स्थल को लेकर विवाद उत्पन्न किया जा रहा है वहां पर पहले सुहेलदेव के ननिहाल के राजाओं का शासन था जिसे बाद में मुगल कालीन शासकों ने अपने कब्जे में ले लिया था। सर्वेक्षण के अनुसार जिस स्थान पर मजार की बात की जा रही है वह स्थान भारशिव नागेश्वर का मंदिर है जिसे वीर शिरोमणि चक्रवर्ती सम्राट महाराजा सुहेलदेव के जन्म की यादगार में उनके नाना सोहन दल ने बनवाया था। कालान्तर में विदेशी आक्रमणकारी सालार मसूद गाजी ने उसे तोड़ दिया था।
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