ये चुनाव प्रचार है या रामलीला ?
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घर से ही नहीं देश से भी बहुत दूर मित्रों के साथ बंगाल में केंद्रीय गृहमंत्री श्री अमित शाह की चुनाव रैली की खबरें देख रहा था,अचानक श्री शाह को जय श्रीराम   का नारा लगवाते देख एक साथी ने सवाल किया-'भाई आपके गृहमंत्री जी चुनाव रैली में हैं या किसी रामलीला में ? सवाल सुनकर मुझे काटो तो खून नहीं .एक अप्रवासी भारतीय को भारतीय राजनीति के इस चेहरे को लेकर क्या कहूँ ?मौन रहा,क्योंकि मौनी अमावस्या जो थी .
मित्र तो फटाफट सौ खबरें देखकर लौट गए लेकिन उनका सवाल मेरे मन में कौंधता रहा .सवाल का जबाब मेरे पास था लेकिन मै किसी को अपने देश के गृहमंत्री के बारे में क्या कहता ,इसलिए चुप रहा .बंगाल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर एक सरकारी समारोह में भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा मुख्य मंत्री सुश्री ममता बनर्जी के भाषण से ठीक  पहले लगाए गए जय श्रीराम के नारे के निहितार्थ समझ में आ गए .भारत के केंचुआ बंगाल में आदर्श आचरण संहिता की धज्जियां उड़ने वालों को किसी भी सूरतमें पकड़ न तो दूर उन्हें नोटिस तक नहीं दे सकता ?क्या केंचुआ में इतना माद्दा है कि  वो देश के गृहमंत्री से इस बाबद सवाल कर सके,सवाल तो दूर एक नोटिस ही दे सके ?
देश में किसान 76  दिन से दिल्ली की देहलीज पर धरना दिए बैठे हैं,उत्तराखंड में चमोली हादसा हो चुका है लेकिन देश के गृहमंत्री श्री अमित शाह बंगाल में चुनाव रैलियों  के दौरान जयश्रीराम के नारे लगवा रहे हैं .शाह शायद भूल जाते हैं कि वे एक भाजपा के गृहमंत्री नहीं है अपितु पूरे देश के गृहमंत्री है,उन्होने संविधान की शपथ ली है ,इसलिए  उन्हें ये सावधानी तो बरतना पड़ेगी कि वे देश में भाजपा कार्यकर्ता की हैसियत से चनावी सभा में जय श्रीराम   के नारे न लगाए न लगवाएं .वे भारत माता की जय बोल सकते हैं .
जैसा कि मै पहले भी इंगित कर चुका हूँ कि भाजपा जानबूझकर भवान श्रीराम का नारा लग रहे है .राम को छोड़ बंगाल में उसका कोई सहारा नहीं है .यानि बंगाल में भाजपा कि नौका रामजी ही ठिकाने लगाएंगे .भाजपा मैदानी स्तर पर मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी के खिलाफ कोई  मुद्दा उछाल पाने में कामयाब नहीं हुई है .बंगाल में ममता बनर्जी तो बंगाली अस्मिता का प्रतीक हैं किन्तु अमितशाह या नरेंद्र मोदी नहीं हैं .इन 'हम दो,हमारे दो '.को बंगाल में आज भी बाहरी व्यक्ति माना जाता है .हालाँकि  निजी  तौर पर मै इस धारणा  के खिलाफ हूँ .जो भारत में है बाहरी कैसे हो सकता है ? बंगाल में विधानसभा चुनाव भाजपा की प्रतिष्ठा का कारण बना हुआ है .
संसद में बीते रोज तृमूकां कि एक महिला संसद  ने सरकार की सारी लू बड़ी ही शालीनता से उतार दी थी.उसने इस राष्ट्रीय कार्य के लिए जयश्रीम के नारे का इस्तेमाल  नहीं किया .जिनका भरोसा जनता में होता है वे राम को राजनीति में  नहीं घसीटते सबका साथ और सबका साथ का जुमला बोगस साबित होने वाला है .जयश्रीराम के नारे से जाती तौर पर मुझे कोई आपत्ति  नहीं  है लेकिन चुनावी सभाओं में राम के नाम के चप्पू चला और किसी को इसी वजह से चिढ़ाने के कर्म को मै कुकर्म मानता हूँ .
 बंगाल में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा होने ही वाली है। सम्भवत: अप्रैल के तीसरे हफ्ते में 6 या 7 चरणों में चुनाव होंगे। चुनाव के पहले दल बदल का सिलसिला जोरों पर चला और तृणमूल के कई विधायक एवं कुछ मंत्री पार्टी छोड़कर चले गये। अभी चुनाव को लेकर जितनी गहमागहमी हो रही है, आने वाले दिनों में यह सरगर्मी और बढ़ेगी एवं चुनाव का शोर-शराबा चलता रहेगा। प. बंगाल विधानसभा की 294 सीटों पर चुनाव होगा, जिसमें मुख्य रूप से सत्ताधारी पार्टी तृणमूल के मुकाबले कांग्रेस-बाममोर्चा का गठबंधन के अलावा भारतीय जनता पार्टी चुनाव मैदान में रहेगी। कुछ छोटी पार्टियां किसी बड़े दल के साथ गठबंधन का हिस्सा बनने के लिए भाग दौड़ में लगी हुई है।
भाजपा बंगाल विधानसभा चुनाव जीते या हारे इससे भाजपा की सेहत पर फर्क पड़  सकता है किन्तु देश को इससे बहुत कुछ फर्क पड़ने वाला नहीं है.क्योंकि देश की समस्या बंगाल का चुनाव नहीं है .देश की असल समस्या बेरोजगारी,बीमारी,सीएए है .भाजपा इन मुद्दों को छेड़ने में घबड़ाती है,मुद्दों से दौर भागती है  .भाजपा को राम के नाम के सहारे बंगाल में बैतरणी पार करना है .बनगाल में एक चौथाई सदी तक राज करने वाले वामपंथोयोन का कोई अता-पता नहीं है अपने आपको राष्ट्रीय दल कहने वाले तमाम क्षेत्रीय दल भी एक साथ खड़े होकर तृमूकां या भाजपा के लिए चुनौती खड़ी नहीं कर पा रहे हैं .
देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये है कि देश पर आधी सदी से अधिक समय तक राज करने वाली कांग्रेस सन्निपात का शिकार है. कांग्रेस न अकेले भाजपा से जूझ पा रही है और न उसके पास बिखरे हुए विपक्ष को एकजुट होने की क्षमता है .भाजपा इसी स्थिति का लाभ ले रही है. कांग्रेस की संगठन क्षमता  भी वामपंथी संगठनों जैसी हो गयी है .जो होते हुए भी नजर नहीं आ रही है .बंगाल की जनता के लिए राम नए तो नहीं हैं किन्तु इस चुनाव में भाजपा राम को हर दिमाग में प्रवेश कराना चाहती है .
भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पर से जनता का भरोसा उठा है या नहीं ये कहना मेरे लिए बहुत आसान है किन्तु मै कहूंगा नहीं,क्योंकि ऐसा कहना उचित नहीं है. भाजपा एक मजबूत जनादेश लेकर देश की सत्ता में है ,इसलिए ये उसका मौलिक अधिकार बनता है कि वो अपने पंख पसारते हुए जयश्रीराम का सहारा ले या किसी और नाम का .ये जबाबदेही देश के संविधान की शपथ लेकर देश सेवा करने वालों की है कि वे अपने आपको पूरे देश का सेवक मानते हैं या केवल भाजपा का ?फिलहाल तो केंद्र सरकार के आचरण से लगता ही नहीं है कि केंद्रीय मंत्रियों ने संविधान की शपथ लेकर मंत्री पद सम्हाले थे .
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम का इस्तेमाल करते हुए राजनीति करना कुछ लोगों के लिए तर्कसंगत हो सकता है लेकिन समूचे देश के लिए नहीं .देश बहु भाषाभाषी है,धर्म निरपेक्ष है ,इसलिए यहां के मंत्री चुनाव जीतने के लिए यदि खुल्ल्मखुल्ला जय श्रीराम के नारे लगवाते हैं तो ये न सिर्फ  राम का अपमान है बल्कि देश के संविधान की भी अवमानना है. देश की सबसे बड़ी अदालत को भगवान ने तीसरा नेत्र और हजार हाथ दिए हैं.ये उसका भी दायित्व है कि वो एक धर्मनिरपेक्ष और साझा संस्कृति के देश की जय श्रीराम  न होने दे. जयश्रीराम .
@ राकेश अचल

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