लालगंज। श्रीमती इंदिरा गांधी राजकीय पीजी कॉलेज में राजनीतिक व सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अनुसंधान विषयक शोध सेमिनार के पांचवें दिन वक्ताओं ने कहा कि कल्पना समाज की खूबसूरती है। जिसके आधार पर ऐसे आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं, जिससे समाज के ढांचे में नई ऊर्जा का संचार होता है। कहा कि प्रत्यक्ष अनुभव और दृश्य नए प्रयोग के माध्यम बनते हैं।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रोफेसर रमाशंकर त्रिपाठी ने कहा कि आधुनिक समाज में शोध पद्धतियां में परिवर्तन हुए हैं। इसलिए शोध में कल्पना आंकड़ा और प्रश्नोत्तर समेत विभिन्न तरीके अपनाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य भारती समाज शास्त्रियों की ओर से परंपरागत व आधुनिक शैली में अपनाए गए तरीके शोध में नए रास्ते बनाए हैं। कहा कि शिक्षण संस्थाओं के शोध केंद्र से निकले सिद्धांत समाज को शक्तिशाली बनाने और नई दिशा देने का काम आते हैं। वाराणसी डीएवी पीजी कॉलेज के डॉ. जियाउद्दीन ने कहा कि वर्तमान समाज जो देखता, सुनता, समझता है उसके आधार पर अपने निर्णय करता है। कहा कि डिजिटल दौर में प्रत्यक्ष तौर पर श्रव्य दृश्य माध्यमों के साथ नियमित प्रयोग किए जाने वाले वाद व्यवहार से नये विचार जन्म ले रहे हैं। ऐसे नव विचार किस अंदाज और किस व्यवस्था को बना रहे है। उनके विभिन्न पहलुओं पर नए तरीके से शोध किए जाने की जरूरत है। कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉ. एस के एस पांडेय अंग्रेजी के ओथेलो नाटक के आधार पर वर्तमान राजनीतिक समाज पर प्रकाश डाला। कार्यशाला के संयोजक डॉ. गौरव त्रिपाठी, संचालन डॉ.सुजीत सिंह, आभार डॉ. गिरिजेश शुक्ला ने दिया। इस अवसर पर डॉ. उपेंद्र सिंह, डॉ. शिवमंगल यादव, डॉ. केके गिरी, डॉ. प्रभात पांडे, डॉ. रमोद मौर्या, डॉ. रश्मि सिंह, मुमताज शामिल हुए।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रोफेसर रमाशंकर त्रिपाठी ने कहा कि आधुनिक समाज में शोध पद्धतियां में परिवर्तन हुए हैं। इसलिए शोध में कल्पना आंकड़ा और प्रश्नोत्तर समेत विभिन्न तरीके अपनाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य भारती समाज शास्त्रियों की ओर से परंपरागत व आधुनिक शैली में अपनाए गए तरीके शोध में नए रास्ते बनाए हैं। कहा कि शिक्षण संस्थाओं के शोध केंद्र से निकले सिद्धांत समाज को शक्तिशाली बनाने और नई दिशा देने का काम आते हैं। वाराणसी डीएवी पीजी कॉलेज के डॉ. जियाउद्दीन ने कहा कि वर्तमान समाज जो देखता, सुनता, समझता है उसके आधार पर अपने निर्णय करता है। कहा कि डिजिटल दौर में प्रत्यक्ष तौर पर श्रव्य दृश्य माध्यमों के साथ नियमित प्रयोग किए जाने वाले वाद व्यवहार से नये विचार जन्म ले रहे हैं। ऐसे नव विचार किस अंदाज और किस व्यवस्था को बना रहे है। उनके विभिन्न पहलुओं पर नए तरीके से शोध किए जाने की जरूरत है। कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉ. एस के एस पांडेय अंग्रेजी के ओथेलो नाटक के आधार पर वर्तमान राजनीतिक समाज पर प्रकाश डाला। कार्यशाला के संयोजक डॉ. गौरव त्रिपाठी, संचालन डॉ.सुजीत सिंह, आभार डॉ. गिरिजेश शुक्ला ने दिया। इस अवसर पर डॉ. उपेंद्र सिंह, डॉ. शिवमंगल यादव, डॉ. केके गिरी, डॉ. प्रभात पांडे, डॉ. रमोद मौर्या, डॉ. रश्मि सिंह, मुमताज शामिल हुए।
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