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हम भारतीय जीवन के हर पहलू को समझते हैं लेकिन मानते नहीं है,.हमारे यहां जितना अभिव्यक्ति को महत्व दिया जाता है उतना ही महत्व मौन को भी दिया गया है ,लेकिन दुर्भाग्य ये कि हम अभिव्यक्ति की आजादी के लिए तो बावले हो जाते हैं लेकिन मौन के लिए उदासीन .माध माह की अमावस्या को इसी लिए सभी को मौन धारण करने के लिए कहा जाता है .
भारतीय मनीषी समाज की उच्छश्रृंखलता से भलीभांति परिचित थे इसीलिए उन्होंने हमारे तमाम क्रियाकलापों को धर्म से जोड़ दिया.वे जानते थे कि भारतीयता धर्मभीरु तो है है. हमारे यहां हर तीज,त्यौहार,व्रत किसी न किसी दंतकथा या किंवदंती के सहारे आज तक जीवित हैं .कुछ लोग कहते हैं कि ये समाज को भ्रमित करने के लिए ब्राम्हणों का किया धरा है .इन कथा-कहानियों में कोई सच्चाई नहीं है .मुमकिन है कि ये धारणा भी सही हो ,बावजूद इसके दुनिया में बहुत कम देश और समाज तथा संस्कृतियां ऐसी हैं जहाँ हर दिन का कोई न कोई महत्व तय किया गया है .
बहरहाल बात मौन की हो रही थी. शब्दों को साधने के लिए जितना वाचाल होना आवश्यक है उतना ही मौन रहना भी. मौन अभिव्यक्ति की एक दुरूह कला है. मौन स्वीकृति का भी परिचायक है और असहमति का भी .मौन शब्दों को शक्ति देने की भी कला है. हमारे पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह बहुत कम और नाप-तौल कर बोलते थे ,सियासत ने उनके इस गुण की खिल्ली उड़ाई और उन्हें डॉ मौन मोहन सिंह का नाम दे दिया.लेकिन वे न विचलित हुए और न उन्होंने इस टिप्पणी पर कभी कोई प्रतिक्रिया ही जताई .कांग्रेस के एक और नेता अर्जुन सिंह भी लगभग मौन ही रहते थे .
हमारे एक प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी हैं ,जो कभी मौन ही नहीं रहते.बोलने के हर साधन का प्रयोग करते हैं और मन की बाते तो नियमित रूप से करते हैं .लेकिन मौन उन्हें भी भाता है. वे जब जरूरी होता है तब मौन धारण कर लेते हैं और जब जरूरी नहीं होता तब वाचाल हो जाते हैं .सबके अपने-अपने गुण हैं .हमारे यहां एक मौनी बाबा भी खूब लोकप्रिय थे. बड़े-बड़े नेता उनके मौन खुलने का इन्तजार करते थे,लेकिन वे थे कि मौन रहकर ही सबका कलयाण कर देते थे .मौन होता ही कल्याणकारी है .
भारत में मौनी अमवस्या एक योग विधा भी है.मौन रहना आसान काम नहीं है,इसकी सतत साधना करना पड़ती है .मौन साधने के लिए अनेक विधि-विधान हैं ,लेकिन हम आलसी लोग केवल साल में एक दिन कुछ घंटे मौन रहकर सकल पुण्य लाभ कमा लेना चाहते हैं.थोड़ा बहुत दान-पुण्य कर हम अपने मौन की पूँजी का सूद वसूलना चाहते हैं .हकीकत ये है कि मौन संतत्व की पहली सीढ़ी है .दुर्वचन बोलने से श्र्ष्ठ है की आप मौन रहें ,मौन रहने से अनेक अवसरों पर बड़ी से बड़ी विपदाएं टल जाती हैं ,शर्त ये है की यदि आप ऐसा करना चाहें तो .
हमारे मुहल्ले के हल्ले पंडित जी कहते हैं कि यूं तो गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप क्षय हो जाते हैं किन्तु मौनी अमावस्या के दिन गंगा नगी में स्नान करने के अत्यंत महत्व होता है। ठंड के मौसम में गंगा के शीतल जल में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। माघ महीने में आने वाली पहली अमावस को मौनी अमावस्या नाम से जाना जाता है। इस अमावस्या की खास बात है कि इस दिन मौन रहकर पूजा-पाठ और व्रत किया जाता है।
माघ माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं। इस दिन मौन रहना चाहिए। मुनि शब्द से ही 'मौनी' की उत्पत्ति हुई है। इसलिए इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से देवताओं से पुण्य की प्राप्ति होती है और पितरों को शांति मिलती है। मौनी अमावस्या को भौमवती अमावस्या और मौन अमवस्या भी कहा जाता है। इस दिन मौन रहकर यमुना या गंगा में स्नान करना चाहिए। यदि यह अमावस्या सोमवार के दिन हो एवं कुंभ मेला लगा हो ते तो इसका महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
चूंकि कोविडकाल है इसलिए हमारा सुझाव है की आप भले ही गंगा न जा सकें लेकिन अपने मन को चंगा रखें,आपकी कठौती में गंगा अपने आप आ जाएगी. आपके आसपास कोई भी जल स्रोत हो आप उसमें डुबकी लगा सकते हैं,न हो तो भी चिंता की कोई बात नहीं है. आप अपने स्नानागार में गीजर के गर्म जल से स्नान कर भी गंगा स्नान का पुण्य हासिल कर सकते हैं .मौनी अमावस्या के दिन मौन रखकर आप खुद को परख सकते हैं.मदद के लिए अपनी पसंदीदा पुस्तक पढ़ सकते हैं ,हवन-यज्ञ करा सकते हैं और कुछ नहीं तो पेट पूजा के बाद लम्बी तानकर सो भी सकते हैं,शर्त केवल इतनी ही है की आप मौन रहें.परिजनों से भी न बोलेन और हो सके तो अपने आपसे भी नहीं बोलें.
मौनी अमावस्या नेताओं की थकी जुबान को राहत का दिन हो सकता है .दुनिया के नहीं तो कम से कम भारत के नेता यदि एक दिन मौन रख लें तो मुमकिन है की लाखों झूठ बोलने से बचा जा सकता है .नेता ों का मौन साधना बड़ा कठिन काम है लेकिन जिन्हें राजनीति में लम्बी पारी खेलना है ,उन्हें कम से कम साल में एक बार माघ माह में मौन तो रहना ही पडेगा .आपकी आप जानें,मै तो चला मौन धारण करने .
@ राकेश अचल
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