आंसू  तेरी अजब कहानी 
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देश को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का कृतज्ञ होना चाहिए कि  उन्होंने गुलामनबी आजाद के सम्मान में आंसू बहाकर आंसुओं को उनका खोया हुआ सम्मान वापस लौटाया .मुझे आंसुओं का दर्शनशास्त्र ज्ञात नहीं है लेकिन मै जन छात्र था तब मैंने जयशंकर प्रसाद के आंसू पढ़े थे.जी हाँ आंसू केवल दिखाई ही नहीं देते ,वे पढ़े भी जा सकते हैं .प्रधानमंत्री जी के आंसुओं  को भी देश को नहीं तो कम से कम विपक्ष को तो पढ़ना ही चाहिए .
आंसुओं का स्वाद खरा होता है,यानि वे नमकीन होते हैं ,आंसुओं में ये खारापन कहाँ से आया,इसकी एक लम्बी कहानी है इसलिए इसे जाने दीजिये .हमारा सिनेमा कहता है कि  -आंसू तो दिल की जुबान होते हैं ,लेकिन  सियासत कहती है कि  आंसू केवल घड़ियाल के होते हैं ,लेकिन मै कहता हूँ कि  आंसू केवल आंसू होते हैं,उनकी कोई जात नहीं होती,कोई रंग नहीं होता ,अलबत्ता कुछ लोग दावा करते हैं कि आंसुओं का रंग खून जैसा भी होता है .कौन के आंसू कैसे निकलवाए जाते हैं ये कुछ लोग ही जानते हैं .हर किसी के बस की बात नहीं है खून के आंसू निकलवाना .
बचपन में जब हमें मनचीती चीज नहीं मिलती थी तब हम तब तक रोते थे जबतक की हमारा आंसुओं का स्टॉक समाप्त नहीं हो जाता था. अंतिम आंसू कपोलों पर अपने निशान छोड़ देते हैं .जो आंसू निशान नहीं छोड़ते,वे असली आंसू हो ही नहीं सकते.हमारा अपना अनुभव है कि  आंसू बहाने से दिल हल्का हो जाता है ,शायद इसीलिए बहुत से लोग वक्त,बेवक्त अपने आंसू बहकर दिल हल्का कर लेते हैं,यदि वे ऐसा न करें तो फिर उन्हें दिल हल्का करने के लिए दूसरी चीजें लेना पड़तीं हैं .दिल हल्का करना यानि गम गलत करना भी होता है ,और गम गलत कैसे होते हैं ये आपको केष्ट्रो  मुखर्जी के वंशज ही अच्छी तरह बता सकते हैं .
हमारे  देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने आंसुओं का महत्व समझा है. यही वजह है कि  दुनिया भर में आन्दोलनजीवियों की उग्रता कम करने के लिए उनके ऊपर कुछ ऐसे गोले छोड़े जाते हैं कि  बेचारे भलर-भलर आंसू बहाने लगते हैं. आंसू निकलवाने वाली गैस को आंग्ल भाषा में ' टियर गैस' कहते हैं .टियर गैस को हमारी भाषा में अश्रु गैस कहते हैं .विज्ञान का ही कमाल है कि  हमारे पास आज हंसाने और रुलाने वाली दोनों तरह की गैसे हैं .यानि हम जब चाहें तब हंस सकते हैं और जब चाहें तब रो सकते हैं .यानि हम बहुत से मामलों में आत्मनिर्भर न भी हों किन्तु हंसाने और रुलाने के मामले में हमारी आत्मनिर्भरता स्तुत्य है .
दुर्भाग्य की बात ये है कि  हमारे समाज में राजनेताओं और आन्दोलनजीवियों के आंसुओं को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता. फिर चाहे वे आंसू प्रधानमंत्री जी के हों या महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे हमारे नामराशि राकेश टिकैत के .विशेषज्ञ कहते हैं कि  नेताओं के आंसू उन्ही  की तरह काबिले यकीन नहीं होते .इसीलिए नेताओं के आंसुओं की तुलना घड़ियाल के आंसुओं से की जाती है. दुनिया में सबसे ज्यादा घड़ियाल हमारी चंबल नदी में हैं .हमारे यहां घड़ियालों का अभ्यारण्य भी है ,लेकिन हमने कभी अपने घड़ियालों को आंसू बहाते  नहीं देखा .हमारे चाचा कहते थे की जो घड़ियाल सा मोटी चमड़ी का होगा वो भला आंसू कैसे निकाल सकता है ?
आज के समय में जब प्रधानमंत्री जी के आंसू निकल सकते हैं तो आप कल्पना कीजिये कि  जनता का क्या हाल होगा,जो मंहगाई,बेरोजगारी,मंदी, कालाबाजारी,कालाधन और न जाने किस-किस से परेशान है .जनता की शिकायत यही है कि  आजकल का गोदी में बैठने वाला मीडिया जनता के आंसू दिखाता ही नहीं जबकि जनता सचमुच खून के  आंसू बहाने पर मजबूर है .आंसुओं के बारे में भक्तिकाल के समय अलग इस्तेमाल होता था. उस समय प्रेम बेल को बढ़ने के लिए आंसू सिंचाई के काम आते थे .मीराबाई ने तो सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया  था कि  उनके यहां जो प्रेमबेल थी उसे असुअन जल सींच-सींच कर जीवित रखा गया था .
आंसुओं को लेकर हमारे नेत्र विशेषज्ञ भी कहते हैं kii आंसू बुरी चीज नहीं हैं,क्योंकि आँसू आँख की अश्रु नलिकाओं से निकलने वाला तरल पदार्थ है जो जल और नमक के मिश्रण से बना होता है। यह आँख के लिए बेहद  लाभकारी होता है। यह आँख को शुष्क होने से बचाता है तथा उसे साफ और कीटाणु रहित रखने में मदद करता है।अब आँखें कौन नहीं बचाना चाहेगा ? सिनेमा में तो जब कलाकार के आंसू नहीं निकलते तो ग्लिसरीन का इस्तेमाल कर नकली आंसू बहाना  पड़ते हैं .दरअसल आंसूओं को देखकर अच्छे -अच्छे ग्लेशियर जैसे लोग भी पिघल जाते हैं,अर्थात आंसुओं की तासीर गर्म होती है .लेकिन किसानों के आंसू हमारी देश की सरकार को नहीं पहला सके इसलिए अब ये तर्क संदिग्ध लगने लगा है कि  आंसुओं में संग से संगदिल को पिघलाने की ताकत है .
हमने आंसुओं के सभी प्रकार देखे हैं. खुशी के आंसू हों या गम के आंसू ,दोनों का स्रोत एक ही होता है,दोनों का स्वाद एक जैसा होता है .हमने खून के आंसू भी देखे हैं लेकिन वे लाल तो नहीं होते हाँ निकलते बड़ी मुश्किल से हैं और जिसके निकलते हैं वो या तो रक्ताल्पता का शिकार हो जाता है या फिर उन्हें पीकर रह जाता है . मै खून के आंसू पीने और बहाने में   पारंगत हूँ  .आंसू पोंछने के लिए नववधुएं अपनी भारी साड़ी के पल्लू का इस्तेमाल करतीं हैं,कोई रूमाल तो कोई पेपर नेपकिन यानि टिसू पेपर का इस्तेमालकर्ता है. बच्चे अपने आंसू अपनी मैली आस्तीन से ही पौंछ लेते हैं .
आंसू निकलने के लिए कोई कारण हो ये जरूरी भी नहीं है.आंसू प्याज काटते हुए,प्याज पैदा करते हुए और प्याज के दाम गिरते -चढ़ते हुए भी निकल सकते हैं .आंसुओं का बाजार से सीधा रिश्ता है इसीलिए हर आंसू की कीमत होती है और जो आंसू निकलवाता है उसे ये कीमत अदा करना ही पड़ती है .कीमत का निर्धारण देशकाल,परिश्थिति के अनुसार होता है. सीतारामी बजट तो हर  साल जनता के आंसू निकलवाता आ आरहा है.बजट के समय आंसू अपने आप स्वाभाविक तरीके से निकलते हैं .ये आंसू वास्तविक आंसू कहे जाते हैं. 
जो पढ़े-लिखे लोग हैं वे जानते हैं कि  आंसू शायरों और कवियों के लिए कितना महत्वपूर्ण विषय रहे हैं. मैंने जयशंकर प्रसाद के आंसू से अपनी बात शुरू की थी और आपको बताता हूँ की चाचा ग़ालिब भी आंसुओं पर लिखे बिना नहीं माने .ग़ालिब ने लिखा -
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल 
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है 
बिस्मिल साबरी लिखते हैं की-
वो अक्स बन के मिरी चश्म-ए-तर में रहता है 
अजीब शख़्स है पानी के घर में रहता है
शेख इब्रहिम जौक साहब कहते है कि-
एक आँसू ने डुबोया मुझ को उन की बज़्म में 
बूँद भर पानी से सारी आबरू पानी हुई 
और तो और साहिर लुधियानवी साहिब ने भी कह दिया कि-
उन के रुख़्सार पे ढलके हुए आँसू तौबा 
मैं ने शबनम को भी शोलों पे मचलते देखा
कहने का मतलब ये है कि आंसू अब्दे काम कि चीज हैं ,इन्हें जाया नहीं किया जाना चाहिए,कम से कम पंत प्रधान को तो इस मामले में ख़ास एहतियात बरतना चाहिए,अन्यथा आंसू बहन,आंसू पीना किसी दिन राष्ट्रधर्म या कहिये राजधर्म भी बन सकता है .मेरे ख्याल से प्रधामंत्री  जी को मोहम्मद अल्वी साहिब की सलाह मान लेना चाहिए,अल्वी साहब फरमाते हैं कि-
रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू 
ख़ास मौक़ों पे मज़ा देते हैं 
@ राकेश अचल

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