++अयोध्या ब्यूरो चीफ,डा०ए०के०श्रीवास्तव+
++: चेतना विचारों से इस तरह से आत्मसात कर ली है कि वह कभी विचारों से मुक्त होकर रहने की सोच ही नहीं सकती , क्योंकि विचार से ही वह अपना अस्तित्व समझती है। किंतु जब कोई विचार से मुक्त व्यक्ति हमारे सामने आता है तब पता चलता है कि विचार से मुक्त जीवन ही वास्तविक जीवन है । विचार से अपने को अलग कर लेना ही , जीने की कला है ।प्रकृति की परिवर्तनशीलता और आत्मा की शाश्वता दोनों हमारे लिए वरदान हैं । इसलिए कि प्रकृति की परिवर्तनशीलता के कारण ही हमारी शारीरिक और मानसिक स्थिति बदलती है और आत्मा की शाश्वता के कारण हम जैसे थे , वैसे ही हैं और आगे भी रहेंगे । अगर प्रकृति परिवर्तनशील न होती तो शरीर के तल पर बालपन , जवानी और बुढ़ापा न होता और न ही मन के तल पर सुख-दुख और आत्मा अगर शाश्वत न होती तो मौत के बाद जीवन संभव न होता । इस प्रकार प्रकृति की परिवर्तनशीलता और आत्मा की अमरता दोनों हमारे लिए आवश्यक हैं  । इसे वरदान कहें या अभिशाप आत्मा हमें मरने नहीं देती और प्रकृति हमें जीने नहीं  । इसी को कबीर ने कहा -
 चलती चक्की देख के दिया कबीरा रोय । दो पाटन के बीच में साबित बचा न कोय ।इस अभिशाप से मुक्त होने का सिर्फ एक ही तरीका है वह यह कि हमारी जो वास्तविक स्थिति है अमरता की , शाश्वतता की , आत्मा की उसी में हम स्थित हो जाएं । उसमें स्थित हो जाने से आंतरिक सुख शांति आनंद मोक्ष सब प्राप्त हो जाते है। इससे एक लाभ और मिलता है वह यह कि हम कर्ता के बजाय द्रष्टा हो जाते हैं । जिससे संसारिक कर्म एक नाटक मालूम पड़ता है । इस प्रकार संसार का भी सुख मिलता है और आत्मा का भी , इसी के साथ ईश्वर आप का कल्याण करे।🎄🎄🌹🌹🌹🌹

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