डाक्टर ए०के०श्रीवास्तव,अयोध्या ब्यूरो चीफ+सुख और दुःख का मनोविज्ञान एक दूसरे के विपरित हैं । सुख में मन विषय पर केंद्रित नहीं होता इसलिए वह मुंगेरीलाल की तरह सपने देखने लगता है , जिससे सुख का क्षण कब निकल जाते हैं पता ही नहीं चलता । वहीं दुःख में विषय पर इस तरह से केंद्रित हो जाता है कि वह जीवन को हिलाकर रख देता है । यही कारण है कि दुःख का हमें बहुत गहरा अनुभव होता है जबकि सुख का बिल्कुल नहीं ।यदि इस सिद्धांत को पलट दिया जाय अर्थात सुखवाले विषय में मन केंद्रित हो जाय और दुःख वाले विषय में विषयांतर हो जाय तो क्षणभर के सुख का जो अनुभव होगा  उससे जीवन रोमांच से भर जायेगा और दुःख  कब चला गया उसका पता ही नहीं चलेगा । इससे स्पष्ट है कि सुख दुःख हमारे ध्यान के कारण ही हमें प्रभावित करते  हैं । अतः ध्यान के विज्ञान को सीखकर  सुख से जीया जा सकता है ।🎄🎄⛹🏼‍♂️🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹⛹🏼‍♂️🎄🎄

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने