दिनेश त्रिवेदी :नए बिभीषण 
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दिनेश त्रिवेदी से मेरा परिचय उस समय हुआ था जब वे लोकसभा में रेलमंत्री की हैसियत से रेल बजट पेश कर रहे थे और इसी दुअरान उन्हने अपने इस्तीफे की घोषणा की थी .मैंने उन्हें ट्विटर पर साहसिक रेल बजट पेश करने और पद त्याग करने के लिए बधाई दी थी,जबाब में सदन से ही उन्होंने मुझे उत्तर भी भेज दिया था .इतने सरल और सहज नेता का ममता बनर्जी की पार्टी से मोह भंग  होना कोई हैरानी की बात नहीं है .पिछले आठ साल से बंगाल में तृमूकां के भीतर जो चला रहा था उसे देखते हुए ये तो होना ही था .अब वे भाजपा के नए बिभीषण हो सकते हैं .
बंगाल में चुनाव की बेला में दिनेश त्रिवेदी के इस्तीफे की खबर से मै चौंका बिलकुल नहीं किन्तु मुझे ये हैरानी जरूर हुई की पंडित जी ने बीते आठ साल तक अपने आपको रोक कर कैसे रखा ?आपको याद होगा कि  डॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्‍व वाली यूपीए सरकार में  त्रिवेदी जीने 2012 में बतौर रेल मंत्री रेल बजट पेश किया था. इस बजट में रेल किराया तो बढ़ाया गया था, लेकिन आधुनिकीकरण और सुरक्षा पर विशेष ध्‍यान दिया था. उस वक्‍त इस बजट को 'सुधारवादी' करार दिया गया. लेकिन शायद ममता बनर्जी को यह रास नहीं आया. बजट पेश करने के बाद त्रिवेदी को ममता बनर्जी और पार्टी के कुछ अन्‍य वरिष्‍ठ नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा.और इसकी परिणति ये हुई कि त्रिवेदी को अपने पद से इर्टीफ़ा देना पड़ा था .
आज के युग में मंत्रिपद त्यागना बहुत कठिन काम है लेकिन त्रिवेदी ने अपना इस्तीफा ऐसे दे दिया था जैसे कोई कुंजर अपने गले से फूलों की माला उतार कर फेंक दे .इस कड़वाहट के बाद भी त्रिवेदी पार्टी में बने रहे. ममता बनर्जी ने त्रिवेदी को बाद में राज्य सभा   में  भेज दिया ,लेकिन दिल जो एक बार टूटे वे फिर कभी जुड़े नहीं .और आठ साल बाद त्रिवेदी जी को ममता का साथ निर्ममता के साथ छोड़ देना पड़ा .पिछले कुछ महीनों में बहुते से वरिष्ठ नेताओं ने ममता बनर्जी का साथ छोड़ा है और ये सचमुच बंगाल के लिए शुभ नहीं हैं .
दिनेश त्रिवेदी ममता का साथ छोड़कर आगे किस दल का हाथ थामेंगे ,कोई नहीं जानता ,लेकिन मुझे लगता है कि ७१ साल के दिनेश त्रिवेदी अपने राजनीतिक जीवन की अंतिम पारी भाजपा के साथ खेलने वाले न.मुमकिन है कि मै गलत भी होऊ ,लेकिन लगता यही है क्योंकि त्रिवेदी गुजराती मूल के हैं ये बात भाजपा ने बहुत पहले ताड़ ली थी .आपको दिनेश त्रिवेदी के अतीत में झांके बिना मेरी बात पर यकीन नहीं होगा. दरअसल दिनेश त्रिवेदी गुजराती दंपति हीरालाल और उर्मिला की सबसे छोटी संतान हैं, जो भारत विभाजन के समय कराची, पाकिस्तान से आए थे, जहां त्रिवेदी के सभी भाई-बहन पैदा हुए थे। दिल्ली आने से पहले उनके माता-पिता कई जगहों पर भटकते रहे, दिल्ली में त्रिवेदी का जन्म हुआ। उनके पिता कोलकाता की एक कंपनी हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करने लगे,इसलिए दिनेश जी बंगाली अस्मिता के प्रतिनिधि नहीं हैं .
बहुमुखी प्रतिभा के धनी दिनेश त्रिवेदी यदि राज नेता न होते तो संन्यासी होते क्योंकि वे स्वामी विवेकानंद से बेहद प्रभावित थे और इसीलिए सन्यासी बनना चाहते थे ,लेकिन शिकागो[अमेरिका में एक सन्यासी ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह देकर उनके जीवन की धारा ही बदल दी .कोलकाता के सेंट जेवियर्स कालेज से उन्होंने वाणिज्य में स्नातक किया। इससे पहले उन्होंने हिमाचल प्रदेश के बॉर्डिंग स्कूलों में शिक्षा पाई। स्नातक में डिग्री लेने के बाद वो बीस हजार रुपये कर्ज लिए और ऑस्टिन स्थित आर्लिंग्टन का टॅक्सस विश्वविद्यालय से एमबीए पूरा किया। भारतीय वायुसेना के विमानों को उड़ाने की इच्छा लेकर उन्होंने पॉयलट की ट्रेनिंग ली। उन्होंने सितार बजाने की भी शिक्षा ली और शास्त्रीय संगीत का आनंद लिया। पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में अभिनय का प्रशिक्षण लेने के लिए आवेदन भी दिया, लेकिन उन्हें लगा कि ये एक अगंभीर काम है, इसलिए उन्होंने अभिनेता बनने का विचार छोड़ दिया। 1974 में एमबीए कर चुके दिनेश त्रिवेदी ने शिकागो में एक कंपनी के लिए 2 साल तक काम किया। 1984 में त्रिवेदी ने नौकरी छोड़कर, खुद की एक एयर फ्रंट कंपनी की शुरूआत की। इतना ही नहीं इन्होंने उपभोक्ताओं के लिए प्रोटेक्शन सेंटर की भी शुरूआत की थी। यहां तक कि देश में सूचना का अधिकार अधिनियम आंदोलन का मार्ग प्रशस्त करने वाली वोहरा रिपोर्ट बनाने में भी त्रिवेदी का पूर्ण सहयोग रह चुका है।
बंगाल की राजनीति में दिनेश त्रिवेदी के तृमूकां छोड़ने से कोई तूफ़ान तो नहीं आने वाला हाँ भाजपा को जरूर एक नया विभीषण मिलने जा रहा है. पंडित जी की राजनीति विचारधारा की राजनीति नहीं है.वे प्रयोगवादी राजनेता हैं .देशकाल और परिस्थिति के मुताबिक दल बदलना दिनेश त्रिवेदी का शौक रहा है .त्रिवेदी ने  पहले 80 के दशक में कांग्रेस का दामन थामा, तो फिर 90 के दशक में जनता दल से हाथ मिला लिया और आखिर में 90 के दशक के आखिर में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ काम करने लगे। 
 टीएमसी से राज्यसभा के सांसद दिनेश त्रिवेदी ने यह कहते हुए अपने पद से इस्तीफा  दिया कि टीएमसी पार्टी में उनका दम घुट रहा है. टीएमसी सांसद ने बंगाल में हो रही राजनीतिक हिंसा पर भी अफसोस जताया. उन्होंने कहा कि बंगाल में राजनीतिक हिंसा हो रही है और मैं यहां पर चुपचाप बैठा हुआ हूं यह मै सह नहीं सकता.लेकिन किसी को ट्रैडी के इस दावे पर यकीन नहीं हो सकता क्योंकि यदि उन्हें टीएमसी छोड़ना थी तो उसी समय छोड़ देते जब ममता जी ने उन्हें रेलमंत्री पद से इस्तीफा देने पर विवश किया था .
त्रिवेदी अब न घर के रहने वाले हैं न घाट के,वे यदि भाजपा में आ रहे हैं तो उनके वैसे ठाठ तो नहीं रहने वाले जैसे कि टीएमसी में थे .पंडित जी जमीनी नेता नहीं माने जाते,खुद टीएमसी उन्हें जमीनी नेता नहीं मानती. वे हवाई नेता हैं और इसी काबिलियत पर भाजपा उन्हें अपना सकती है. वे अच्छे वक्ता हैं इसलिए बंगाल चुनाव में भाजपा के काम आ सकते हैं .वे बंगाली नहीं हैं इसलिए बंगाल में रहने वाले गैर बंगालियों को प्रभावित करने की भूमिका भाजपा में उन्हें आसानी से मिल सकती है .
बहरहाल त्रिवेदी की त्रिवेदी जी जाने,  हम तो इतना जानते हैं कि ये टीएमसी के लिए शुभ समय नहीं है. अब ये टीएमसी के ऊपर है कि वो अपने दरकते किले में घुसने से भाजपा को कैसे रोक पाती है ?

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