चित्रकूट ब्यूरो प्रेम तप से प्रगट होंगी पयस्विनी । नौ दिवसीय दिव्य राम कथा में हम मानस अनुष्ठान कर जन जागरण के संकल्प से नित्य कथा कह रहे हैं । आज कथा के चतुर्थ दिवस हम सभी राम जन्मोत्सव का आनंद लिया । करुणानिधान प्रभु राम आनंद स्वरुप हैं ! भगवान शंकर मानस में स्वयं कहते हैं हरि ब्यापक सर्बत्र समाना । प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना ।। अग जगमय सब रहित बिरागी । प्रेम तें प्रभु प्रगटइ जिमि आगी ।। हरि जो स्वयं आनंद स्वरुप हैं एकमात्र भक्तों के प्रेम के वशीभूत होकर प्रगट हो हैं । जिस प्रकार काष्ठ में सर्वत्र अग्नि का निवास होता है परन्तु जब तक उसे करने के लिए घर्षण न किया जाये वह प्रगट नहीं होती । ठीक वैसे ही यह परम प्रेम की पुकार सुन प्रगट हो जाते हैं । यही परमात्मा अग्नि रूप में प्रगट होते हैं । यही सूर्य रूप में , यही जल रूप में होते हैं । भागीरथ हो या माता अनुसुइया या ऋषि गौतम सब ही ने प्रेम तपस्या सुरसरि को प्रगट किया है । मातु पयस्विनी के लिए ब्रम्हा ने तप किया है । हम प्रेम से यदि इस अनुष्ठान में संलग्न होंगे तो ही माता अपने आपको प्रगट करेंगी । प्रेम तब उपजेगा जब पहा होगी । जन जन तक यह बात पहुँचे । जब जानकारी होगी तब दर्शन की अभिल जागेगी । दर्शन से प्रेम दृढ़ होगा और मन में माँ को जाग्रत रूप में देखने की जागेगी । इससे दृढ संकल्प का उदय होगा । यही प्रेम तपस्या है । इस दौरान के व्यवस्थापक सत्यनारायण मौर्य , संतोष तिवारी , राम रूप पटेल , गंगा सागर महाराज आदि मौजूद रहे ।

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