नैनी प्रयागराज शहर का दक्षिणी भाग है। यह क्षेत्र अंग्रेजों के समय से ही प्राकृतिक रूप से काफी समृद्धि रहा है। खेती के दृष्टिकोण से यह इलाका काफी उपजाऊ है। यमुना से सटे इलाके में फूलों की खेती होती है। नैनी एग्रीकल्चर इंस्टीटयूट भी यहां आजादी से पहले का स्थापित है। अब रज्जू भैया राज्य विश्वविद्यालय भी यहां स्थापित हो गया है। प्रो.शुक्ला बताते हैं कि सरकारी अभिलेखों के अनुसार प्रयागराज के यमुनापार इलाके में 1868 एवं 1896 में भयंकर अकाल पड़ा था। इस इलाके के लोग अन्यत्र पलायित कर गए थे। काफी समय यह क्षेत्र उजाड़ रहा। बाद में कुमाऊं एवं गढ़वाल से कुछ पहाड़ी लोग यहां काम की तलाश मेें आए थे। वे लोग अपने साथ पहाड़ों की देवी नैना देवी की मूर्ति भी लेकर आए थे। उस दौरान यह इलाका जंगली था। पहाड़ी लोगों ने यहां बसेरा बनाया और नैना देवी की मूर्ति स्थापित कर पूजा करने लगे। स्थानीय लोग पहाडिय़ों को  नैना देवी से जोड़ते हुए इन्हें  नैना देवी का उपासक कहते थे। धीरे-धीरे इस इलाके का नाम नैनी पड़ गया। हालांकि  नैना देवी का कोई मंदिर अब यहां नहीं मिलता है। अंग्रेजों ने सन 1889 में नैनी केंद्रीय जेल बनवाया था। उस समय इसे कैदखाना कहा जाता था। यह जेल खुली थी। शहर से दूर इस जेल में क्रांतिकारियों को रखा जाता था।

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