1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में बहराइच की वीर भूमि से अंग्रेजों के विरुद्ध हुंकार भरने वाले अमर शहीद बलभद्र सिंह रैकवार अपने गृह जनपद में ही उपेक्षित हैं। जिनकी वीरता की गाथा विरोधी अंग्रेज सैनिक सेनापति कर्नल होप ग्रैंड और जनरल हडसन ने अपनी किताब " द सिपाय वार इन इंडिया" में वर्णन किया है। अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने के बावजूद जिन तीन भारत के वीरों की प्रतिमा लन्दन के  बकिंघम पैलेस में लगी हुई है, उनमें रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, और अमर शहीद बलभद्र सिंह जी हैं।
 बहुत दुख की बात है कि जिसे पूरी दुनिया जानती है उसे बहराइच के लोग नहीं जान पा रहे हैं। जहां तक मेरी जानकारी है  उसके अनुसार बहराइच में उनके नाम का एक चौराहा अथवा एक मूर्ति तक नहीं है  जबकि उनके वंशजों  की बहराइच तथा बाराबंकी में सबसे अधिक जनसंख्या है।
 18 वर्षीय चहलारी नरेश महाराजा बलभद्र सिंह रैकवार  को अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध  लड़ने में उन्हें  शहीद होना  पड़ा था ।उनके चहलारी के किले को अंग्रेजों ने तोप लगा करके उड़ा दिया था और बौंड्री के किले को अपने कब्जे में ले लिया था ।उनके  कतरनियांघाट के जंगलों को भी अंग्रेजों ने अवध फॉरेस्ट रूल बना कर अपने कब्जे में ले लिया था बाद में कतरनिया घाट के जंगलों को अंग्रेजों ने राजा नानपारा सहादत अली खान और  पंजाब के कपूरथला के राजा के हवाले कर दिया था जिसे देश की आजादी के बाद वापस लौटते समय कपूरथला के राजा ने जमुनहा के राजा को हस्तांतरित कर दिया था।
प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार अमृतलाल नागर ने अपने उपन्यास "गदर के फूल" में उनकी वीरता का वर्णन किया है।
बहराइच अपने शहीद को इतना जल्दी भुला देगा इस बात की कल्पना करके ही बहुत दुख होता है।
-जंग हिंदुस्तानी।


बहराइच से ब्यूरो रिपोर्ट राम कुमार यादव

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