श्राद्ध या पिन्डदान कितने प्रकार के है श्राद्ध या पिन्डदान क्यो करना चाहिए श्राद्ध या पिन्डदान के महत्व विषय के लिए अवश्य पढ़े।
*पिन्डदान को शास्त्रविधिपूर्वक करवाना चाहिए और श्रेष्ठ ब्राह्मण के द्वारा यह कर्म करना चाहिए क्योंकि इस कर्म मे बहुत समय लगता है।अन्यथा आप ही पाप के भागीदार होगे इसलिए विशेष ब्राह्मण के द्वारा ही नारायण बलि व त्रिपिंडी करानी चाहिए*। विशेषज्ञ पंंडित विनोद शर्मा कुश ने बहुत से शास्त्रों को पढकर ये विचार लिखे है। *🙏जयसरस्वतीदेवी*
*पूजनीय सुरेश शर्मा के पुत्र* V9द कुश
*विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य पंंडित विनोद शर्मा कुश*(राहडा)
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पितरों की संतुष्टि के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले तर्पर्ण, ब्राह्मण भोजन, दान आदि कर्मों को श्राद्ध कहा जाता है. इसे पितृयज्ञ भी कहते हैं. श्राद्ध के द्वारा व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है और पितरों को संतुष्ट करके स्वयं की मुक्ति के मार्ग पर बढ़ता है.
श्राद्ध या पिन्डदान दोनो एक ही शब्द के दो पहलू है पिन्डदान शब्द का अर्थ है अन्न को पिन्डाकार मे बनाकार पितर को श्रद्धा पूर्वक अर्पण करना इसी को पिन्डदान कहते है दक्षिण भारत मे पिन्डदान को श्राद्ध कहते है
श्राद्ध के प्रकार
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शास्त्रों में श्राद्ध के निम्नलिखित प्रकार बताये गए हैं -
1. नित्य श्राद्ध : वे श्राद्ध जो नित्य-प्रतिदिन किये जाते हैं, उन्हें नित्य श्राद्ध कहते हैं. इसमें विश्वदेव नहीं होते हैं.
2. नैमित्तिक या एकोदिष्ट श्राद्ध : वह श्राद्ध जो केवल एक व्यक्ति के उद्देश्य से किया जाता है. यह भी विश्वदेव रहित होता है. इसमें आवाहन तथा अग्रौकरण की क्रिया नहीं होती है. एक पिण्ड, एक अर्ध्य, एक पवित्रक होता है.
3. काम्य श्राद्ध : वह श्राद्ध जो किसी कामना की पूर्ती के उद्देश्य से किया जाए, काम्य श्राद्ध कहलाता है.
4. वृद्धि (नान्दी) श्राद्ध : मांगलिक कार्यों ( पुत्रजन्म, विवाह आदि कार्य) में जो श्राद्ध किया जाता है, उसे वृद्धि श्राद्ध या नान्दी श्राद्ध कहते हैं.
5. पावर्ण श्राद्ध : पावर्ण श्राद्ध वे हैं जो भाद्रपद कृष्ण पक्ष के पितृपक्ष, प्रत्येक मास की अमावस्या आदि पर किये जाते हैं. ये विश्वदेव सहित श्राद्ध हैं.
6. सपिण्डन श्राद्ध : वह श्राद्ध जिसमें प्रेत-पिंड का पितृ पिंडों में सम्मलेन किया जाता है, उसे सपिण्डन श्राद्ध कहा जाता है.
7. गोष्ठी श्राद्ध : सामूहिक रूप से जो श्राद्ध किया जाता है, उसे गोष्ठीश्राद्ध कहते हैं.
8. शुद्धयर्थ श्राद्ध : शुद्धयर्थ श्राद्ध वे हैं, जो शुद्धि के उद्देश्य से किये जाते हैं.
9. कर्मांग श्राद्ध : कर्मांग श्राद्ध वे हैं, जो षोडश संस्कारों में किये जाते हैं.
10. दैविक श्राद्ध : देवताओं की संतुष्टि की संतुष्टि के उद्देश्य से जो श्राद्ध किये जाते हैं, उन्हें दैविक श्राद्ध कहते हैं.
11. यात्रार्थ श्राद्ध : यात्रा के उद्देश्य से जो श्राद्ध किया जाता है, उसे यात्रार्थ कहते हैं.
12. पुष्टयर्थ श्राद्ध : शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक पुष्टता के लिये जो श्राद्ध किये जाते हैं, उन्हें पुष्टयर्थ श्राद्ध कहते हैं.
13. श्रौत-स्मार्त श्राद्ध : पिण्डपितृयाग को श्रौत श्राद्ध कहते हैं, जबकि एकोदिष्ट, पावर्ण, यात्रार्थ, कर्मांग आदि श्राद्ध स्मार्त श्राद्ध कहलाते हैं.
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कब किया जाता है श्राद्ध?
श्राद्ध की महत्ता को स्पष्ट करने से पूर्व यह जानना भी आवश्यक है की श्राद्ध कब किया जाता है. इस संबंध में शास्त्रों में श्राद्ध किये जाने के निम्नलिखित अवसर बताये गए हैं -
1. भाद्रपद कृष्ण पक्ष के पितृपक्ष के 16 दिन.
2. वर्ष की 12 अमावास्याएं तथा अधिक मास की अमावस्या.
3. वर्ष की 12 संक्रांतियां.
4. वर्ष में 4 युगादी तिथियाँ.
5. वर्ष में 14 मन्वादी तिथियाँ.
6. वर्ष में 12 वैध्रति योग
7. वर्ष में 12 व्यतिपात योग.
8. पांच अष्टका.
9. पांच अन्वष्टका
10. पांच पूर्वेघु.
11. तीन नक्षत्र: रोहिणी, आर्द्रा, मघा.
12. एक कारण : विष्टि.
13. दो तिथियाँ : अष्टमी और सप्तमी.
14. ग्रहण : सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण.
15. मृत्यु या क्षय तिथि.
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क्यों आवश्यक है श्राद्ध?
श्राद्धकर्म क्यों आवश्यक है, इस संबंध में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं -
1. श्राद्ध पितृ ऋण से मुक्ति का माध्यम है.
2. श्राद्ध पितरों की संतुष्टि के लिये आवश्यक है.
3. महर्षि सुमन्तु के अनुसार श्राद्ध करने से श्राद्धकर्ता का कल्याण होता है.
4. मार्कंडेय पुराण के अनुसार श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितर श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विघ्या, सभी प्रकार के सुख और मरणोपरांत स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते हैं.
5. अत्री संहिता के अनुसार श्राद्धकर्ता परमगति को प्राप्त होता है.
6. यदि श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो पितरों को बड़ा ही दुःख होता है.
7. ब्रह्मपुराण में उल्लेख है की यदि श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो पितर श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को शाप देते हैं और उसका रक्त चूसते हैं. शाप के कारण वह वंशहीन हो जाता अर्थात वह पुत्र रहित हो जाता है, उसे जीवनभर कष्ट झेलना पड़ता है, घर में बीमारी बनी रहती है.
श्राद्ध-कर्म शास्त्रोक्त विधि से ही करें .
पितरकार्य कार्तिक या चैत्र मास मे भी कियाजा सकता है
🕉मातृदेवो भव पितृदेवो भव🔯✡☸ *🙏जयसरस्वतीदेवी*
कुशा का क्या है उसका महत्त्व हैं ⚛️पंडित विनोद शर्मा कुश के द्वारा✡️9013387725🔯विवाह, हवन सामग्री डाली है धूमनी मे⚛️ ग्रहण करने के लिए ,शादी के लिए। हवन के लिए इत्यादि पूजा के लिए।गौमूत्र एक औषधि है जो घर में छिकडने से सभी प्रकार के दोष वः रोग समाप्त हो जाते है *किसी भी प्रकार की कोईभी समस्या हो तो* आप संपर्क करें ...9013387725 या विशेष जन्मकुण्डली बनवानी हो या पूजा पाठ से संबंधित कोईभी कार्यक्रम करना हो 👈🏻🕉☸✡🔯💟Paytm number .9013387725 *🙏जयसरस्वतीदेवी*
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