कभी गाड़ी नाव पर तो कभी नाव गाड़ी पर, यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी। यह कहावत प्रयागराज में चरितार्थ भी हुई है। 1864 में प्रयागराज (इलाहाबाद) में नैनी व गऊघाट के बीच यमुना नदी पर कोई पुल नहीं था तो कुछ वक्त तक रेल की बोगियों को नावों से पार उतारा जाता था फिर दूसरी ओर खड़े इंजनों से जोड़कर आगे ले जाया जाता था।
रेलवे के काम में 1857 के गदर ने डाला था खलल
देश को आजाद कराने के लिए 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो चुका था, उस वक्त ईस्ट इंडियन रेलवे देश में तेजी से रेलवे को विस्तार देने के काम में जुटा था लेकिन आंदोलनों के चलते रेल पटरियों को बिछाने के तमाम काम रोक देने पड़े थे। दुबारा काम शुरू होने में दो-तीन साल का विलंब हुआ। नैनी में यमुना पर बनने वाले रेलवे पुल का निर्माण भी इसी वजह से लटका रहा।
नैनी पुल 1865 में चालू हुआ मगर 1864 से ही चलने लगी थी ट्रेन
स्वतंत्रता संग्राम को देखते हुए अंग्रेज रेलवे की परियोजनाओं को तेजी से पूरा करना चाहते थे, इसके पीछे उद्देश्य था रेलवे के माध्यम से सैन्य साजो सामान और सैनिकों का तेज मूवमेंट। उत्तर मध्य रेलवे के वरिष्ठ जनसंपर्क अधिकारी डा. अमित मालवीय बताते हैं कि कोलकाता से दिल्ली को कनेक्ट करने के क्रम में मुगलसराय से यमुना ब्रिज नैनी सेक्शन और प्रयागराज से कानपुर सेक्शन में टै्रक तैयार हो चुका था सिर्फ नैनी में यमुना नदी पर पुल नहीं बन पाया था उसके बावजूद एक अगस्त 1864 से इस ट्रैक पर ट्रेनों का संचालन शुरू कर दिया गया था। इस दौरान कोचों को नाव से यमुना नदी को पार कराया जाता था। इसके लिए बड़ी बड़ी नावें तैयार कराई गई थीं हालांकि उस वक्त कोच हल्के व छोटे होते थे।
एक अगस्त 1864 को हावड़ा से दिल्ली पहुंची थी पहली ट्रेन
हावड़ा से दिल्ली के बीच पहली टे्रन एक अगस्त 1864 को दिल्ली शहादरा पहुंची थी जबकि प्रयागराज के नैनी में यमुना नदी पर बने ब्रिज को 15 अगस्त 1865 को रेल यातायात के लिए खोला गया था और दिल्ली में बने यमुना ब्रिज को एक जनवरी 1867 में टे्रन यातायात के लिए खोला गया था।
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