उत्तर प्रदेश में कक्षा 6 से 12 तक के 958 संस्कृत स्कूलों में शिक्षकों की कमी निकट भविष्य में दूर होती नहीं दिख रही। माध्यमिक शिक्षा विभाग के बड़े अफसर संस्कृत विद्यालयों में रिक्त 1282 पदों पर भर्ती के लिए उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड की नियमावली में संशोधन का प्रस्ताव मंगवाकर उसे कैबिनेट से मंजूर करवाना भूल गए हैं। 28 मार्च 2018 को शासन ने उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद (संस्थानों के प्रधानों, अध्यापकों एवं संस्थानों के अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति एवं सेवा शर्ते) विनियमावली 2009 में संशोधन के बाद सहायता प्राप्त संस्कृत विद्यालयों में शिक्षकों के चयन का अधिकार चयन बोर्ड को दे दिया था।

इस क्रम में माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने संस्कृत स्कूलों में भर्ती प्रक्रिया शुरू करने से पूर्व 3 अप्रैल 2018 को चयन बोर्ड की नियामवली में संशोधन का प्रस्ताव मांगा था। जिसके जवाब में तत्कालीन सचिव नीना श्रीवास्तव ने 9 अप्रैल 2018 को नियमावली में आवश्यक संशोधन का प्रस्ताव संयुक्त सचिव शासन को भेज दिया था।
लेकिन पौने तीन साल का समय बीतने के बावजूद संशोधन को मंजूरी नहीं मिल सकी है। जिसका नतीजा यह है कि शिक्षकों की कमी के कारण एक के बाद एक संस्कृत विद्यालयों पर ताला पड़ता जा रहा है
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उत्तर प्रदेश में कक्षा 6 से 12 तक के 958 संस्कृत स्कूलों में शिक्षकों की कमी निकट भविष्य में दूर होती नहीं दिख रही। माध्यमिक शिक्षा विभाग के बड़े अफसर संस्कृत विद्यालयों में रिक्त 1282 पदों पर भर्ती के लिए उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड की नियमावली में संशोधन का प्रस्ताव मंगवाकर उसे कैबिनेट से मंजूर करवाना भूल गए हैं। 28 मार्च 2018 को शासन ने उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद (संस्थानों के प्रधानों, अध्यापकों एवं संस्थानों के अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति एवं सेवा शर्ते) विनियमावली 2009 में संशोधन के बाद सहायता प्राप्त संस्कृत विद्यालयों में शिक्षकों के चयन का अधिकार चयन बोर्ड को दे दिया था।

इस क्रम में माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने संस्कृत स्कूलों में भर्ती प्रक्रिया शुरू करने से पूर्व 3 अप्रैल 2018 को चयन बोर्ड की नियामवली में संशोधन का प्रस्ताव मांगा था। जिसके जवाब में तत्कालीन सचिव नीना श्रीवास्तव ने 9 अप्रैल 2018 को नियमावली में आवश्यक संशोधन का प्रस्ताव संयुक्त सचिव शासन को भेज दिया था।
लेकिन पौने तीन साल का समय बीतने के बावजूद संशोधन को मंजूरी नहीं मिल सकी है। जिसका नतीजा यह है कि शिक्षकों की कमी के कारण एक के बाद एक संस्कृत विद्यालयों पर ताला पड़ता जा रहा है। 

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