कहानी...   
     ll भगवान कहाँ रहते हैं ll

    एक गांव में आचार्य जी रहते थे, जो लोगों के घरों में जाकर पूजा पाठ व कथा भागवत करके अपना भरण पोषण किया करते थे। एक बार राजा ने आचार्य को महल में पूजन कराने के लिए बुलावा भेजा। आचार्य राजमहल का बुलावा पाकर खुशी से झूम उठे। पूजा सम्पन्न कराकर जब आचार्य घर को आने लगे, तब राजा ने आचार्य से एक सवाल किया? "हे आचार्य देव ! आप भगवान की पूजा करते हैं तो यह बताये की भगवान कहाँ रहते हैं ? उनकी नजर किस ओर है और भगवान क्या कर सकते हैं ?"
  राजा के प्रश्न सुन आचार्य अचंभित हो गये और कुछ देर विचार करने के बाद राजा से बोले  "हे राजन ! इस सवाल के जवाब के लिए मुझे कुछ समय दीजिए।" 
   राजा ने आचार्य को एक माह का समय दिया। आचार्य प्रतिदिन इसी सोच में उलझा रहता कि इसका जवाब क्या होगा। इसी उधेड़बुन में कब समय बीत गया पता ही नहीं चला मात्र कुछ ही दिन शेष रह गये थे। समय बीतने के साथ-साथ आचार्य की चिंता बढ़ने लगी थी। जवाब नही मिलने के कारण आचार्य उदास रहने लगे।
एक दिन आचार्य को चिंतित देख उनके पुत्र ने कहा पिता जी आप इतने उदास क्यों हैं। तब आचार्य ने कहा, "बेटा ! कुछ दिनों पहले मै राजमहल में पूजा कराने गया था, पूजा सम्पन्न कराकर जब मैं वापस आ रहा था तब राजा ने मुझसे एक सवाल पूछा था। राजा ने कहा था कि भगवान कहाँ रहते हैं ? भगवान क्या कर सकते हैं और भगवान की नजर किस ओर है। राजा के सवाल का जवाब मुझे उस समय नही सुझा तो मैने उनसे कुछ समय मांगा था, जिसके जवाब के लिये राजा ने मुझे एक माह का समय दिया था और वह समय बीतने वाला है लेकिन इसका जवाब मेरे पास नही है, इसलिए मैं चिंतित हूँ।" पिता की बात को सुनकर पुत्र बोला, "पिताजी ! इसका जवाब मैं राजा को दूँगा। आप मुझे साथ ले चलिये।"
एक माह पूरा हुआ तब आचार्य ने अपने पुत्र को लेकर राजमहल में गया और राजा से कहा, "हे राजन ! आपके सवाल का जवाब मेरा पुत्र देगा।" राजा ने आचार्य  के पुत्र से वही सवाल पूछा बताओ भगवान कहाँ रहते हैं, भगवान की नजर किस ओर है तथा भगवान क्या कर सकते हैं ? 
  उस आचार्य पुत्र ने राजा से कहा, "हे राजन ! क्या आपके राज्य मे पहले अतिथि का आदर सम्मान नही किया जाता।" यह बात सुन राजा अपने को लज्जित महसूस किया। पहले उस बालक को आदर सत्कार के साथ स्थान दिया गया फिर पीने के लिए सेवक दूध का गिलास लेकर आया। वह बालक दूध के गिलास पकड़ कर दूध में अंगुली डालकर घुमाकर बार-बार दूध को बाहर निकाल कर देखने लगा। यह देख राजा ने पूछा, "ये क्या कर रहे हो ?" 
  बालक ने कहा, "सुना है दूध में मक्खन होता है। मैं वही देख रहा हूँ कि दूध में मक्खन कहाँ है ? आपके राज्य के दूध से तो मक्खन ही गायब है।"
राजा ने कहा..."दूध में मक्खन होता है, परन्तु वह ऐसे दिखाई नहीं देता। जब दूध को जमाकर दही बनाया जाता है, और फिर दही को मथा जाता हैं तब जाकर मक्खन प्राप्त होता है।"
  आचार्य के पुत्र ने कहा, "महाराज ! यह आपके पहले सवाल का जवाब है। जिस तरह दूध से दही और फिर दही को मथने से मक्खन प्राप्त होता है, उसी प्रकार परमात्मा प्रत्येक जीव के अन्दर विद्यमान होता है। परन्तु उसे पाने के लिए सच्ची भक्ति की आवश्यकता होती है। मन से ध्यानपूर्वक भक्ति करने पर आत्मा में छुपे हुए परमात्मा का आभास होता है।" 
  राजा आचार्य के पुत्र के जवाब से खुश हुआ और कहा अब मेरे दूसरे सवाल का जवाब दो, भगवान किस ओर देखते हैं ? उस बालक ने कहा, "राजन ! इसका जवाब मैं दूँगा परन्तु मुझे इसके लिये एक मोमबत्ती की आवश्यकता है।" राजा ने तुरन्त मोमबत्ती मंगाई और उस बालक को दिया। 
  उस बालक ने मोमबत्ती को जलाकर कहा, "राजन ! आप बताये, इस मोमबत्ती की रोशनी किस ओर है ?" राजा ने कहा, "इसकी रोशनी चारों दिशा में एक समान है।" तब उस बालक ने कहा, "हे राजन ! यही आपके दूसरे सवाल का जवाब है। क्योंकि परमात्मा सर्वदृष्टा हैं और उनकी नजर सभी प्राणियों के कर्मों की ओर परस्पर रहती है।" राजा उस बालक के जवाब से अत्यधिक प्रसन्न हो गये। अब तो वे अन्तिम प्रश्न के उत्तर के लिए और भी उत्सुक हो उठे। 
 राजा ने कहा, "मेरे अन्तिम सवाल का जवाब दो कि भगवान क्या कर सकते हैं ?" बालक ने कहा, 'हे राजन ! मैं इस सवाल का उत्तर अवश्य दूँगा परन्तु इसके लिए मुझे आपकी जगह पर और आपको मेरी जगह पर आना होगा।" 
 राजा को तो उत्तर जानने की इतनी उत्सुकता थी वो तुरंत अपनी सहमति दे दिये। वह बालक राजा के सिहासन पर जा बैठा और कहा, "राजन ! आपके अन्तिम सवाल का जवाब यह हैकि आपने कहा था कि भगवान क्या कर सकते हैं तो भगवान यह कर सकते कि मुझ जैसे रंक को राज सिहासन पर बैठा सकते हैं और आप जैसे राजा को मुझ जैसे सवाली के स्थान पर, अर्थात राजा को रंक और रंक को राजा बना सकते हैं यह आपके अन्तिम सवाल का जवाब है।"
       ✍️गिरजा शंकर गुप्ता

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