*बैंक आँफ इण्डिया शाखा–बाग मे भुगतान के लिये धनराशि नही?*

बैंक की शाखा मे माध्यमों से पहुंचने वालें ग्राहकों का स्वागत।

*वर्तमान स्टाफ द्धारा ग्राहक देख तिलक लगाना-र्दुव्यवहार करना  आम बात?*

बैंक स्टाफ कर्मियों का ईगों चरम पर। धार के L.D.M की भी नही सुनते है,ईगोधारी स्टाफ कर्मी?

*आखिर क्यों?*

बाग /:–बैंक आँफ इण्डिया शाखा बाग के स्टाफ कर्मी बैंक संचालन से ज्यादा अपने ईगों का संचालन  करते नजर आते है?

इस शाखा मे गरीब,आदिवासी, हरिजन व पिछड़े वर्ग के साथ र्दुव्यवहार होना आम बात इसलिये है की एवं इन बैंक कर्मियों का यह व्यवहार इसलिये भी नही सुधरता है कि,उन्हें मालूम है,जिन ग्राहकों को पर्चियां भरना तक नही आती,जिनके अपने खातें मे अपनी धनराशि तक नही देखना नही आती,जितनी राशि दी,लेकर चलतें बनता है,वह न मुँहजोरी करता,और न ही प्रतिप्रश्न करता है तो,भला हमारी शिकायत कौन करेगा?इसलिये समझदार बैंककर्मियों को यह सब उनको ईगों व माध्यम से कार्य करनें की प्रेरणा देता है?

 *क्योंकी आम ग्राहक तो यह भी नही जानता है कि,इन बैंककर्मियों की भी शिकायत करनें का कोई फोरम होता है,बस इसी कमजोरी का स्थानीय बैंकस्टाफ नाजायज लाभ उठाता है,और वह उन जागरूक ग्राहकों के साथ बदतमीजी,अपनी मनमानी, अपना ईगों दिखलाकर,ग्राहकों को इस तरह प्रताड़ित करता है,जैसे वे बैंक के नौकर नही,बैंक को अपनी जागीरी समझकर,उन जागरूक ग्राहकों से र्दुव्यवहार करना,उनके व्यवहार मे  आम बात हो चली है*।

*उनको इस बात की भी चिन्ता नही रहती है कि,हमारे इस व्यवहार से बैंक की साख को धक्का पहुंचेगा?*

*जब इन र्दुव्यवहार की शिकायत धार से लेकर,इन्दौर, भोपाल, लोकपाल, दिल्ली तक शिकायत के बाद भी,वरिष्ट अधिकारियो द्धारा उन पर लगाम नही लगा पाना,उनकी मजबूरी है या माध्यम?*

यह वे ही जानें?क्योंकि यही एक ऐसा रास्ता है,जहाँ सौ गुनाह माफ कर दिये जाते है।इसीके चलतें बैंक की बाग शाखा मे बेलगाम हो रहे कर्मचारी?

उनके इस व्यवहार से आम जनता मे क्या संदेश जाता है,वह अपनज ईगों मे भुल बैठा है।

 *ऐसा इसलिये कहा जा सकता है कि,पिछलै दिनों एक नही,कई मर्तबा बैंक ग्राहक आदित्य जैन,तुषार राठोड़, आदि अन्य ग्राहकों के साथ ऐसा र्दुव्यवहार हो चुका है।उनको उनके खातें की धनराशि निकालने के लिये गये तो कह दिया गया कि,अभी बैंक मे भुगतान की राशि का अभाव है*।*जब वे बैंक मे जमाग्राहकधारी को लेकर जाते है तो भी,उन् खाताधारकों को भुगतान के नियमों का हवाला देकर,उनके अधिकारों से इसलिये वंचित किया जाता है कि,

*उन जागरूक ग्राहक के प्रति प्रश्न से,उनका ईगों का जिन्ना बोतल से बाहर आकर उन्हें यह भुलवा देता है कि,वह बैंक के एक अदने से नौकर है,और बैंक का देवता ग्राहक है।* 

बस इसी भम्र मे वह जहाँ का नमक खाता है,उसका फर्ज ही भुलकर,बदतमीजी से अपने र्दुव्यवहार का प्रदर्शन करना इस बैंक शाखा मे आम बात नजर आती है।यही नही इसतरह के व्यवहार से यह भी संदेश जा रहा है कि,क्या बैंक मे वास्तव मे धनराशि का अभाव हो गया है।इसका दुष्प्रभाव यह पड़ रहा है कि,बैंक मे *जमाग्राहकधारी अपनी जमाधनराशि के प्रति चिंतित हो रहे है?कही यह बैंक भी तो राजेन्द्र सूरी सह. समिति की राह पर तो नही चल पड़ी?*

जब बैंकस्टाफ के इस तरह के र्दुव्यवहार की,बैंक के नियमों विपरीत चलकर साख गिराने विरुद्ध उच्च अधिकारियों को शिकायत की जाती है तो,वह भी इन शिकायतों की नोंघ नही लेकर,अपने ईगोधारी बैकस्टाप को संरक्षण देना, कौनसी लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं है,यह सब समझने व समझाने को मजबूर करती है कि,इस शाखा मे,सिर्फ माध्यमों के माध्यम से आने वालें ग्राहकों को ही संरक्षित किया जाता है।

आखिर कब तक जमाधनराशि खाताधारकों को भुगतान के लिये इन्तज़ार करवाया जावेगा, इस प्रश्न का उत्तर कोई नही दे रहा है?

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