श्रीराम कथा के चौथे दिन शुक्रवार को प्रभु श्रीराम के जन्म की कथा सुनकर श्रोतागण भावभिवोर हो गए। भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम के जन्म के कथा के समय श्रीराम, जय राम, जय जय राम के गगनभेदी नारे लगाते हुए महिलाओं ने सोहर गाकर नृत्य भी किया।

कथा सुनकर भाव विभोर हुए श्रोता

नवाबगंज के दहियावां मार्ग पर चल रही कथा प्रवाचिका श्रीमती चंद्रा मिश्रा ने भक्तों को महाराज दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए कथा सुनाई। महाराज दशरथ ने श्याम कर्ण घोड़े को चतुरंगी सेना के साथ छुड़वाने का आदेश दिया। महाराज ने समस्त मनस्वी, तपस्वी, विद्वान ऋषि- मुनियों तथा वेदविज्ञ के प्रकांड पंडितों को बुलावा भेजा। यज्ञ का समय आने पर महाराज दशरथ सभी अभ्यागतों और अपने गुरु वशिष्ठ जी समेत अपने परम मित्र अंग देश के अधिपति लोभपाद के जामाता ऋंग ऋषि के साथ यज्ञ मंडप में पधारे। फिर विधिवत यज्ञ शुभारंभ किया गया। यज्ञ की समाप्ति के बाद सभी विद्वानों को दक्षिणा देकर उन्हें सादर विदा किया गया। यज्ञ के प्रसाद में बनी खीर को राजा दशरथ ने अपनी तीनों रानियों को दी। परिणाम स्वरूप तीनों रानियां गर्भवती हो गईं। महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने कांतिवान, नील वर्ण और तेजोमय शिशु प्रभु श्री राम को चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमीं तिथि को जन्म दिया। कैकेयी का एक तथा सुमित्रा के दोनों पुत्र तेजस्वी थे। महाराज के चारों पुत्रों के जन्म से संपूर्ण राज्य में आनंद का माहौल था।

कथा के बाद प्रसाद का वितरण

हर कोई खुशी में गंधर्व गान कर रहा था और अप्सराएं नृत्य करने लगीं। देवताओं ने पुष्प वर्षा की। महाराज ने ब्राह्मणों और राजपूतों को दान दक्षिणा दी सभी ने महाराज के पुत्रों को आशीर्वाद दिया। कथा के पश्चात उपस्थित भक्तों में प्रसाद का वितरण किया।

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