प्रयागराज के माघ मेला में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए किले के अंदर स्थित पातालपुरी मंदिर का भी विशेष महत्व है। पूरे माघ माह में इस मंदिर में दर्शन पूजन के लिए कल्पवासियों एवं तीर्थ यात्रियों की भीड़ लगी रहती है। इसी मंदिर में अक्षयवट का उदगम स्थान है। इसका दर्शन पूजन करने के लिए लोग आते हैं। ऐसा माना जाता है संगम में स्नान में पूरा पुण्य बिना इस मंदिर आए बिना नहीं मिलता है। इतिहासकारों के अनुसार पातालपुरी मंदिर भारत का सबसे पुराना मंदिर है। इसका अस्तित्व वैदिक काल में भी मिलता है। जमीन के अंदर बना यह मंदिर खूबसूरत नक्काशीयुक्त है।

किले के आंगन में पूर्व फाटक के नीचे जमीन के अंदर मंदिर
हिन्दुस्तान एकेडेमी से प्रकाशित प्रयाग प्रदीप पुस्तक में इस मंदिर का विस्तार से उल्लेख है। लेखक सालिग्राम श्रीवास्तव के अनुसार मंदिर किले के आंगन में पूर्व वाले फाटक की जमीन के नीचे तहखाने में है। इसकी लंबाई पूर्व पश्चिम में 84 फुट और चौड़ाई 49.5 फुट है। ऊपर पत्थर की छत साढ़े छह फुट ऊंचे खंभों के ऊपर टिकी है। 12-12 खंभों की सात पंक्तियां हैैं। बीच वाली पंक्ति में दोहरे खंभे हैं। कुल खंभों की संख्या सौ के लगभग है। पश्चिम की ओर मुख्य द्वार है। जिससे कुछ सीढिय़ों से नीचे उतरना पड़ता है। फिर कुछ दूर तक सीधा रास्ता पूर्व की ओर चला गया है। उसके आगे मंदिर का मुख्य भाग मिलता है। इसके रास्ते में धर्मराज की बड़ी मूर्ति दाहिने हाथ बैठी बनी है। इसी बनावट की भीतर और भी बहुत सी बड़ी-बड़ी मूर्तियां गणेश, गोरखनाथ तथा नरसिंह अवतार आदि की हैं। हालांकि अब इस किले का इस्तेमाल सेना द्वारा किया जा रहा है पर इस मंदिर की व्यवस्था सेना से अलग है। एक गोस्वामी परिवार के पास इसके देखरेख की जिम्मेदारी है।

मंदिर में सरस्वती कूप
मंदिर की व्यवस्था से जुड़े हुए अनिल गोस्वामी बताते हैं कि जमीन के नीचे बने इस मंदिर में अक्षयवट है। किले में सरस्वती कूप भी बना है। यहीं से सरस्वती नदी जाकर गंगा-यमुना से मिलती हैं। मंदिर के अंदर स्थित अक्षय वट वृक्ष के पास एक कामकूप नाम का तालाब था। मोक्ष प्राप्ति के लिए लोग यहां आते थे और वृक्ष पर चढ़कर तालाब में छलांग लगा देते थे। इस बात का उल्लेख चीनी यात्री हवेनसांग ने भी किया है।

मंदिर में 43 देवी देवताओं की मूर्ति
पातालपुरी मंदिर में अक्षयवट, धर्मराज, अन्नापूर्णा,विष्णु भगवान, लक्ष्मी जी, गणेश गौरी, शंकर महादेव, दुर्वासा ऋषि, बाल्मीकि, प्रयागराज, बैद्यनाथ, कार्ति स्वामी, सती अनुुसुइया, वरुण देव, दंड  पांडे महादेव, काल भैरव, ललिता देवी, गंगा जी, यमुना जी, सरस्वती देवी, नरसिंह भगवान,सूर्य नारायण, जामवंत, गुरू दत्तात्रेय, बाणगंगा, सत्यनारायण, शनिदेव, मार्कडेय ऋषि, गुप्त दान, टंकेश्वर महादेव,पार्वती, वेणी माधव, कुबेर भंडारी,आरसनाथ-पारसनाथ, संकट मोचन हनुमान जी, कोटेश्वर महादेव, राम-लक्ष्मण सीता, नागावासुकि दूधनाथ, यमराज, सिद्धिविनायक एवं सूर्य देव की मूर्ति है।

मंदिर के अक्षयवट के नीचे रुके थे राम-सीता

अनिल गोस्वामी बताते हैं कि वन जाते समय भगवान राम-सीता और लक्ष्मण भी मंदिर स्थित अक्षयवट के नीचे रुके थे। इस मंदिर में ब्रह्मा जी द्वारा स्थापित शूल टंकेश्वर शिवलिंग भी है। इस शिवलिंग पर मुगल सम्राट अकबर की पत्नी जोधा बाई जलाभिषेक करती थी। अनिल बताते हैं कि ब्रह्मा जी ने वट वृक्ष के नीचे पहला यज्ञ किया था। इसमें सभी देवी देवताओं का आहवान किया गया था। यज्ञ समाप्त होने के बाद भी इस नगर का प्रयाग रखा गया था।

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