इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) समेत संघटक कॉलेजों में नए सत्र 2020-21 में हिंदी विभाग के विद्यार्थी कालजयी रचनाकारों की विशेष कृतियों को नहीं पढ़ सकेंगे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के निर्देश पर 30 फीसद पाठ्यक्रम कटौती के तहत  इन कृतियों को पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया गया। कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव की मंजूरी के बाद इसे लागू भी कर दिया जाएगा।

इविवि के हिंदी विभाग में विभागाध्यक्ष प्रोफेसर कृपाशंकर पांडेय ने इविवि समेत कॉलेजों के हिंदी विभाग के शिक्षकों की बैठक बुलाई। इसमें बीए प्रथम, द्वितीय और तृतीय वर्ष के अलावा परास्नातक प्रथम और तृतीय सेमेस्टर के पाठ्यक्रम में 30 फीसद की कटौती की गई। पाठ्यक्रम से उन रचनाकारों को ही हटा दिया गया, जिनकी अमर कृतियों ने सदियों से समाज में अपनी पहचान बनाई है। बीए प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम से मैथिलीशरण गुप्त के 'साकेत' और अज्ञेय की कविता 'बावरा अहेरी' को हटा दिया। बीए प्रथम वर्ष के द्वितीय प्रश्न पत्र गद्य साहित्य से प्रेमचंद की कहानी 'गिल्ली डंडा' और भीष्म साहनी की 'चीफ की दावत' को हटाया। ये दोनों कहानियां हिंदी साहित्य में मील का पत्थर मानी जाती हैं। साहित्य को पहचान दिलाने वाले प्रेमचंद, निराला और महादेवी वर्मा की कई कृतियों को भी बाहर किया गया। परास्नातक हिंदी के तृतीय सेमेस्टर के आधुनिक काव्य प्रश्न पत्र से निराला की कालजयी कविता 'सरोज स्मृति' और प्रयाग की पहचान महादेवी वर्मा की 'मैं नीर भरी दु:ख की बदली' पाठ्यक्रम से बाहर कर दी गई।

पाठ्यक्रम छंटनी की इस भागदौड़ से आचार्य शुक्ल और भारतेंदु जैसे हिंदी के पुरोधा भी नहीं बच सके। परास्नातक हिंदी प्रथम सेमेस्टर के द्वितीय प्रश्न पत्र से आचार्य शुक्ल का प्रसिद्ध निबंध 'श्रद्धा भक्ति' और प्रेमचंद की 'मृतक भोज'  के अलावा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित उदय प्रकाश की कहानी 'मोहनदास' को भी हटाया गया है। इस पर शिक्षकों ने आपत्ति भी दर्ज कराई है। हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. कृपाशंकर पांडेय ने बताया कि यूजीसी के निर्देश पर नए सत्र को पटरी पर लाने के लिए पाठ्यक्रम में 30 फीसद की कटौती की गई है। कुछ पाठ्यक्रम में दोहराव हो रहा था। ऐसे में उससे बचने के लिए संशोधित पाठ्यक्रम जारी किया गया है।

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