मंगल पांडे ने मेरठ छावनी में 1857 में देश की आजादी का बिगुल फूंका तो उसकी आंच देश भर में तेजी से फैलने लगी थी। गुलामी से आजाद होने की इस ज्वादा को भड़कने से रोकने के लिए अंग्रेज परेशान थे। देश में जगह-जगह तैनात अंग्रेज फौजों को तेजी से रसद और सैन्य साजो-सामान पहुंचाने के लिए रेलवे सबसे बेहतर साधन था जिसका वे तेजी से विकास भी कर रहे थे। आंदोलन की आंच से रेलवे के तमाम प्रोजेक्ट अंग्रेजों को बंद करने पड़े। इसके बावजूद तमाम महत्वपूर्ण स्थानों पर उन्होंने रेलवे लाइनों को विस्तार दिया जिसमें प्रयागराज स्थित अकबर का किला भी है जहां वर्ष 1859 में रेलवे का ट्रैक दौड़ाया गया जहां से देश के विभिन्न हिस्सों तक सैन्य सामग्री भेजी गई।
ईस्ट इंडियन रेलवे ने 1859 में खोली थी इलाहाबाद फोर्ट ब्रांच
उत्तर मध्य रेलवे के प्रयागराज मंडल के जनसंपर्क अधिकारी अमित सिंह बताते हैं कि देश की आजादी के पूर्व ब्रिटिश काल में ईस्ट इंडियन रेलवे थी जो देश में अंग्रेजों के शासन को मजबूती प्रदान करने के लिए रेलवे का संजाल बिछाने का काम कर रही थी। 1857 की क्रांति के समय कोलकाता से दिल्ली को रेलवे नेटवर्क से कनेक्ट करने का काम तेजी से चल रहा था लेकिन प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के चलते काम में खलल पड़ा, ईस्ट इंडियन कंपनी ने तमाम क्षेत्रों में नए प्रोजेक्ट तो वापस ले लिए लेकिन उत्तर भारत में सेना और सैन्य सामग्री पहुंचाने के लिए ट्रैक बिछाने के काम को जारी रखा। फरवरी 1857 में प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) से कानपुर ट्रैक का 26 मील तक इंजन दौड़ाकर ट्रायल किया गया था। फिर तीन मार्च 1859 को इस सेक्शन को सेना और सैन्य सामग्री की ढुलाई के लिए खोल दिया गया। प्रयागराज में संगम के किनारे स्थित अकबर के किले तक इलाहाबाद जंक्शन (अब प्रयागराज जंक्शन) से रेल लाइन दौड़ाई गई थी जहां से सेनाओं का मूवमेंट किया जाता था।
कानपुर-इटावा रेलवे लाइन की भी हुई थी 1859 में शुरूआत
ब्रिटिश शासन काल में सन् 1859 में इलाहाबाद-कानपुर सेक्शन, इलाहाबाद फोर्ट ब्रांच के अलावा कानपुर से इटावा और हाथरस से हाथरस किला के बीच भी रेलवे लाइन की शुरूआत की गई थी। इसी क्रम में अलीगढ़ से हरदुआगंज के बीच एक फरवरी 1872 में ट्रेन संचालन शुरू हुआ था। इलाहाबाद में यमुना ब्रिज 15 अगस्त 1865 को और दिल्ली में यमुना ब्रिज पर एक जनवरी 1867 को ट्रेनों का संचालन शुरू किया गया था।
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