नया कृषि कानून लागू होने के साथ ही उतरौला में प्रस्तावित मंडी की प्रक्रिया भी समाप्त हो गई है। अब मंडी का निर्माण नहीं होगा। नये आदेश में मंडी समिति का कार्यालय भी बंद करने का आदेश जारी किया गया है। पिछले वित्तीय वर्ष में मंडी समिति के निर्माण के लिए एक करोड़ रुपयों का बजट आबंटित किया गया था। बस्ती राजमार्ग पर बकसरिया गांव में जमीन खरीद के लिए किसानों से प्रस्ताव लेकर जिलाधिकारी को भेजा गया था लेकिन अब मंडी बंद करने के सरकारी फरमान से फल, सब्जी की बिक्री के लिए सड़क की पटरियों व निजी मकानों का ही सहारा रह जाएगा। लोकतंत्र सेनानी चौधरी इरशाद अहमद गद्दी कहते हैं कि जिले की सबसे पुरानी तहसील की स्थापना 1875 में हुई थी। मुगल व ब्रिटिश काल से ही सब्जी, फल, अनाज व गुड़ की मंडियां लगती आ रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के किसान अपनी उपज लाकर यहां बेचते रहे। रियासत खत्म होने के बाद सरकार ने यहां मंडी कार्यालय स्थापित किया जो आज भी किराए के मकान म़े चल रहा है। सचिव के अतिरिक्त, वरिष्ठ लिपिक व चार अन्य कर्मचारी भी यहां तैनात हैं। प्रतिवर्ष तीन करोड़ का राजस्व भी मंडी से शासन को प्राप्त होता है। इसके बावजूद मंडी समिति को बंद करने का आदेश न केवल किसानों को विचलित कर रहा है बल्कि राजस्व की आय भी घटने का अनुमान लगाया जा रहा है।
मंडी समिति सचिव काशीराम का कहना है कि फिलहाल शासन के नये निर्देश में यहां की समिति को बलरामपुर में समायोजित करने का आदेश दिया गया है। हांलाकि कृषि कानून में कुछ संशोधन किए जाने की भी चर्चा चल रही है। संशोधन के बाद यह तय हो सकेगा कि मंडी समिति को आगे बहाल किया जाएगा या समायोजन ही लागू रहेगा।
असगर अली
उतरौला
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