चल लेकर चलूँ
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चल लेकर चलूं तुझको
एक ऐसे गांव में ,
जहाँ मिले सभी खुशियां
पलकों की छांव में,
रहे चाँद फिर भी आधा
हो पूरी रौशनी,
उम्मीद कभी न टूटे
हर बात है बनी,
अँधेरी रातो जो निकले
सुबह की रागिनी ,
ख़्वाबो में भूल जॉऊ
तकलीफ़े मै सभी,
लोरी तुझे सुनाऊ मैं
बचपन कि आज एक,
बिखरा सा ऐसे रहता
जैसे फूल हो अनेक,
मै आसमाँ को अपने
ही घर में लाई हूँ
सारे के सारे तारों को यहाँ
मै बुन के लाई हूँ,
सपनो में रंग कुछ यूँ
मै भर के लाई हूँ
हर दर्द भूल जॉऊ यूं
बातों ही बातों में,
चल लेकर चलूं तुझको
एक ऐसे गांव में,
जहाँ मिले सभी खुशियां
यादों की छांव में,
प्रियंका द्विवेदी
मंझनपुर कौशाम्बी।
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