चंद घर दीयों से जगमगाएं और बाकी अंधेरे में कराहें, क्या देश की यह दशा केंद्र सरकार को शोभा देगी? सुनील सिंह

चंद लोगों को त्योहार मनाने के लिए कुछ हजार रुपए की मदद देना ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है- सुनील सिंह

लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील सिंह ने कहा कि कोरोना वायरस के भय ने लोगों के हर्षोल्लास, जोश व उत्साह को बुरी तरह प्रभावित किया है. एक तरफ संक्रमण का डर है, अपनों की मौते हैं और दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है, व्यवसाय डूब चुके हैं, लोगों के पास नौकरियां नहीं हैं, जेबें खाली हैं. त्योहार सिर पर है ऐसे में चंद लोगों को त्यौहार मनाने के लिए कुछ हजार रुपए की मदद देना ऊंट के मुंह में जीरे जैसा है।

पूरी दुनिया कोरोना की वजह से लगाए गए मंदी की मार से कराह रही है, ऐसे में  दीपावली त्योहार को कुछ लोगों के लिए  राजनीति का मंच बना देना शर्मनाक है. जो केंद्र सरकार खुद अब तक पैसे का रोना रो रही थी, अचानक सरकारी कर्मचारियों को बड़े तोहफे देने की बात कहां से आ गई श्री सिंह ने कहा कि केंद्रीय वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि कोरोना महामारी से अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है, लिहाजा अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने के लिए 2 अहम प्रस्ताव पेश किए हैं.

पहला, एलटीसी कैश वाउचर स्कीम और दूसरा, स्पैशल फैस्टिवल एडवांस स्कीम है. श्री सिंह ने कहा कि सरकार जिसे बिना ब्याज का लोन कह रही है वह दरअसल, एक तरह का उधार है जिस से त्योहारी फुजूलखर्ची बढ़ेगी. यह आइडिया पुराने जमाने के साहूकारों सरीखा है जो तीजत्योहारों पर नाममात्र के ब्याज पर पैसा उधार देते थे जिस से लोग अपनी जमापूंजी भी खर्च कर डालें और फायदा बनियों व पंडों का हो. अब जो कर्मचारी 10 हजार रुपया लेगा, जाहिर है, वह इस से 2-3 गुना ज्यादा खर्च करेगा क्योंकि जरूरत की कोई भी चीज इतने कम पैसों में नहीं मिलती.

श्री सिंह ने  आगे कहा कि एलटीसी के लिए नकद पर सरकार का खर्च 5,675 करोड़ रुपए बैठेगा.  वहीं सार्वजनिक उपक्रमों और बैंकों को सरकारी खाते से 1,900 करोड़ रुपए दिए जाएंगे.  
जिस देश में 130 करोड़ लोग बसते हों, उन में से चंद लोगों को त्योहार मनाने के लिए कुछ हजार रुपए की मदद देना ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है. कोरोनाकाल में कितने ही अस्पतालों में अपनी जान की परवा न कर के कोरोना मरीजों की जान बचाने वाले डाक्टर्स को कई महीनों से सैलरी नहीं मिली है. नर्स और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी महीनों से बिना सैलरी के काम करने को मजबूर हैं.
ठप कारोबार रसातल में जा रही अर्थव्यवस्था को संभालने  के लिए सरकार के पास कोई रास्ता उस के पास नहीं है. उद्योगधंधे, कारोबार सब ठप पड़ गए हैं. हर छोटाबड़ा व्यवसायी, दुकानदार अपने बढ़ते घाटे से परेशान है. छोटे दुकानदारों और व्यापारियों के पास इतना पैसा नहीं बचा है  बाकी कसर सुरसा की भांति मुंहफैलाए मंहगाई ने पूरी कर दी है.
श्री सिंह ने कहा है कि लाखों प्राइमरी स्कूल शिक्षक महीनों से अपनी तनख्वाह की बाट जोह रहे हैं. उन के घर में भुखमरी कगार पर पहुंच गई है. 14 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हो गए हैं. 10 करोड़ से ज्यादा प्रवासी मजदूर लौकडाउन से सब से ज्यादा प्रभावित लोगों में शामिल हैं. ऐसे में कुछ लाख सरकारी कर्मचारियों को त्योहार मनाने के लिए 10 हजार रुपए की मदद देना और  सभाओं में उस का बढ़चढ़ कर शोर मचाना क्या उचित है? चंद घर दीयों से जगमगाएं और बाकी अंधेरे में कराहें, क्या देश की यह दशा केंद्र सरकार को शोभा देगी?

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